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________________ T9D9 SODE 05500 :006१३६ १३६ उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । पक्ष पूर्णरूप से यथार्थ हैं, किसी एक की भी उपेक्षा करने से जीवन श्रद्धेय गुरुदेवश्री उपाध्यायश्री पुष्कर मुनि जी म. गुणों के में पूर्णता नहीं आती। वास्तव में यह हमारी संस्कृति की दिव्यता, आगार थे उनमें धैर्य, सरलता, सादगी, स्नेह और सद्भावना का भव्यता, अन्तरमुखता और पूर्णता के तत्व हैं, जो संतों की ही देन । प्राधान्य था, उनका व्यक्तित्व बहुत ही प्रभावशाली था, गुरुदेवश्री है, उन महान त्यागी संतों ने भोगविलासमय जीवन से ऊपर उठकर । भारत के विविध अंचलों में जहाँ भी पधारे, वहाँ अपना अपूर्व 20000 त्यागमय जीवन जीया, जिन्होंने गहन चिन्तन, मनन और प्रभाव छोड़ गए। आज भी गुरुदेवश्री का नाम स्मरण कर हजारों निदिध्यासन किया और अपने अनुभवों के आलोक में जीवन जीने लोग कार्य प्रारंभ करते हैं और सफलता देवी उनके चरण चूमती की प्रेरणा दी। श्रद्धेय गुरुदेव श्री पुष्कर मुनि म, का बाह्य व्यक्तित्व है। गुरुदेवश्री का जीवन दिव्य और भव्य रहा और वे महान् जितना लुभावना था, उससे भी अधिक उनका आन्तरिक व्यक्तित्व पुण्यशाली थे, जो चद्दर समारोह होने के पश्चात् उन्होंने चौवीहार चित्ताकर्षक था। संथारा कर स्वर्ग की राह ली। गुरुदेवश्री के संबंध में जितना लिखा गुरुदेवश्री की असीम कृपा हमारे प्रान्त पर रही, हमारा प्रान्त जाए उतना ही कम है, वे ध्यानयोगी, ज्ञानयोगी और अध्यात्मयोगी अरावली की विकट पहाड़ियों से घिरा हुआ है। आज तो सड़कें बन थे। श्रमणसंघ के वे वरिष्ठ उपाध्याय थे, उनके श्रीचरणों में मैं चुकी हैं, उस समय सड़कों का अभाव था। पगडंडियों के रास्ते श्रद्धा से नत हूँ। उनका मंगलमय जीवन हमारे लिए सदा प्रेरणा का कंटकाकीर्ण मार्ग को पार करना बहुत ही कठिन होता है। अरावली स्रोत रहा है। मैं अपनी ओर से, अपने परिवार की ओर से अपनी की पहाड़ियों में से निर्झर बहते हैं, कलकल छलछल बहते हुए श्रद्धार्चना समर्पित करता हूँ। नदियों-नालों को पार करते हुए मेवाड़ से मारवाड़ हमारे गुरुजन पधारते और हमें प्रतिबोध देते, गुरुदेवों की असीम कृपा से ही [ आलोक स्तम्भ गुरुदेवश्री पुष्कर मुनिजी ) हमारे जंगली जीवन में सभ्यता के अंकुर प्रस्फुटित हुए। गुरुदेवश्री की विमलवाणी ने वहाँ के जन-जीवन में आमूलचूल परिवर्तन -रोशनलाल मेहता एडवोकेट किया, उन्होंने बताया कि तुम जंगलों के रोज नहीं हो, तुम मानव (मंत्री श्री तारक गुरु जैन ग्रंथालय, उदयपुर) बने हो, तन से मानव बनना ही पर्याप्त नहीं, जब तक तुम्हारे भारत में संतों की पावन परम्परा न होती तो आज भारतीयों जीवन में सद्संस्कार पल्लवित नहीं होंगे तब तक धर्म के अंकुर के पास अध्यात्म विद्या का अभाव होता, अध्यात्म विद्या के कारण प्रस्फुटित नहीं होंगे वहाँ तक तुम सच्चे मानव नहीं बन सकते। तुम ही तो भारत विश्व का गुरु कहलाया है। अन्य पाश्चात्य देश कहलाने के लिए जैन हो पर जैन आचार संहिता का जब तक भौतिक दृष्टि से भले ही अपना महत्व रखते हों किन्तु जहाँ तक पालन न करो तब तक जैन नहीं बन सकते। गुरुदेवश्री के उपदेशों अदृश्य शक्ति के संबंध में चिन्तन का प्रश्न है, दर्शन की गंभीर गुरु से हमारे प्रान्त में अभिनव चेतना का संचार हुआ। ग्रन्थियों को सुलझाने का प्रश्न है और आत्मदृष्टि का प्रश्न है, वहाँ गुरुदेवश्री महास्थविर श्री ताराचंद्र जी म. के आद्य आचार्यश्री वे भारतीय चिन्तन के सामने टिक नहीं पाते उनके कदम लड़खड़ाने अमरसिंह जी म. के संत और सतियों का हमारे प्रान्त में पदार्पण लगते हैं, संत भारतीय संस्कृति के सार्वभौम सत्य को साक्षात् करने होता रहा और उन्हीं की असीम कृपा से हमारे में जैन धर्म के प्रति वाले हैं, वे यहाँ की संस्कृति के पावन प्रतीक हैं। निष्ठा जागृत हुई। महास्थविर गुरुदेवश्री ताराचंद्र जी म. और संतों की परम्परा के प्रति हम सदा नत रहे हैं, उनकी परार्थ उपाध्याय गुरुदेवश्री पुष्कर मुनि जी म. की असीम कृपा मेरे पर चिन्तनात्मक सर-सरिता में हम सदा अवगाहन करते रहे हैं और रही, वे सच्चे जौहरी थे, उनके पैनी दृष्टि हमारे पर गिरी और आत्म-स्फूर्त पवित्र प्रेरणा भी प्राप्त करते रहे हैं और आज भी उन्होंने पावन प्रेरणा दी कि तुम्हारे जीवन में जो व्यसन हैं, उन हमारा संत संस्कृति के प्रति श्रद्धा से हृदय नत है। जब कभी भी व्यसनों से मुक्त बनो, रात्रि-भोजन का तथा कंदमूल का त्याग करो। पावन जीवन का स्मरण आता है, तब श्रद्धेय सद्गुरुवर्य गुरुदेवश्री की पावन प्रेरणा से हमारे जीवन में आमूलचूल परिवर्तन उपाध्यायश्री पुष्कर मुनि जी म. की पावन पुण्य स्मृति उजागर हो आया और अपने नन्हें से ग्राम में हमने धर्मस्थानक भी बनाया तथा जाती है। गुरुदेवश्री के मैंने कब दर्शन किए, यह तो पूर्ण स्मरण हमारे प्रान्त के सभी ग्रामों में विशाल नव्य-भव्य स्थानक बन गए। नहीं है पर यह यथार्थ सत्य है कि मेरे पूज्य पिताश्री अर्जुन लाल स्वाध्याय संघ की स्थापना हुई और हमारे प्रान्त में से स्वाध्यायी जी सा. मेहता, महास्थविर श्री ताराचंद्र जी म. और उपाध्यायश्री बन्धु पर्युषण प्रवचनों में पहुँचते हैं। पुष्कर मुनि जी म. के अनन्यतम श्रावक थे, उनकी सर्मपण भावना हमारे प्रान्त में गुरुदेवश्री, परम विदुषी साध्वीरल श्री जन-जन के लिए प्रेरणा स्रोत थी। पूज्य पिताश्री ने ही महास्थविर शीलकुंवर जी म., साध्वी सज्जनकुंवर जी म., महासतीश्री कौशल्या श्री ताराचंद्र जी म. से मुझे सम्यक्त्व दीक्षा प्रदान करवाई। गुरुदेवों जी म., महासती श्री कुसुमवती जी म. तथा महासतीश्री पुष्पवती की भी हमारे परिवार पर असीम कृपा रही, उस कृपा का वर्णन DD जी म. के चातुर्मास भी हुए। लेखनी के द्वारा नहीं किया जा सकता। gago Jansation inag estorie s Cos.5200-00- 0002005000-51
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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