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________________ 600000000000080640 900000000000DPSPandu accR 900000 1000000000rate । ९६ उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । 500-500 IEDO स्वामी खिलखिला कर हँस पड़े और मुस्कुराते हुए बोले कि मुझे आज पता चला कि ध्यान भी एक आराम है और यह आराम जीवन द्रष्टा सन्त सच्चा आराम है क्योंकि ध्यान में साधक सभी तनावों में मुक्त हो -गुलाबचन्द कटारिया जाता है। (शिक्षामन्त्री राज, सरकार) 190204 BI श्रद्धेय उपाध्यायश्री जी का जीवन विविध गुणों का पुंज था, तब उनमें विनय, सरलता, सहजता और सद्भाव था। श्रद्धेय सन् १९८० की बात है। परम श्रद्धेय उपाध्याय पूज्य गुरुदेव उपाध्यायश्री जी के चाचागुरु धर्मोपदेशा श्री फूलचन्द जी म. का श्री पुष्कर मुनिजी म. का वर्षावास उदयपुर के पंचायती नोहरे में था। मैं गुरुदेव श्री के प्रवचन में पहुंचा। उनकी मेघ गम्भीर गर्जना मेरे जीवन पर असीम उपकार रहा है, उन्हीं से मैंने सम्यक्त्व दीक्षा को सुनकर मेरा हृदय आनन्द-विभोर हो उठा। सम्भव है, पन्द्रह FAR प्राप्त की थी और जीवन की सांध्य बेला में उनकी सेवा का भी अगस्त का दिन रहा होगा। गुरुदेव श्री अपने प्रवचन में बता रहे थे मुझे सौभाग्य मिला था। जब मैंने आपश्री को देखा तभी से मुझे हमने जिस पावन पुण्य धरा पर जन्म लिया है उस राष्ट्र के प्रति लगा कि वही रूप आपका भी है, आप बहुत ही विनोदी स्वभाव के हमारा दायित्व है कि हम सर्वात्मना समर्पित होकर राष्ट्र के थे और मेरे को प्यार भरे शब्दों में कहते, तू तो मेरे चाचा गुरु का समुत्थान हेतु कार्य करें। जैन धर्म ने जहाँ आत्मा परमात्मा शिष्य है, तू गृहस्थ शिष्य है तो मैं साधू शिष्य हूँ अतः हम दोनों आदि दार्शनिक पहलुओं पर गहराई से चर्चा की है वहाँ उसने राष्ट्र एक गुरु भाई हुए, इतने छोटे श्रावक को इतना सन्मान देना महानता की धर्म के सम्बन्ध में भी बहुत गहराई से विश्लेषण किया है। हम DD निशानी है। जिस राष्ट्र में रहते हैं उस राष्ट्र के प्रति हमारा दायित्व है कि हम 984 दो वर्ष पूर्व गाजियाबाद में घोर तपस्वी श्री दीपचंद जी म. पूर्ण नैतिक जीवन जीयें। आज राष्ट्रीय भावनाएँ धीरे-धीरे लुप्त क विराज रहे थे, एक दिन उन्होंने फरमाया, राजस्थान में एक ऐसे होती जा रही हैं जिसके फलस्वरूप आज देश में अराजकता EDHATमहान संत विचरण कर रहे हैं, जो तीन भव कर मोक्ष जाएँगे। फैल रही है। राष्ट्रीय सम्पत्ति को नष्ट करने के लिए भी हम आप उनके दर्शनों का लाभ लो, गाजियाबाद संघ के अनक कतराते नहीं। सदस्यगण उस समय उपस्थित थे, सभी ने जिज्ञासा व्यक्त की कि _ उपाध्याय श्रीजी ने अपने प्रवचन में यह भी कहा कि आज वह महान संत कौन है? तब तपस्वी जी ने कहा, कि वे महान् संत हमारे जीवन में व्यसनों का घुन लग गया है, व्यसन हमारे जीवन area उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी म. हैं। यद्यपि मैंने उन महान संत के को बर्बाद करने वाले कीटाणु हैं। यदि इन कीटाणुओं पर रोक दर्शन नहीं किए हैं पर आप लोग जायें और दर्शन का लाभ लेवें। नहीं लगाई गई तो देश की आर्थिक हानि तो है ही साथ ही स्वास्थ्य TES मैं अपने आपको परम सौभाग्यशाली मानता हूँ कि मैंने उपाध्यायश्री की भी हानि है। कैंसर आदि अनेक रोग व्यसनों की देन हैं। मैंने - पुष्कर मुनिजी म. के बीसों बार दर्शन किए, मैंने उनके हाथ में प्रवचन को सुनकर अपने मन में दृढ़ प्रतिज्ञा की कि अपने जीवन ध्वजा, पद्म, कमल, मत्स्य आदि अनेक शुभ चिन्ह भी देखे थे, उन्हें । में किसी प्रकार के व्यसन का सेवन नहीं करूंगा। और राष्ट्र के यह परम सौभाग्य भी मिला कि उनके शिष्य देवेन्द्र मुनिजी म. प्रति सदा वफादार रहूँगा। मेरे को राष्ट्रीय भावना जो जन्मधूंटी के आज श्रमणसंघ के आचार्य पद पर आसीन हैं। साथ प्राप्त हुई थी उसे पल्लवित और पुष्पित करने का श्रेय 39 उदयपुर में जब उनका चद्दर महोत्सव हुआ उस समय मैं वहाँ । सद्गुरुदेव को है। - पहुँचा। गुरुजी का स्वास्थ्य ठीक नहीं था, मुझे देखते ही उन्होंने मैं अनेकों बार गुरुदेव के चरणों में पहुँचा और उनकी पावन Poad फरमाया, जे. डी. तुम आ गए। गुरुजी का कितना प्यार और प्रेरणा से मेरे में नैतिक बल पैदा हुआ। मैंने गुरुदेव के समक्ष यह Doo वात्सल्य था। चद्दर समारोह के पश्चात् गुरुजी का स्वास्थ्य भी प्रतिज्ञा ग्रहण की कि गुरुदेव मैं राजनीति में रहता हुआ कभी DGE अत्यधिक अस्वस्थ हो गया और उन्होंने संथारा स्वीकार किया, भी रिश्वत नहीं लूंगा और ईमानदारी से जीवन जीऊँगा। आप मुझे लाखों श्रावक उस अवसर पर उपस्थित थे, पर मुझे चमर ढुलाने ऐसा आशीर्वाद दें कि गन्दी राजनीति में भी कमलवत् निर्लिप्त रह प्ति का सुनहरा लाभ मिला, यह लाभ प्रबल पुण्यवानी से ही मुझे सकूँ। प्राप्त हुआ था, मेरी यही मंगलकामना है कि गुरुदेवश्री की गुरुदेव श्री का चद्दर समारोह के अवसर पर उदयपुर कीर्तिकौमुदी सदा-सर्वदा दिदिगन्त में फैलती रहे और उनके । पदार्पण हुआ, चादर समारोह उदयपुर के इतिहास में अपूर्व रहा। विमल विचारों को अपनाकर हम अपने जीवन को धन्य-धन्य बना चादर समारोह के पश्चात् गुरुदेव श्री का स्वास्थ्य यकायक बिगड़ - सकें, यही उस अन्तर्मुखी महापुरुष के चरणों में भावभीनी गया और सन्थारे के साथ स्वर्गवास हुआ। मेरा सौभाग्य रहा कि 1901 श्रद्धांजलि। उस अवसर पर भी मुझे सेवा का अवसर मिला। उनका यशस्वी DDG4 जीवन सदा मुझे प्रेरणा प्रदान करता रहेगा। aodकवन्ततालवतात Pandedvedion international 0000000000007DGaraivateEPersonalise onmypo0000-00000000000१wwwjalnelibrary.org 300000000000000
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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