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________________ PORD Pod TOTR । १०६ उपाध्याय.श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ उदयपुर में २८ मार्च, १९९३ को चद्दर समारोह हुआ। इस आन्ध्रप्रदेश, कहाँ राजस्थान, कहाँ हरियाणा, कहाँ दिल्ली और कहाँ चद्दर समारोह के संचालन का दायित्व भी मुझे दिया गया और मुझे उ. प्र. आदि। सन् १९९२ का वर्षावास गढ़सिवाना का संपन्न कर लिखते हुए अपार प्रसन्नता होती है कि उदयपुर के इतिहास में उदयपुर चद्दर समारोह में गुरुदेवश्री का पदार्पण हो रहा था। हमारे पहली बार चद्दर समारोह पर जो जनमेदिनी बरसाती नदी की तरह प्रान्त वालों ने भाव-भीनी प्रार्थना की कि गुरुदेव हमारे प्रान्त को भी उमड़ी, उसे देखकर सभी उदयपुर के नागरिक आश्चर्यचकित थे। पावन करें। दया के देवता का हृदय द्रवित हो उठा और वे उस भण्डारी दर्शक मण्डल का विशाल पंडाल जो पहले कभी भी दर्शकों प्रान्त में पधारे। सभी श्रद्धालुगण अपने प्रान्त में गुरुदेवश्री को से भरा नहीं था, वह खचाखच भर जाने के बाद भी हजारों दर्शक निहारकर कहने लगे कि वस्तुतः गुरुदेव दीनदयाल हैं, कितना कष्ट उसके बाहर खड़े रहे। सहन कर पधारे हैं। गुरुदेवश्री को कष्ट तो अवश्य हुआ पर हम आचार्य पद चादर समारोह के पश्चात् दूर-दूर अंचलों से आए सभी उनकी कृपा से कृतार्थ हो गए। किसे पता था कि गुरुदेवश्री हुए हजारों दर्शनार्थी अपने-अपने स्थानों पर लौट गए, सभी को यह का वाकल प्रान्त में यह अंतिम पदार्पण हुआ। गुरुदेवश्री की असीम उम्मीद थी कि पुनः इतने दर्शनार्थी गुरुदेवश्री के संथारे के अवसर कृपा का स्मरण कर हम सभी भक्तगण नत हैं। पर नहीं आ पायेंगे पर दूर-दूर से हजारों दर्शनार्थी पहुँच गए और | गुरुदेवश्री जैसे महान् संत आज हमारे बीच में नहीं रहे हैं। महानिर्वाण यात्रा में तो लाखों की जनता थी, जिधर से भी वह । किन्तु उनके सद्गुण सदा-सर्वदा हमारे सामने मिलेंगे और हम महायात्रा निकली, उधर बाजार की सारी सड़कें भर गईं, छतें भर उनके सद्गुणों को जीवन में अपनाते रहें, यही उस महागुरु के गईं, अपार जनमेदिनी को देखकर हम सभी विस्मित थे, यह जनता चरणों में सच्ची श्रद्धांजलि होगी। जनार्दन का सागर कहाँ से आ रहा है। वस्तुतः उदयपुर के इतिहास में यह दृश्य भी अपूर्व रहा। अभिभूत हूँ उनके सारल्य से ) पूज्य गुरुदेवश्री की आज भौतिक देह हमारे बीच नहीं है, किन्तु उनका गौरव गरिमामय मंडित व्यक्तित्व हमारे सामने है और -डॉ. तेजसिंह गौड़, उज्जैन सदा सामने रहेगा, उनका उज्ज्वल और समुज्ज्वल जीवन हम सभी के लिए प्रेरणा स्रोत रहा है, ऐसे निःस्पृह अध्यात्मयोगी गुरुदेव के आज से कुछ वर्ष पूर्व की बात है, जब राजस्थान केसरी श्रीचरणों में भावांजलि समर्पित करता हूँ। उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी म. सा. का वर्षावास किशनगढ़ मदनगंज (राजस्थान) में था। किसी कारणवश मैं उस समय अजमेर | उनके सद्गुण हमारे मार्गदर्शक होंगे। गया था। वहीं मुझे विदित हुआ था कि पूज्य उपाध्यायश्री जी म. अपने शिष्यों सहित वर्षावास हेतु किशनगढ़, मदनगंज में -दयालाल हींगड़ विराजमान हैं। मैं अपने आपको रोक नहीं पाया और उज्जैन के स्थान पर किशनगढ़ की ओर रवाना हो गया। इसके पूर्व सन् मैं बड़ा सौभाग्यशाली हूँ कि मेरी जन्मभूमि में गुरुदेव श्री के १९८२ में एक दीक्षा प्रसंग में नोखा (चांदावतों का) में मैं आपश्री पावन संस्मरण जुड़े हुए हैं। गुरुदेवश्री बाल्यकाल में वहाँ पर रहे के व्यक्तित्व से प्रभावित हो चुका था। यद्यपि उस समय कुछ ही थे। हमारे गाँव के अम्बालाल जी ओरड़िया के वहाँ पर वे कार्य क्षण आपश्री के सान्निध्य का लाभ मिल पाया था तथापि आपश्री के करते थे और वहीं पर उनके अन्तर्मानस में वैराग्य का अंकुर सारल्य और स्नेहसिक्त व्यवहार ने मेरे हृदय पर अमिट छाप छोड़ प्रस्फुटित हुआ था। जो अंकुर एक दिन विराट वृक्ष का रूप धारण | दी थी। कर गया उस दिन किसे पता था कि गाय और भैंसों को चराने वाला बालक अपने प्रबल पुरुषार्थ से इस महान ऊँचाई को प्राप्त । जिस समय मैं जैन स्थानक भवन पहुँचा, उस समय आपश्री करेगा और जैनशासन का सरताज बनेगा। अपने कुछ श्रद्धालु भक्तों के साथ किसी विषय पर मंत्रणा कर रहे थे। मैंने उस समय पू. श्री देवेन्द्र मुनिजी म. सा., पू. श्री रमेश मुनि दीक्षा लेने के पश्चात् भी गुरुदेवश्री हमारे प्रान्त में समय-समय जी म. सा., पू. श्री राजेन्द्र मुनि जी. म. सा. आदि के दर्शन किये पर पधारते रहे। चारों ओर अरावली की पर्वत मालाएँ अनंत और पू. श्री उपाध्यायश्री जी के दर्शन करने की इच्छा व्यक्त की। आकाश को छू रही हैं, जहाँ पर केवल पगडंडियों के रास्ते से बड़ी प. श्री राजेन्द्र मनि जी म. स्वयं आपश्री की सेवा में गए और मेरे मुश्किल से पहुँचा जाता था पर गुरुदेवश्री की असीम कृपा हमारे हृदय की भावना बताई। आपश्री ने तत्काल ही मुझे बुलवा लिया प्रान्त पर रही कि गुरुदेवश्री समय-समय पर अपने चरणारविन्दों दी जा गित कर लगभग दस-पन्द्रह मिनट तक चर्चा की रज से हमें पावन करते रहे। करने का मुझे समय दिया। उस समय हमारी विभिन्न विषयों पर गुरुदेवश्री भारत के विविध अंचलों में विचरण करते रहे, कहाँ चर्चा हुई थी। आपश्री ने मुझे बार-बार यही कहा था कि आज कर्नाटक, कहाँ तमिलनाडु, कहाँ म. प्र., कहाँ गुजरात, कहाँ । समाज में मानवीय मूल्यों का ह्रास हो रहा है। इसलिये इस विषयक 100 56896 For Private & Personal use only www jainelibrary.org Jan Education international
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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