SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 100 १०८ उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । हुआ था। जैसे ही पता लगा पूज्य गुरुदेव यहाँ विराजे हुए हैं उनके हूँ'''' उनने तो मेरे जीवन की बदली दिशा को परिष्कृत करने में प्रवचन सुनने स्थानक गया। प्रवचन समाप्त होने के पश्चात् | बहुत बड़ा योगदान दिया है। शतशत श्रद्धा वन्दन ! गुरुदेव ऊपर पधारे तो हम भी उनके पीछे-पीछे ऊपर चले गए तथा उनके चरणों में बैठे। गुरुदेव ने कुशलक्षेम पूछने के पश्चात् । सम्मेलन के महारथी थे..... जो मेरे साथ थे, उनका परिचय पूछा। मैंने बतलाया कि यह मेरे रिश्तेदार हैं तथा साथ में उनकी पुत्री भी है जो थोड़ी दूर पर बैठी -कचरदास देवीचंद पोरवाल हुई गुरुदेव को देख रही थी। गुरुदेव ने उस बालिका की तरफ (अध्यक्ष श्री वर्धमान श्वे. स्था. श्रावक संघ, पुणे) देखा और कहा इस लड़की को कोई बीमारी होनी चाहिए। यह सुनकर मैं और उस लड़की के पिता अचंभित हो गए क्योंकि उस उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म. सा. की पूना संघ पर बहुत लड़की के पेट में काफी समय से दर्द रहता था एवं उसे भूख नहीं ही कृपा रही। आपके २ चातुर्मास पूना में हुये थे। आपके चातुर्मास लगती थी जिस कारण उसके पिता काफी चिंतित रहते थे। महाराज 1 में पूना में बहुत धर्मजागृति हुई थी। पूना श्रमण सम्मेलन में भी साहब ने कहा कि इस लड़की को १२ बजे का मंगल पाठ सुनने आपका स्वास्थ्य ठीक नहीं होने पर भी इतनी लम्बी यात्रा करके को कहना। हम तीनों ने १२ बजे का मंगल पाठ सुना तथा वहाँ से आप पधारे और पूना सम्मेलन भी उपाध्यायजी के मार्गदर्शन से लौट आए। तब से उस लड़की के पेट का दर्द कम होने लगा। सफल हुआ। यह पूना संघ कभी नहीं भूल सकता। आप (श्री देवेन्द्र दो-तीन बार उसे मंगल पाठ के लिए बुलाया जिसके बाद वह स्वस्थ मुनिजी) आचार्य पद पर विराजमान हुये यह सब उपाध्यायजी के हो गई। उसकी शादी भी हो गई एवं उसके एक पुत्र भी हो गया। जीवन की बहुत ही आनंदमय एवं मनोकामना (इच्छा) पूर्ति है। इस घटना के बाद लड़की के पिता को गुरुदेव पर काफी श्रद्धा हो आपने गुरुदेव उपाध्याय प. पू. श्री पुष्कर मुनि जी म. सा. की गई एवं जब भी अवसर मिला उन्होंने गुरुदेव के दर्शन का लाभ लगातर ५८ साल तक सेवा की है। आपको दुःख होना स्वाभाविक उठाया। है तो भी आप बहुत ही ज्ञानी एवं गंभीर महान संत हो, सभी को हिम्मत देने एवं धीरज देने का उत्तरदायित्व आप पर आ पड़ा है। धर्म के जीवन्त रूप थे आप यह सब सहकर श्रमणसंघ को बलवान एवं शक्तिशाली बनायेंगे। प. पू. स्व. उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी म. सा. को पूना -विमल कुमार चौरडिया (पूर्व सांसद) संघ की भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए हम पूना संघ के सभी श्रावक-श्राविका आपके बताये हुए मार्ग पर चलेंगे। इसी विश्वास के पूज्य पुष्कर मुनिजी म. सा. ज्ञान के अक्षय भण्डार थे, उनके ज्ञान का आवरण इतना क्षीण हो चुका था कि उनने ऐसे-ऐसे ग्रन्थों की रचना की जिनने उनको तो अमर बनाया ही किन्तु मुझ जैसे [ ध्यान-मौन साधना के प्रबल पक्षधर थे ) लाखों मुमुक्षुओं को धर्म आराधन की प्रेरणा दी। और उनके द्वारा रचित ग्रन्थ देते रहेंगे। -मोफतराज मुणोत पूज्य उपाध्याय भगवन्त श्री पुष्कर मुनिजी म. सा. का जीवन (अध्यक्ष अ. भा. श्री जैन रल हितैषी श्रावक संघ) धर्म का जीता-जागता स्वरूप था। उनका व्यक्तित्व अद्भुत था, नररत्नाकर राजस्थान के वे अमूल्य हीरे थे। उनके द्वारा सृजित परम श्रद्धेय उपाध्याय पं. रल श्री पुष्कर मुनि जी म. सा. ग्रन्थ इस बात को प्रकट कर देते हैं कि उन्हें व्याकरण, न्याय, तर्क । स्थानकवासी संत परम्परा के वयोवृद्ध आत्मार्थी संत थे। चौदह वर्ष का गहन अध्ययन था। वैदिक, बौद्ध, जैन व अन्य दर्शनों का की अल्पायु में भागवती दीक्षा अंगीकार कर उन्होंने अध्ययनतलस्पर्शी अध्ययन था। उनका संस्कृत, प्राकृत, गुजराती, अनुसंधान से अनेकानेक भाषाओं पर अधिकार प्राप्त किया और राजस्थानी, हिन्दी आदि भाषाओं पर पूर्ण अधिकार था। उनके तप जन-जन में करीब ७० वर्षों तक आध्यात्मिक-नैतिक-धार्मिक का तेज इतना था कि उनके द्वारा दिया जाने वाला मांगलिक सुनने संस्कार जगाये। के लिये समाज के महानुभाव बहुत ही लालायित रहते थे। _ ध्यान और मौन साधना के प्रबल पक्षधर उपाध्यायप्रवर के वे 'चले गये "जाना तो था ही...., सबको जाना। जीवन में धीरता, वाणी में मधुरता, व्यवहार में सरलता और मन है पर उनका अभाव एकदम भुलाया नहीं जा सकता भुलाया में निष्कपटता थी, इन्हीं सद्गुणों के कारण जन-जन की उनके प्रति नहीं जा सकेगा जब-जब उनकी कथाएँ, उनके ग्रन्थ, अनन्य आस्था थी। स्मारिका, सूक्ति कलश सामने आयेंगे, वे हमेशा अपने पास ही वयोवृद्ध उपाध्यायप्रवर व्यक्ति की पात्रता पहचानने में निष्णात आशीर्वाद देते दिखेंगे। मैं तो उनके उपकार से बहुत ही दबा हुआ थे। उनके सान्निध्य में जो भी जाता, वे आत्मीयता से बात करते। साथ र 50.00003800 Wep 36000000000000 2000.0000000000000000 in Education riternational 9000.ODral-private PersphaluserpolyanD. 0 0200.00000000000/ 20163003200200.000000 GOO000826503 www.ainelibrary.org S 360005000-00aco
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy