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________________ STER oe PODS १०० उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ भाषा में कहा जाए तो जिनका हृदय अकलुष, निष्पाप और वाणी 1 मुझे कहने की आवश्यकता ही नहीं। गुरुदेवश्री की इस निस्पृहता ने में मधुर अलाप है “हिययमपावमकलुसं जीहा वि य महुर भासिणी । मेरे मन को मोह लिया और गुरुदेवश्री की असीम कृपा से मेरी णिच्चं।" आर्थिक दृष्टि से अपार उन्नति हुई। मैं सोचता हूँ कि गुरु कृपा में गुरुदेवश्री का व्यक्तित्व और कृतित्व बहुत ही अद्भुत था। कितनी बड़ी गजब की शक्ति है। COPE उनके असीम गुणों का वर्णन ससीम शब्दों में करना कभी भी संभव । पूना वर्षावास के पश्चात् प्रतिवर्ष कभी एक बार कभी दो बार नहीं है, उनके सद्गुणों की ज्योति हमें सदा आलोक प्रदान करती | मैं सपरिवार तथा महाराष्ट्र के अनेक श्रद्धालु सुश्रावकों को लेकर रहेगी। वे वस्तुतः आलोक पुंज थे, उन्होंने आलोकमय जीवन जीया पहुँचता रहा। मेरी श्रद्धा दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती रही है। और आलोकमय ही उनके जीवन की सांध्य बेला व्यथित हुई।। उदयपुर चद्दर समारोह पर भी मैं पहुँचा। गुरुदेवश्री की शारीरिक उनके चरणों में श्रद्धास्निग्ध श्रद्धांजलि समर्पित करते हुए मैं नत हूँ। स्थिति को देखकर मेरा हृदय व्यथित हो उठा, आज गुरुदेवश्री की भौतिक देह हमारे सामने नहीं है, किन्तु मैंने अनेकों बार ध्यान-साधना में गुरुदेवश्री के दर्शन किए हैं, उनके दिव्य-भव्य देव मेरी ध्यान साधना के गुरु रूप को देखकर मैं स्तंभित हो गया। सूर्य से भी अधिक तेजस्वी उनके चेहरे को देखकर मुझे लगा कि वे बहुत ही ऊँचे देवलोक में -धनराज बांठिया पधारे हैं, दूसरे ही क्षण मैंने संकल्प किया कि गुरुदेवश्री आपश्री के (पूना) | श्रमणपर्याय के रूप में दर्शन होने चाहिए उसी क्षण दर्शन हो गए। मैं उदयपुर समाधि पर गया तब भी मुझे ध्यान में वहाँ पर मुझे सन् १९७५ के बाद श्रद्धेय गुरुदेवश्री पुष्कर मुनि जी म. सा. दोनों ही रूप के दर्शन हुए। का चातुर्मास पूना सादड़ी सदन में था। मेरा मकान भी सादड़ी सदन के पास था। श्री रमेश मुनिजी म. गोचरी के लिए आए और मुझे गुरुदेवश्री के स्वर्गवास होने पर मेरे यहाँ पर भी केसर की पूछा कि आपने गुरुदेवश्री के दर्शन किए या नहीं? यदि दर्शन नहीं वर्षा हुई और जब मैं उदयपुर पहुँचा तो वहाँ के श्रद्धालुओं ने किये हैं तो मेरे साथ चलिए। मुनिजी के द्वारा आग्रह होने से मैं भी बताया कि यहाँ पर भी केसर की वर्षा हुई थी कितने महान् थे सादड़ी सदन में पहुँचा। प्रथम दर्शन में ही मुझे लगा कि हमारे सद्गुरुदेवश्री। वे जन-जन के श्रद्धा केन्द्र थे, उस श्रद्धा केन्द्र उपाध्यायश्री पुष्कर मुनि जी म. एक असाधारण संत हैं। उनके के चरणों में मेरी अनंत आस्थाएँ समर्पित हैं। हे गुरुदेव आपका चुम्बकीय आकर्षण ने मेरे को आकर्षित किया और मैं प्रतिदिन मंगलमय जीवन और आपकी साधना हमारे लिए प्रकाश स्तम्भ की गुरुदेवश्री के दर्शन हेतु जाने लगा। धीरे-धीरे मेरी अपार आस्था तरह हमारा पथ प्रदर्शन करती रहेगी, हमारी आध्यात्मिक ऊर्जा को गुरुदेवश्री के प्रति हो गई। जागृत करती रहेगी, यही है आपके चरणों में हमारी और हमारे परिवार की श्रद्धार्चना। ___एक दिन मैंने गुरुदेवश्री से पूछा कि आपश्री ध्यान करते हैं, मेरी भी इच्छा है कि मैं ध्यान करूँ। गुरुदेवश्री ने अपार कृपा कर मुझे ध्यान करने की विधि बताई और मैं भी ध्यान करने लगा। मेरी प्रगति : गुरुदेव का आशीर्वाद गुरुदेवश्री की असीम कृपा ही कहनी चाहिए कि मुझे ध्यान साधना में सफलता मिली। अनेकों व्यक्ति गुरु-स्मरण कर मैंने ठीक किए हैं, -शांतिलाल तलेसरा जो व्याधि से संत्रस्त व्यक्ति रोते हुए आए वे हँसते हुए विदा हुए। (जसवंतगढ़) यह है गुरुदेवश्री की अपार शक्ति का चमत्कार। संतों का जीवन उज्ज्वल और समुज्ज्वल होता है, उनका _गुरुदेवश्री कितने महान् थे, यह मैं शब्दों के द्वारा व्यक्त नहीं | आदर्श पवित्र होता है, उनके दर्शन से एक प्रेरणा प्राप्त होती है। कर सकता। सागर को सागर से ही उपमित किया जाता है, वैसे ही संत का प्रत्यक्ष जीवन जितना पावन होता है, उतना ही उनका गुरुदेवश्री की महानता की तुलना अन्य किसी से नहीं की जा स्मरण भी पावन होता है। श्रद्धेय उपाध्याय पूज्य गुरुदेवश्री पुष्कर सकती। वे सहज थे, निस्पृह थे। मैंने अनेकों बार गुरुदेवश्री के मुनिजी म. के प्रत्यक्षीकरण का मुझे अनेकों बार सौभाग्य प्राप्त चरणों में निवेदन किया कि मुझे साहित्य छपाना है, कृपाकर हुआ। सन् १९६६ का वर्षावास गुरुदेवश्री का अरावली के फरमाओ। मैं क्या सेवा कर सकता हूँ, पर गुरुदेवश्री सदा यही । पहाड़ियों के अंचल में बसे हुए पदराड़ा ग्राम में था, नन्हा-सा गाँव फरमाते रहे कि जो भी तुम्हारी इच्छा हो, कर सकते हो, पर अपने चारों ओर पहाड़ियाँ ही पहाड़ियाँ किन्तु जहाँ पर संतों के पावन मुखारबिन्द से कभी यह नहीं कहा कि तुझे यह कार्य करना है।। चरण गिरते हों, वहाँ गाँव भी नगर की तरह बन जाता है। अमुक कार्य में इतना तुझे खर्च करना है, मेरे निवेदन करने पर भी पदराड़ा में गुरुदेवश्री के चातुर्मास से एक अभिनव क्रांति का संचार वे सदा मुस्कुराते रहते और फरमाते कि तुम्हारा काम तुम करो। हुआ। मेरी जन्मभूमि यद्यपि जसवंतगढ़ रही किन्तु व्यवसाय की 059655509080mlods000046.ombaab Simpalkaloringemape e For Private & Personal Use Only 2902010005 OROCOMOww.jainelibihar org
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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