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________________ मालवा के श्वेताम्बर जैन भाषा-कवि २७५ सम्वत सोल बिहुत्तरइ, नयर उजेणी मझार जी। मगसिर सुदि वारस दिने, थुणिऊ श्री अणगारोजी । जैन गुर्जर कवियो भाग १ पृष्ठ १८४ के अनुसार यह रास प्रकाशित भी हो चुका है। ८. इसी बीच सम्वत् १६६१ में तपागच्छीय कवि विजयकुशल के शिष्य ने शील रत्न रास की रचना की। इस रास का प्रारम्भ उज्जैन के निकटवर्ती सामेर नगर में किया गया था । पूर्णाहुति मगसी पार्श्वनाथ के प्रसाद से हुई है। मालव देश मनोहर दीढि मोहि मन । शेलडी स्याल्य गोधुम विणा, अहवऊ हेश रतन्न ॥११॥ श्री मगसी पास पसाऊलि, कीधउ रास रतन्न । भविक जीव तने सांभली, करयो शील जतन्न ॥१२॥ सामेर नगर सोहामणु, नयर ऊजाणी पास । वाडी वन सर शोभतु जिहां छि देव नीवास ॥१३॥ सम्वत सोल अकसठि कीधऊ रास रसाल । शील तणा गुणमि कहि मूकी आल प्रपाल ॥१४॥ ६. सम्वत् १६७६ के सावण बदी ६ गुरुवार को दशपुर में विजय गच्छ के कवि मनोहरदास ने 'यशोधर चरित्र' काव्य बनाया, जिसकी प्रति बड़ौदा सेन्ट्रल लायब्रेरी में है। सम्वत सोल छहतरई सार । श्रावणवदि षष्ठि गुरुवार । दशपुर नवकण पास पसाय । रच्यो चरित्र सबइ सुखदाय ॥ विजयगच्छि गुण सूरि सूरिंद । जस दरसण हुई परमाणंद ॥ श्रीमुनि देवराज सुखकन्द । तास शिष्य मल्लिदास मुनिन्द ।। तस पद पंकज सेवक सदा । मनोहरदास कहई मुनि मुदा ॥ जा मन्दिर अवनी चिर रहई । तां लगि अ चरित्र गह गहई । राय जसोधर तणो चरित्र । सांभलतां हुई पुण्य पवित्र ॥ ओ चरित्र नरनारी भणई । तेहनइ लिछमी घर आंगणई ॥ १०. सम्वत् १६६३ के जेठ वदी १३ गुरुवार को सारंगपुर गुजराती लोकागच्छीय कवि रामदास ने दान के महात्म्य पर पुण्यपाल का रास बनाया। इसमें चार खण्ड हैं, कुल गाथाएँ ८२३ हैं। सम्वत सोल त्रयाणुवा (१६९३) वर्षे, मालव देश मझारि । सारंगपुर सुन्दर नगरे, जेठ वदि तेरसरे वृहस्पतिवार । पुन्यपाल चरित सोहामणो, सांभले जे नर सुजाण । ऋद्धि समृद्ध सुख-सम्पदा, ते पगि पगि पामेरे कोडि कल्याण ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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