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________________ जैन ज्योतिष साहित्य : एक दृष्टि ३८३ श्लोक एक ही हैं । परन्तु ऋग्वेद ज्योतिष में कुल ३६ श्लोक हैं और दूसरे में ४४ । १ वेदांग ज्योतिष में पञ्चवर्षीय युग पर से उत्तरायण और दक्षिणायन के तिथि, नक्षत्र एवं दिनमान आदि का साधन किया गया है। इसके अनुसार युग का आरम्भ माघ शुक्ल प्रतिपदा के दिन सूर्य और चन्द्रमा के घनिष्ठा नक्षत्र सहित क्रांतिवृत्त में पहुँचने पर माना गया है । वेदांग ज्योतिष का रचनाकाल कई शती ईस्वी पूर्व माना जाता है । इसके रचनाकाल का पता लगाने के लिए विद्वानों ने जैन ज्योतिष को ही पृष्ठभूमि स्वीकार किया है वेदांग ज्योतिष पर अन्य ग्रंथों के प्रभाव की चर्चा करते हुए पं० नेमिचन्द्र शास्त्री ने लिखा है, "वेदांग ज्योतिष पर उसके समकालीन षट्खण्डागम में उपलब्ध ज्योतिष चर्चा, सूर्यप्रज्ञप्ति एवं ज्योतिषकरण्डक आदि जैन ज्योतिष ग्रंथों का प्रभाव स्पष्ट लक्षित होता है। 3 । जैन ग्रन्थ यतिवृषभ का तिलोयपण्णत्ती, सूर्यप्रज्ञप्ति और चन्द्रप्रज्ञप्ति आदि ग्रन्थों में जो वैदिक ग्रन्थों के समय से अवश्य कुछ बाद के हैं, उनमें सामान्य जगत स्वरूप, नारक लोक, भवनवासी लोक, मनुष्य लोक, व्यंतर लोक, ज्योतिर्लोक, सुरलोक और सिद्धलोक आदि का विस्तार से वर्णन किया गया है । यदि जैन 'करणानुयोग' ग्रन्थ या प्राकृत 'लोक विभाग' ग्रन्थ उपलब्ध हो जाते तो इनकी प्राचीनता सिद्ध हो सकती थी । क्योंकि यतिवृषभ के 'तिलोयपण्णत्ती' का आधार वही था और उस ग्रन्थ समाप्ति के समय उत्तराषाढ़ नक्षत्र में शनैश्चर, वृषभ में वृहस्पति और उत्तराफाल्गुनी में चन्द्रमा था तथा शुक्ल पक्ष था । इससे यह तो पूर्णतः सिद्ध हो जाता है कि यतिवृषभ के समय नक्षत्रों, राशियों और ग्रहों का पूर्ण विकास हो चुका था और मनुष्य शुभाशुभ के फल को ज्ञात कर दैनिक कार्यों के उपयोग में लेने लग गये थे । सूर्य प्रज्ञप्ति में २० पाहुड हैं, जिनके अन्तर्गत १०८ सूत्रों में सूर्य तथा चन्द्र व नक्षत्रों की गतियों का विस्तार से वर्णन किया गया है। प्राचीन भारतीय ज्योतिष सम्बन्धी मान्यताओं के अध्ययन के लिए यह रचना विशेष महत्त्वपूर्ण है । " सूर्यप्रज्ञप्ति में पंचवर्षात्मक युग का उल्लेख करते हुए लिखा है, "श्रावण कृष्ण प्रतिपदा के दिन सूर्य जिस समय अभिजित नक्षत्र पर पहुँच जाता था उसी समय पंचवर्षीय युग प्रारम्भ होता है ।" सूर्यप्रज्ञप्ति की भाषा प्राकृत और मलयगिरिसूरि ने संस्कृत टीका लिखी है । इस ग्रन्थ में प्रधान रूप से सूर्य के गमन, आयु, परिवार और संख्या Safar किया गया है । इसमें जम्बूद्वीप में दो सूर्य और दो चन्द्रमा बताये हैं तथा प्रत्येक सूर्य के अट्ठाइस अट्ठाइस नक्षत्र अलग कहे गये हैं । इन सूर्यो का भ्रमण एकान्तर रूप से होता है, जिससे दर्शकों को एक ही सूर्य दृष्टिगोचर होता है । इसमें दिन, पक्ष, मास, अयन आदि का विवरण मिलता है । इसमें वर्णित यह दिनमान सब जगह एक नहीं होगा, क्योंकि हमारे निवास रूपी पृथ्वी, जो कि जम्बूद्वीप का एक भाग है, समतल नहीं है । यद्यपि जैन मान्यता में जम्बूद्वीप को समतल माना गया है, लेकिन सूर्य - प्रज्ञप्ति में बताया गया है कि पृथ्वी के बीच में हिमवान्, महाहिमवान्, निषध, नील, रुक्मि और शिखरिणी इन छः पर्वतों के आ जाने से यह कहीं ऊँची और कहीं नीची हो गई है। १ विक्रम स्मृति ग्रन्थ, पृष्ठ ७५८ २ वर्णी अभिनन्दन ग्रन्थ, पृष्ठ ४६९-७० ३ वही, पृष्ठ ४७० ४ बाबू छोटेलाल जैन स्मृति ग्रन्थ, पृष्ठ २२४ ५ भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान, पृष्ठ ६६ ६ वर्णी अभिनन्दन ग्रन्थ, पृष्ठ ४७० ७ ८ भारतीय ज्योतिष, पृष्ठ ६० भारतीय ज्योतिष, पृष्ठ ६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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