SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ PoKER । श्रद्धा का लहराता समन्दर १४१ अस्वस्थ स्थिति में भी मैंने गुरुदेवश्री से कई बार पूछा कि कैसे हैं ? संयम के अवतार : उपाध्यायश्री गुरुदेवश्री मुस्कराते हुए फरमाते, बहुत आनंद है। मैंने कभी भी उनके चेहरे पर उदासीनता और खिन्नता नहीं देखी, वही -दीपचन्द मेहता (सिवाना) आध्यात्मिक मस्ती जीवन के अन्तिम क्षणों में भी देखने को मिली। ४२ घण्टे के चौवीहार संथारे के बाद गुरुदेवश्री ने भौतिक देह को दो शब्द हैं संकल्प और विकल्प। संकल्प मानव को उत्थान की छोड़ दिया। आज भी उनका तेजस्वी चेहरा मेरी आँखों के सामने ओर गति प्रगति करने के लिए बाध्य करता है तो विकल्प पतन की ओर। इस विराट् विश्व में जितने मानव हैं, उनमें संकल्प की घूम रहा है। वे अद्भुत व्यक्तित्व के धनी थे, सच्चे संत थे, ऐसे दृढ़ता कम है और वह विकल्पों में अधिक उलझे हुए हैं। विकल्प सद्गुरुदेवश्री के चरणों में मेरी भाव-भीनी श्रद्धार्चना। मन में आधि-व्याधि और उपाधि समुत्पन्न करते हैं जबकि संकल्प मन में अखण्ड समाधि प्रदान करते हैं। एक चमकता दमकता जीवन परम श्रद्धेय उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म. सा. अपने युग के एक ज्योतिर्धर संत रत्न थे। अपनी दृढ़ संकल्प शक्ति से उन्होंने -शान्तिलाल सुराना (खण्डप) अपने कदम समाधि की ओर बढ़ाए, भोग से योग की ओर चल पड़े और अंत में अपनी विशुद्ध साधना कर परम योगी बन गए। उपाध्याय पूज्य गुरुदेवश्री पुष्कर मुनि जी म. सा. आज की विकल्पों और व्याधियों से मुक्त हो गए। उनके पवित्र चरित्र को शताब्दी के एक युग पुरुष थे। उनका विचार समन्वित आचार और 1 और तेजस्वी जीवन को विस्मृत नहीं किया जा सकता। आज भी आचार समन्वित विचार जन-जन की श्रद्धा का केन्द्र बन गया। हजारों भक्त उनके नाम का स्मरण करते हैं, जप करते हैं, उनके चारों ओर उनकी गंभीर विद्वता की धाक थी और उनके उज्ज्वल नाम के जप में ही वह शक्ति है कि व्यक्ति सभी चिन्ताओं से मुक्त समुज्ज्वल पवित्र चरित्र का समादर था। जन-जन के मन में अपार हो जाता है। आस्था थी और उन्हें अपना सच्चा पथ प्रदर्शक मानते थे। हमारी प्रार्थना को सम्मान कर गुरुदेवश्री का यशस्वी वर्षावास सद्गुरुदेव ने अहमता और ममता के प्रगाढ़ बंधनों को तोड़ा। सन् १९७२ में हमारी जन्मभूमि गढ़सिवाना में हुआ। उस वर्ष त्याग, तपस्या, विनय, विवेक और वैराग्य की अमर ज्योति गरुदेव की सेवा का सौभाग्य मिला। और गरुदेवश्री कितने महान प्रज्ज्वलित की। मिथ्याविश्वास, मिथ्या आचार, मिथ्या क्रियाकलापों थे यह अनुभव भी हुआ। मेरी अनंत आस्था उन गुरु चरणों में है का खण्डन करके जन-जीवन को पावन प्रेरणा प्रदान की, पवित्र । मुझे पूर्ण भरोसा उन चरणों का है, कैसी भी विकट बेला में जब जीवन जीने का संदेश दिया, ज्ञान का दिव्य आलोक फैलाकर भी मैं उनके नाम का स्मरण करता हूँ तो सारे विकल्प की घनघोर जन-जीवन को तेजस्वी बनाकर जीने की प्रेरणा दी। घटाएँ नष्ट हो जाती हैं और मन में अपूर्व शांति का अनुभव होता है। हे गुरुदेव! मेरे कोटि-कोटि प्रणाम स्वीकार करें और मुझे पूज्य गुरुदेवश्री में एक अद्भुत आकर्षण शक्ति थी जो भी अनंत-अनंत आशीर्वाद प्रदान करें। श्रद्धालुगण एक बार उनके सान्निध्य में आया, वह सदा-सदा के लिए उनके प्रति समर्पित हो गया, उनकी व्यापक दृष्टि थी, जिसके फलस्वरूप अपना-अपना ही नहीं किन्तु पराया भी अपना था। । सद्गुरु एक आध्यात्मिक शक्ति हैं । वसुधा के सभी नर-नारी उस महागुरु को अपना मानते थे। उस -सुशील संग्रामसिंह मेहता (उदयपुर) महाज्योति पर रागद्वेष के झंझावातों का कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ता था। गीता की भाषा में यदि कहा जाए तो वे स्थित प्रज्ञ थे। जो भी भारतीय पावन पुण्य धरा पर ऐसी अनेक विमल विभूतियाँ हुई पाया उसे सबको बाँट दिया तथापि मन में किंचित् मात्र भी । हैं जिन्होंने अपने ज्ञान, ध्यान, त्याग व तपोमय जीवन से अपने अहंकार नहीं था। उनका जीवन सागर की तरह था, जिस १ नाम को सदैव आलोकित किया है, उन्हीं महापुरुषों की परम्परा में साधक ने उनके जीवन सागर में गोते लगाए, उतने ही अधिक रन । परम श्रद्धेय सद्गुरुवर्य उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी म. का नाम उसने प्राप्त किये। पूज्य गुरुदेवश्री के मंगलपाठ का ही चमत्कार है । अत्यन्त निष्ठा के साथ लिया जा सकता है। वे अध्यात्म रस में सदा कि जब भी मेरे मानस में चिन्ता पैदा हुई, गुरुदेव के चरणों में निमग्न रहते थे, शासन प्रभावक, आशु कवि, ज्ञान योगी, ध्यान पहुँचा और चिन्ता से मुक्त हुआ तथा आर्थिक दृष्टि से भी खूब । योगी और अध्यात्म योगी थे। प्रगति हुई। जीवन में सद्गुरु की प्राप्ति होना एक महान् उपलब्धि है। उस पावन सद्गुरुदेव के प्रति हार्दिक श्रद्धांजलि समर्पित करते सद्गुरु एक आध्यात्मिक शक्ति है, जो मानव को नर से नारायण, हुए मैं अपने आपको धन्य-धन्य अनुभव कर रहा हूँ। आत्मा से परमात्मा और इन्सान से भगवान बना देती है। सद्गुरु Buenaulilon Jotirgionar.esOODOO 000-00-00-00-00-009.02deas FOCPrivate Personas 160860200.Pato20908050c062
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy