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________________ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ 'स्थानांग सूत्र' में चार अशुभ भावनाओं के प्रत्येक के चार-चार भेद करके सोलह प्रकार बताये है जो इस प्रकार हैं- ३१६ (१) आसुरी भावनाओं के चार भेद (क) क्रोधी स्वभाव, (ख) अति कलहशीलता, (ग) आहारादि में आसक्ति रखकर तप करना, (घ) निमित्त प्रयोग द्वारा आजीविका करना । (२) आभियोगी भावना के चार भेद (क) आत्मप्रशंसा - अपने मुँह से अपनी प्रशंसा करना, (ख) परपरिवाद - दूसरे की निन्दा करना, (ग) भूतिकर्म - रोगादि की शान्ति के लिए अभिमन्त्रित राख आदि देना, (घ) कौतुककर्म - अनिष्ट शान्ति के लिए मन्त्रोपचार आदि कर्म करना । (३) सम्मोही भावना के चार भेद (४) किल्विषी भावना के चार भेद (क) उन्मार्ग का उपदेश देना, (ख) सन्मार्ग - यात्रा में अन्तराय या बाधा डालना, (ग) काम-भोगों की तीव्र अभिलाषा करना, (घ) अतिलोभ करके बार-बार नियाण (निदान) करना । १ (क) अरिहन्तों की निन्दा करना, (ख) अरिहन्त कथित धर्म की निन्दा करना, अशुभ भावना के इन रूपों का विवेचन करने का यही अभिप्राय है कि इसके दुष्परिणामों से बचा जाय और अपने अन्तःकरण को पवित्र किया जाय । (ग) आचार्य, उपाध्याय की निन्दा करना, (घ) चतुविध संघ की निन्दा करना । शुभ भावना चारित्र को समुज्ज्वल बनाने के लिये शुभ भावना का बड़ा महत्व है। शुभ भावना के बार-बार चिन्तन से साधक सुसंस्कारी बनता है और कल्याण मार्ग की ओर प्रवृत्त होता है । वह संसार में रह कर भी सांसारिक कलुषता में डूबता नहीं । अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचयं और अपरिग्रह ये पांच महाव्रत हैं । ये व्रत जीवन में असंयम का स्रोत रोक कर संयम का द्वार खोलते हैं । इन महाव्रतों की निर्दोष परिपालना के लिये यह आवश्यक है कि इन महाव्रतों पर चिन्तन किया जाय । ये भावनाएँ चारित्र को दृढ़ करती हैं । इसलिये इन्हें चारित्र भावना भी कहते हैं । प्रश्नव्याकरणसूत्र के आधार पर पांच महाव्रतों की भावनाओं का उल्लेख इस प्रकार है(१) अहिसा महाव्रत को पांच भावनाएं- Jain Education International (क) ईर्यासमिति भावना - गमनागमन में सावधानी बरतना । (ख) मनः समिति भावना - मन को सम्यक् चर्या में लगाना । (ग) वचनसमिति भावना - वाणी पर संयम रखना । स्थानांग सूत्र, ४/४, सूत्र ३५४ मुनि श्री कन्हैयालाल 'कमल' द्वारा सम्पादित | For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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