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________________ करुणा के अमर देवता ५ सफलता का सूर्योदय गुरुदेव से मांगलिक श्रवण कर आप अपने घर पर आये। आज्ञा कैसे प्राप्त होगी ? दिमाग में यही उलझन थी। कहते हैं कि-पुण्यात्मा के लिए कभी-कभी दुरूह कार्य भी सुलभ बन जाता है। आपके लिए भी वैसा ही हुआ। आपके जीजा जी अमीचन्द जी को मालूम हुआ कि-कस्तूरचन्द जी की भावना दीक्षा लेने की है पर आज्ञा के बिना कार्य रुका हुआ है। तत्काल आपने केशरीमलजी को समझा-बुझाकर आज्ञा-पत्र लिखाकर महाराज श्री के कर-कमलों में भेंट किया और बोले कि- अब आप कहीं पर भी श्री कस्तूरचन्द जी को दीक्षा दे सकते हैं। इस पर जावरा श्री संघ में एक नई स्फुरणा अंगड़ाई लेने लगी। दीक्षोत्सव जावरा श्री संघ के आँगन में हो, ऐसा महाराज श्री के सान्निध्य में सभी ने नम्र निवेदन भी किया, किन्तु गुरु जी श्री जवाहरलाल जी महाराज, कविवर्य श्री हीरालाल जी महाराज, पं० प्रवर श्री नन्दलाल जी महाराज, आदि मुनि मण्डल रामपुरा विराजमान हैं। उन्हीं के नेतृत्व में यह दीक्षोत्सव होना उचित रहेगा। पं० श्री खूबचन्द जी महाराज की ओर से संघ को परामर्श मिला। अभिनिष्क्रमण महोत्सव तब शास्त्रज्ञ सुश्रावक श्री मगनीराम जी एवं भाई श्री केशरीमल जी अपने लघु भ्राता वैराग्यानंदी श्री कस्तूरचन्द जी को साथ लेकर रामपुरा विराजित सन्तों की सेवा में पहुँचे । विधिवत्, वन्दना कर बोले-महाराज श्री ! कस्तूरचन्द जी की भावना पं० रत्न श्री खूबचन्द जी महाराज के चरण-कमल में दीक्षा लेने की है। हमने बहुत समझाया पर यह अपने विचारों पर अटल है । सहर्ष हमारी ओर से दीक्षा की अनुमति है । अब आप इसे ज्ञान-ध्यान सिखाकर जल्दी से जल्दी दीक्षा प्रदान करें। _ तदनुसार आवश्यक ज्ञान प्रारम्भ किया गया। बुद्धि की प्रखरता के कारण अतिशीघ्र साधु प्रतिक्रमण, पच्चीस बोल, तैंतीस बोल, पाँच समिति, तीन गुप्ति. आदि अनेक थोकड़े एवं भक्तामर स्तोत्र भी कण्ठस्थ कर लिए। ज्ञान-ध्यान एवं जप-तप के प्रति वैरागी भाई की अधिक रुचि को देखकर रामपुरा के श्रावक काफी प्रभावित हुए। तब रामपुरा श्री संघ ने मुनि मण्डल के सान्निध्य में नम्र निवेदन किया कि-- "वैरागी भाई की योग्यता बड़ी ही सराहनीय है। दीक्षा का यह अपूर्व लाभ हमारे संघ को ही मिलना चाहिए । ऐसी हमारी सविनय प्रार्थना है।" संघ के अत्याग्रह पर धार्मिक महोत्सव वहीं होने का निश्चय हुआ। बस घर-घर में खुशी की लहर उमड़ पड़ी। भारी हर्षोल्लास के क्षणों में संघ द्वारा दीक्षा सम्बन्धी पूर्ण तैयारियां सम्पन्न हुई। बाहरी एवं स्थानीय हजारों मानव-मेदिनी के समक्ष वि० सं० १९६२ वीर सं० २४३२ कार्तिक शुक्ला १३ गुरुवार के मंगल मुहूर्त में आम्र तरु तले गुरु प्रवर श्री नन्दलाल जी महाराज के मुखारविन्द से दीक्षा विधि सम्पन्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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