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________________ अभिनन्दन-पुष्प पूज्यपाद, मालवरत्न, वयोवृद्ध, शास्त्रज्ञ, ज्योतिर्विद करुणासागर श्री कस्तूरचन्दजी महाराज साहब अभिनन्दन ग्रन्थ के उपलक्ष में विनम्र पुष्पांजलि मुनि हस्तीमल 'साहित्यरत्न' पुज्य गुरुदेव के ७२वीं दीक्षा ग्रंथि के उपलक्ष्य में प्रकाश्य अभिनन्दन ग्रन्थ के पुनीत अवसर पर मैं अपने को अत्यन्त उत्फुल्ल एवं प्रफुल्लित अनुभव कर रहा हूँ । ५६ संवत् २००५ से ही मुझे करुणामूर्ति, धर्मज्ञ श्री कस्तूरचन्दजी महाराज साहब के पावन चरणों में सेवा करने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है । इस दीर्घावधि में मैंने महान् परोपकारी करुणासागर के वरदहस्तकमल के पुण्यबल से अपने को घन्य माना । आपके गुणगान के विषय में तुलसीदासजी का कथन कितना समीचीन प्रतीत होता है कि - 'गिरा अनयन, नयन बिनु वाणी' । ठीक यही दशा इस समय मेरी भी है । मैंने श्री जी के विशाल व्यक्तित्व के रूप जो कुछ देखा उसे जिह्वा वर्णन नहीं कर सकती। जीभ के नयन नहीं है जो वह ठीक-ठीक वर्णन कर सके । इस पुनीत पुण्यमय सुअवसर पर आपके श्रीचरणों में शतशत वन्दन । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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