SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 312
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान महावीर और मालवपति दशार्णभद्र D संकलनकर्ता—मुनि भास्कर (रत्न) अनेकान्तवाद के सफल उपदेशक युगदृष्टा चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर ने एकदा बिहार प्रान्त एवं उत्तर प्रदेश के छोटे-मोटे ग्राम-नगर-पुर-पाटन आदि को चरणों से पावन करते हुए, धर्मोपदेश द्वारा भवी रूपी सरोजों को विकसित करते हुए, एवं मिथ्यात्व को तितर-बितर करते हुए हरे-भरे माता पदवी से विभूषित जैसा कि "देश मालवा गहन गम्भीर, डग-डग रोटी पग-पग नीर।" । इस कहावत के अनुसार उस महामहिम मालव धरती पर प्रथम चरण धरा । दूसरा भी इसी क्रमानुसार चरण धरते हुए दसपुर (मन्दसौर) के उस रमणीय शोभावर्धक उद्यान में आ विराजे। वन पालक ने अविलम्ब यह मंगल सूचना जनप्रिय सम्राट् दशार्णभद्र को दी-"नाथ ! आज सारे नगर निवासियों का भाग्योदय हुआ है। आप जिन भगवान के नाम की सायं-प्रात: अर्चा-चर्चा करते हैं, क्षण-क्षण पल-पल जिनकी आप प्रतीक्षा करते हैं एवं जिनके विषय में पूछ-ताछ भी आप निरन्तर किया करते हैं । वे दीनों के प्रतिपालक, करुणा, क्षमा के भंडार, अहिंसा के अवतार, दुःखी-दरिद्रों के उद्धारक, उत्कृष्ट ज्ञान-दर्शन के धारक, सर्वजनहिताय, सर्व जीव सुखाय, स्वयं तिरने वाले, एवं दूसरों को तारने वाले ज्ञातपुत्र भगवान महावीर अपने शिष्य समुदाय सहित इस शोभावर्धक उद्यान में पधारे हैं। बस यही शुभ सूचना देने के लिए मैं आपकी सेवा में आया हूँ।" ___ खुश खबर सुनकर नृप दशार्णभद्र का मन-मयूर भक्ति के वशीभूत होकर जोरों से नाच उठा, झूम उठा । तत्क्षण सिंहासन से उतरा, अपने कमनीय कोमल अंगों को सम्यक प्रकार से संकोच कर प्रभु महावीर को वहीं से विधिवत् वन्दन-नमन कर पुनः सिंहासन पर आसीन हुआ और सूचनादायक को सहर्ष विपुल जीवनोपयोगी धनराशि देकर विदा किया । आज प्रभु की धर्म देशना से दशपुर की रंग-स्थली, तीर्थस्थली बन चुकी थी। उसी उद्यान के सन्निकट साफ-सुथरे विशाल भू-भाग पर देवताओं ने समवसरण की रचना की थी। जिसमें हजारों नर-नारियों का समूह चारों ओर से उमड़ पड़ा था। नभ मार्ग से देव देवी परिवार भी सोल्लास धरा पर उतर रहे थे, तो तीसरी ओर से पशु-पक्षी की पंक्तियाँ भी एक के बाद एक उसी ओर वाणी-सुधापान हेतु भागी आरही थी। इस प्रकार दशपुर का पवित्र प्रांगण प्रभु के पदार्पण से धन्य-धन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy