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________________ १३ साहसिक जीवन की बातें सं० १९७४ का वर्षावास कवि श्री हीरालाल जी महाराज गुरुदेव श्री नन्दलाल जी महाराज एवं चरित्रनायक श्री का वर्षावास किशनगढ़ था । परन्तु प्लेग बीमारी के प्रचण्ड प्रकोप के कारण संघ के अत्याग्रह पर मुनियों को अजमेर आना पड़ा । यहाँ कुछ दिनों के पश्चात् कवि श्री हीरालाल जी महाराज की शारीरिक स्थिति दिनोंदिन बिगड़ती गई । अन्ततः संथारा स्वीकार किया गया। अनशन की सूचना पाकर दर्शनार्थ नर-नारियों का भारी प्रवाह उमड़ता रहा। अजमेर एवं किशनगढ़ द्वारा यह निर्वाणोत्सव मनाया गया । शोभा यात्रा में आबाल वृद्ध हजारों सम्मिलित थे । करुणा के अमर देवता तत्पश्चात् चरित्रनायक श्री अपने दो साथी मुनियों के साथ धर्म-प्रचार करते हुए सं० १९७५ का वर्षावास करने के लिए कोटा पधार रहे थे । सदैव आपका मनोबल उत्साहवर्द्धक रहा है । कैसी भी परिस्थिति उभरने पर आप कभी गड़बड़ाते नहीं, अपितु उभरी हुई समस्याओं का समाधान खोजने में जुट जाते हैं । एक ऐसा ही प्रसंग मार्ग के बीच उभर आया था - साथी मुनि श्री भेरूलाल जी महाराज को तेज ज्वर ने आ घेरा । गाँव में जैन परिवार का एक भी घर नहीं था । एक टूटे-फूटे मकान में मुनिवृन्द रात्रि विश्राम ले रहे थे । अनायास रात्रि में आंधी तूफान और प्रचण्ड जल-वृष्टि शुरू हो गयी । सारा मकान चूने लगा । तब पूरे साहस के साथ चरित्रनायक श्री जी एवं श्री कजोड़ीमल जी महाराज दोनों मुनि मिलकर बीमार मुनि की सुरक्षा के लिए रातभर एक मोटी चादर तानकर खड़े रहे । अन्ततोगत्वा आँधी, तूफान, वर्षा शान्त हुई और मुनियों ने कदम आगे बढ़ाए । परन्तु बीमारी ने पीछा नहीं छोड़ा। मुनि जी आगे बढ़ने में असमर्थता प्रगट कर चुके थे । फिर भी आप श्री अधीर नहीं हुए । उन दोनों मुनियों को मंडाना गाँव छोड़कर आप अकेले तीनों मुनियों के उपकरणों को लेकर १६ मील का उग्र विहार कर कोटा पहुँचे । वहाँ महासती जी की सेवा में उन उपकरणों को रखकर पुन: उग्र विहार करके मंडाना आए । फिर धीरे-धीरे कोटा पधारे। जिसजिस ने ये समाचार सुने, वे श्री चरित्रनायक कस्तूरचन्द जी महाराज के इस अदम्य साहस की भूरि-भूरि प्रशंसा किए बिना नहीं रह सके । कहा भी है Jain Education International आँधी आती कभी कभी तूफान भयानक आते हैं । जिससे विचलित होते प्राणी, तन थर-थर थर्राते हैं ॥ घिर-घिर कर घन गरज विज्जु-असि पल-पल पर चमकाते हैं । पर साहसी पथिक निज मन में, जरा नहीं घबराते हैं । परोपकाराय सतां विभूतयः भौतिकता के स्थान पर आध्यात्मिकता एवं धार्मिक जागृति का शंखनाद करते आप श्री ने अपने साथी मुनियों के साथ रामपुरा, जावरा, जयपुर, मंदसौर, रतलाम, उज्जैन क्षेत्रों में चिरस्मरणीय चातुर्मास पूर्ण किये । धर्मपुरी उज्जैन में तपोधनी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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