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________________ ८ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ तदनुसार दादा गुरुजी श्री नन्दलाल जी महाराज की पावन सेवा में रहकर प्रथम वर्षावास में आगम सम्बन्धी अच्छा अध्ययन पूरा किया | अनेक गूढ़ातिगूढ़ तात्विक रहस्यों की शुद्ध धारणा की । निःसंकोच स्थानीय श्रावकों से भी तत्त्व-ज्ञान सोखकर अपने ज्ञान भण्डार को परिपुष्ट करने में आप पीछे नहीं रहे । कई वैरागियों को ज्ञान-दान देकर उन्हें धर्म पथ में सुदृढ़ता प्रदान की । आकृतिर्गुणान् कथयति जीवन के पारखी गुरुदेव श्री नन्दलाल जी महाराज तत्क्षण जान गये कि यह मुनि श्री कस्तूरचन्द जी महाराज) यदि इस तरह ज्ञान ग्रहण करने में उद्यमशील रहा तो मेरा पक्का विश्वास है कि - कुछ ही वर्षों में सुयोग्य बनकर स्वतन्त्र विचरण करेगा । डिब्बों की अपेक्षा इंजन बनने वालों की सदा कमी रही है । अर्थात् निभने वालों की अपेक्षा इंजन के समान निभाने वाले साधु बहुत कम हुआ करते हैं। पर इस मुनि के जीवन में निभने- निभाने की सुन्दर कला के साथ-साथ धीरता - गम्भीरता एवं सहिष्णुता भी कूट-कूट कर भरी हुई है । युगल भ्राता जोड़ी का उदय इन्हीं दिनों हमारे चरित्रनायक श्री जी के ज्येष्ठ भ्राता श्री केशरीमल जी का सुप्त मन भी वैराग्य में तत्पर हो उठा । एक दिन केशरीमल जी ताश खेल रहे थे । जावरा निवासी मान्यवर गुलाबचन्द जी कांठेड़ ने जोशीला ठपका देते हुए कहा – अरे केशरीमल ! तुम्हें जरा भी शर्म नहीं । अमूल्य समय व्यर्थ के व्यसनों में पूरा कर रहे हो ? कस्तूरचन्द जी को धन्यवाद ! वे ज्ञान-ध्यान को बढ़ाते हुए मुनि जीवन बिता रहे हैं । बस, केशरीमल जी बड़ी सादड़ी गुरुदेव के कल्याणकारी सान्निध्य में पहुँचकर बोले - "गुरु भगवंत ! जैसे आपने मेरे छोटे भाई को पूज्यनीय बनाया है । मुझ अपावन को भी अपना शिष्य बनावें । मैं दीक्षा लेने के लिए हुजूर के मंगल द्वार पर हाजिर हुआ हूँ ।" यथावसर बड़ी सादड़ी के भव्य प्रांगण में वि० सं० १९६३ कार्तिक शुक्ला १२ के शुभ मुहूर्त में भारी उत्सव के साथ श्री केशरीमल जी चपलोत की दीक्षा विधि सम्पन्न हुई। आपको भी भावी आचार्य श्री खूबचन्द जी महाराज के नेश्राय में घोषित किये गये । अब युगल भ्राताओं (कस्तूरचन्द जी महाराज, केशरीमल जी महाराज ) की जोड़ी सूर्य-चन्द्र की तरह दमकने लगी । विहार यात्रा के संस्मरण तदनन्तर गुरु जी जवाहरलाल जी महाराज, कवि श्री हीरालाल जी महाराज, गुरुदेव श्री नन्दलाल जी महाराज, प्रसिद्ध वक्ता श्री चौथमल जी महाराज एवं पं० श्री देवीलाल जी महाराज आदि महामना मुनियों की पर्युपासना करते हुए हमारे चरित्र - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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