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________________ 01 १३४ उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । थी, वे गंभीर से गंभीर विषय को सरल रूप में प्रस्तुत करते थे, इन वर्षों में मैं गुरुदेवश्री के बहुत ही निकट संपर्क में आया D जिसे सुनकर श्रोता सहज रूप से हृदयंगम कर सकें। और गुरुदेवश्री की सहज सरलता, सौम्यता प्रभृति सदगुणों से मेरा १० 200 गुरुदेवश्री के दर्शन मैंने बहुत ही लघुवय में किए थे क्योंकि मन अत्यधिक आल्हादित हुआ, आज जहाँ कुछ स्थलों पर बड़े संत - मेरे पूज्य भाई महाराज जो वर्तमान में श्रमणसंघ के आचार्य पद से । दूसरों से बोलना भी पसन्द नहीं करते और कुछ स्थलों पर मैंने यह समलंकृत हैं, वे श्री देवेन्द्रमुनिजी म. उनके श्रीचरणों में ही दीक्षित भी अनुभव किया कि सामने वाला व्यक्ति उनकी सम्प्रदाय का नहीं हुए, हमारे परिवार के अनेक सदस्य गुरुदेवश्री के चरणों में दीक्षित है तो वे न तो उनसे वार्तालाप करना पसन्द करते हैं और न उनके हुए, इसलिए मैं पिताजी के साथ गुरुदेवश्री के दर्शनों के लिये जाता घर का आहार-पानी ही ग्रहण करते हैं, यहाँ तक कि मकान में ॐ रहा पर व्यवसाय में व्यस्त होने के कारण बहुत कम समय निकल प्रवेश करके भी उल्टे पैरों लौट जाते हैं कि यह हमारी सम्प्रदाय का पाता। सन् १९९३ का मार्च महीना गुरुदेवश्री उदयपुर पधारे, नहीं है तो दूसरी ओर गुरुदेवश्री सहज रूप से सभी से मिलते थे 28.2 उनके दर्शनों का सौभाग्य मिला, चद्दर समारोह होने के कारण हमें । और उनका करुणापूर्ण हृदय किसी भी दुःखी और ददी को देखकर Papभी अपूर्व लाभ मिला। उदयपुर के इतिहास में यह पहली घटना थी दया से द्रवित हो जाता था। SORD कि लाखों लोगों ने इस समारोह में भारत के विविध अंचलों से गुरुदेवश्री कितने सौभाग्यशाली रहे कि उनका अंतिम समय DD आकर भाग लिया। उदयपुर में बीता कहीं कुछ कल्पना नहीं थी। चद्दर समारोह के उदयपुर में एक अविस्मरणीय प्रसंग बना, इस चद्दर समारोह पावन प्रसंग पर गुरुदेवश्री का उदयपुर में आगमन हुआ, यह को देखकर सभी स्तंभित थे। जैन और अजैन सभी सोचने लगे कि मंगलमय आगमन सभी के लिए प्रेरणा स्रोत रहा पर गुरुदेवश्री का 20 कितनी निष्ठा है जैन संतों के प्रति निष्ठा की भव्य भावनाएँ चारों चद्दर समारोह के बाद स्वास्थ्य बिगड़ गया और हम सभी को 2 006 ओर प्रसारित थीं। गुरुदेवश्री की असीम कृपा हमारे परिवार पर। छोड़कर वे आत्मभाव में इतने तल्लीन हो गए, उन्होंने हँसते-हँसते रही। समाधिमरण को प्राप्त किया। वे वस्तुतः शिखर पुरुष थे, जीवन गुरुदेवश्री का समाधिपूर्वक स्वर्गवास हुआ। आज भौतिक देह । भर आनंदित रहे और अंतिम क्षणों में भी उनका जीवन आनंद 06 से गुरुदेवश्री हमारे बीच नहीं हैं, किन्तु उनका यशः शरीर विद्यमान और उल्लास से परिपूर्ण रहा, मैं श्रद्धेय गुरुदेवश्री के चरणों में 385 है और वे सदा ही हमारे लिए ज्योति स्तम्भ की तरह हमें मार्गदर्शन अपने एवं अपने परिवार की ओर से श्रद्धा सुमन समर्पित करता देते रहेंगे। मैं अपनी ओर से मातेश्वरी राजबाई की ओर से और हुआ आनंद की अनुभूति कर रहा हूँ। उनका वरदहस्त हमारे लिए परिवार के सदस्यों की ओर से गुरु चरणों में श्रद्धा सुमन समर्पित सदा प्रेरणा का पावन स्रोत रहेगा। करता हूँ। गुरुदेव की महिमा अपरम्पार BD प्रेरणा के पावन स्रोत -शोभालाल दोलावत, पदराड़ा (विरार) -प्रकाश मोतीलाल बरडिया, (उदयपुर) हे मेरे आराध्य गुरुदेव मैं आपको किन शब्दों में श्रद्धांजलि परम श्रद्धेय उपाध्यायश्री पुष्कर मुनि जी म. के जीवन में जीवन में अर्पित करूँ, यह समझ में नहीं आ रहा है, आपके गुण तो अनन्त आपत करू, यह समझ मनहा आ रहा है, आपक क्षमा, दया, नम्रता, कर्मठता, साहस, स्फूर्ति, दूरदर्शिता, विवेक, इस. स्फर्ति दरदर्शिता. विवेक./हैं, उन अनंत गुणों को थोड़े शब्दों में पिरोना बहुत ही कठिन है, DO निर्भीकता, विनोदप्रियता, भावुकता आदि न जाने कितने सद्गुण । इसीलिए तो कबीर ने लिखा था कि सम्पूर्ण पृथ्वी का कागज बनाया भरे पड़े थे। पूज्य गुरुदेवश्री के दर्शन मैंने कब किए, यह सही जाये और सम्पूर्ण वृक्षों की कलम बनाई जाए और सभी समुद्रों की तारीख तो मुझे स्मरण नहीं है। मेरे भाई म. जो इस समय स्याही बनाई जाए तो भी सद्गुरु के गुणों को लिखना संभव नहीं। श्रमणसंघ के तृतीय पट्टधर आचार्यश्री देवेन्द्रमुनिजी हैं। गुरुदेवश्री के हे गुरुदेव आपकी महिमा और गरिमा निराली थी। बाल्यकाल से ही दर्शन हेतु जब मुझे मेरे पिताश्री ले गए तो मैं गुरुदेवश्री की आपकी कृपा दृष्टि मुझे प्राप्त हुई थी। समय-समय पर आपने मुझे महानता को देखकर नत हो गया। गुरुदेवश्री इतने महान संत होकर । सम्बल प्रदान किया। भी मेरे से बहुत ही प्यार भरे शब्दों में वार्तालाप की उनकी अपार गुरुदेवश्री के अनेक संस्मरण मेरे स्मृति पटल पर चमक रहे कृपा दृष्टि को पाकर मैं अपने आपको धन्य-धन्य अनुभव करने हैं। सन् १९९० का वर्षावास गुरुदेव उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी लगा। गुरुदेवश्री के सन् १९८० के उदयपुर वर्षावास में अनेकों म. का सादड़ी में था। मैं गुरुदेवश्री के दर्शनार्थ पहुँचा, उस दिन बार मैं गुरुदेवश्री के चरणों में पहुँचा, उनके प्रवचनों को भी सुना। गुरुदेवश्री एकाकी ही विराजे हुए थे, मैं गुरुदेवश्री के चरणों में बैठ ज्यों-ज्यों मैं गुरुदेवश्री के चरणों में पहुँचता रहा त्यों-त्यों मेरे । गया। वार्तालाप के प्रसंग में गुरुदेवश्री ने कहा कि शोभालाल अब अन्तर्मानस में गुरुदेवश्री के प्रति सहज निष्ठाएँ जागृत होती रहीं। मेरी हार्दिक इच्छा है कि कहीं एकान्त शांत स्थान में बैठकर खूब vo o r, Private Personal use only 00000000000000000 R59020 6806°0%awarjaigelibrarrorpi
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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