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________________ श्रद्धा का लहराता समन्दर ११५ । DOASDU और मनोरथ पूर्ण होते थे। उसी प्रसंग में जब यहाँ हस्तीमलजी महाराज साहब पधारे तो गंगा और यमुना का संगम समारोह बड़ा विनम्र श्रद्धांजलि ही भावभीना हुआ। ज्ञान गंगा का जो प्रवाह हुआ उससे सबका -हस्तीमल झेलावत समाधान हुआ, ऐसा आकर्षण था संत समागम का। (एम.ए., साहित्यरत्न (इन्दौर)) जब दिल्ली में महाराजश्री विराज रहे थे-वहाँ भी दर्शन करने का सौभाग्य मिला। मैंने पूछा महाराज यह देश काल के क्या हाल श्रमण जगत के तेजस्वी नक्षत्र एवं महान अध्यात्मयोगी हैं ? उस समय शायद इंदिरा जी की पराकाष्ठा थी। यही कहा सब पूज्यनीय उपाध्यायप्रवर श्री पुष्करमुनिजी महाराज का जीवन कुछ बदलने वाला है यह नहीं रहेगा। एक बार और अवसर मिला अहिंसा, संयम और तप का त्रिवेणी संगम था। पाली में। जब वहाँ से विहार कर रहे थे मैं किसी कार्यवश पाली ज्ञान की दिव्य आभा से प्रकाशमान तथा सागर के समान गया हुआ था। ज्ञात होने पर साईकल लेकर नदी पार गया और गंभीर उनका बहुमुखी व्यक्तित्व जन-जन के लिए महान् प्रेरणा चरणस्पर्श किये, महाराजश्री ने जो मंगलम दिया आज भी उसकी केन्द्र था। श्रुति है हृदय में। कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग की साधना उनके जीवन का इन्हीं शब्दों के साथ उनकी पुण्यस्मृति में पुष्पांजलि अर्पित परम लक्ष्य रहा है। उपाध्यायप्रवर तीर्थरूप थे। आदर्श शिष्य और करता हुआ सबके साथ सद्भावना अर्पित करता हूँ। सर्वे भवन्तु | आदर्श गुरु होने का गौरव प्राप्त कर उन्होंने अपने जीवन के पवित्र सुखी, सर्वे सन्तु निरामयः। को सार्थक कर लिया है। । आपके जैसे बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न व्यक्तित्व को श्रमण संघ के श्रद्धा सुमन पूज्यनीय आचार्य के रूप में प्रतिष्ठित कर समाज पर बहुत बड़ा उपकार किया है। -पालीवाल बाह्मण समाज, उदयपुर मेरा परिवार उपाध्यायप्रवर के श्रीचरणों में विनम्र श्रद्धांजलि परम पूज्य महामना १००८ श्रीमान् पुष्करमुनिजी महाराज अर्पित करता है। सा. के ब्रह्मलीन होने के समाचार से उदयपुर-सम्पूर्ण पालीवाल ब्राह्मण समाज के भाई-बहिनों को गहरा आघात लगा है। एक दिव्य ज्योति जो हमें आलोकित कर रही थी, वह सदा-सदा के लिए [ सद्गुणों का महकता हुआ गुलदस्ता ) ब्रह्मलीन हो गई है। पूज्य महाराजश्री जी के प्रति हम नत मस्तक होकर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। परमपिता परमात्मा से -पुष्पेन्द्र लोढ़ा 'दीवाना', एम.ए. प्रार्थना करते हैं कि स्वर्गस्थ महाराज जी की आत्मा को चिर शांति (लेखक, पत्रकार) प्रदान करे। "फूल बनकर महक, तुझको जमाना जाने। पालीवाल समाज को गर्व है कि ऐसा अनमोल रत्न अपने तेरी भीनी खुशबू को, अपना बेगाना जाने॥" बाल्यकाल से ही जैन समाज को समर्पित हुआ तथा जैन धर्म की निःसंदेह इस विश्व की सुन्दर और सुरम्य वाटिका में कुछ दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात् पूज्य महाराज श्री ने अपना सम्पूर्ण विशिष्ट आत्माएँ महकते पुष्प के रूप में अवतरित होती हैं। उनका जीवन जैन धर्मोत्थान के साथ त्याग, तपस्या एवं साधना से जैन जीवन पुष्प की जीवन रेखा से भिन्न है, विलक्षण है। जब तक समाज में सर्वोपरि प्रतिष्ठा प्राप्त कर सम्पूर्ण जैन समाज व अपने उसका अस्तित्व रहता है, जीवन ज्योति का दीप प्रज्वलित रहता है, कुल को ही गौरवान्वित नहीं किया अपितु सम्पूर्ण राष्ट्र को दिशा तब तक उनका व्यक्तित्व, उनकी साधना जन-गण-मन को सुवासित प्रदान की है। व्यक्तित्व की महक से महकाती ही है। अपने सद्गुणों के महासौरभ परमपूज्य महाराजश्री की स्मृति सदैव अमर रहे इस हेतु । दान से मानव के मन-मस्तिष्क को ताजा बनाती ही है। किन्तु इस सेमटाल गाँव में एक ऐसा पुष्कर अमर स्मृति केन्द्र बने, जिससे उस संसार से प्रयाण कर जाने के बाद भी उनकी साधना, उनका क्षेत्र का जनमानस लाभान्वित होकर कर्म एवं धर्म के प्रति समर्पित व्यक्तित्व, उनकी तेजमय ज्ञान-ध्यान युक्त जीवन की सुवास का भाव से परमपूज्य महाराजश्री के पदचिन्हों का अनुसरण कर सके। अनन्त और अक्षय कोष का कभी लोप नहीं होता प्रत्युत उनकी पुनः उदयपुर नगर का पालीवाल समाज परमपूज्य महाराज । मृत्यु के बाद भी जन-जन के मन में नई प्रेरणा, नई चेतना व सा. के प्रति नतमस्तक होकर शत-शत नमन करते हुए अश्रुपूरित | ताजगी प्रदान करता है और उसे प्रतिक्षण आगे बढ़ाने के लिए श्रद्धाञ्जलि अर्पित करता है। प्रेरित करता है। 09063D990 D.OD e Tag education infemationals DOD 2000 ARoseeratees Corpival For Favatma. Personal use onlyss HAPPADG0200 s . opwJahelibraryog GADDA
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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