SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 295
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६२ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ में कहा जा सकता है, इस पुण्यभूमि की गोद में संत, अमीर और दीन-हीन सभी समान भाव से बैठते हैं एवं अपनी आत्मिक सुख-शांति को प्राप्त कर स्वयं को भाग्यशाली मानते हैं। इस मूभाग की भौगोलिक सीमाएं डा० चितामणि उपाध्याय के कथनानुसार "मालव" शब्द उन्नत भूमि का सूचक है। विंध्य पर्वत के उत्तरी आँचल में फैला हुआ विस्तृत पठार सम्पूर्ण मध्य भारत में उन्नत खण्ड बनकर अपनी भौगोलिक सीमा निर्धारित करता है । “मलय" शब्द की तरह मालव भी उच्च भूमि अथवा पहाड़ी क्षेत्र के भाग को प्रगट करता है। यही पठार मालव की स्वाभाविक सीमा का बोध कराता है। फिर भी समय-समय पर राजनैतिक हलचलों के कारण मालव सीमाएँ बदलती रही हैं। प्रसिद्ध इतिहासकार स्मिथ ने आधुनिक मालव के विस्तार एवं सीमाओं के सम्बन्ध में विचार प्रगट करते हुए लिखा कि मध्य भारतीय एजेन्सी से सम्पूर्ण भू-भाग के साथ ही मालवा का क्षेत्र विस्तार दक्षिण में नर्मदा तक, उत्तर में चम्बल तक, पश्चिम में गुजरात एवं पूर्व में बुन्देलखण्ड तक माना जाएगा। स्मिथ महोदय द्वारा मालव प्रदेश की सीमाओं का जो उल्लेख किया गया है, वह अंग्रेजों द्वारा राजनैतिक एवं प्रशासकीय दृष्टि से निर्मित मध्य-भारत क्षेत्र की व्यापकता को लिए हुए है। किन्तु मालव की भौगोलिक स्थिति का यहां केवल स्थूल रूप से ही परिचय होता है। ___ डा० श्याम परमार इस सम्बन्ध में लिखते हैं कि स्थूल रूप से अनेक विद्वान् यह स्वीकार करते हैं कि मालवगण के आगमन के पश्चात् इस जनपद का नाम मालव अथवा मालवा पड़ा । ...."सन्देह नहीं, इस जनपद के प्राचीन होने के अन्य प्रमाण भी उपलब्ध हैं। सिकन्दर के आक्रमण के समय मालवों का उसके साथ युद्ध हुआ था । मद्र और पौरव जाति के साथ मालवों का उल्लेख बृहद् संहिता में इस प्रकार आया है।' श्री राहुल सांकृत्यायन के अनुसार "मल्ल" से मालव शब्द आया है। बुद्ध के समय और उसके भी बहुत पहले मालव अवंति जनपद कहलाता रहा। अनेक ग्रन्थों में मालव शब्द का उल्लेख आया है । महाभारत में प्रसिद्ध कीचक और उसकी भगिनी सुदेष्णा मालवकुमारी से उत्पन्न बताये गये हैं। अश्वपति कैकय की कन्या सावित्री मालवी थी जिसे यम द्वारा मालव नाम के सौ पुत्र होने का वरदान प्राप्त था। मालव जाति की प्राचीन मुद्राएं राजपूताने के कुछ भागों में मिली हैं जो ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी की सिद्ध हुई हैं। उनमें से अधिकांश मुद्राओं पर "मालव नाम जय" अथवा 'जय मालव नाम जय' लिखा है । कुछ मुद्राओं पर मालव जाति के राजाओं के नाम भी हैं। पाणिनी ने ईसा से पांच सौ वर्ष पूर्व मालवों का उल्लेख किया है। मलावी लोक गीत एक विवेचनात्मक अध्ययन (पृष्ठ संख्या ३०) २ अम्बर मद्र कमाल व पौरुवकच्छार दंडपिंगलका । माणहल हण को हल शीतक माण्डव्य भूत पुराः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy