SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 292
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साहित्य एवं कला की पुण्यभूमि- -मालवा २५६ मालवा देश को माँ की गोद कहा गया है । जहाँ अमीर-गरीब और भूखे-प्यासे सभी को आश्रय एवं संरक्षण मिलता है । रेलमार्गों की सम्भव हो गया है। अधिक सुगम बना कर रहा है । कृषि, साधन हैं । भरमार से मालवा के बहुत से भागों का आसानी से भ्रमण मध्य प्रदेश राज्य परिवहन सेवा ने इस प्रदेश की यात्राओं को दिया है । व्यापारिक क्षेत्र में भी यह प्रदेश उत्तरोत्तर विकास पशुपालन, व्यापार, कल-कारखाने व्यावहारिक जीवन के मुख्य संस्कृति का साक्षात् सदन प्राचीनकाल से यहाँ धर्म, दर्शन, संस्कृति, सभ्यता, साहित्य एवं शिल्पकलाओं के अनूठे नमूने देखने को मिलते हैं। मंदिर-मस्जिद - मीनारों की शिल्प कलाकृति एवं किलों की अनोखी बनावट सचमुच ही विस्मय में डालने वाली है । प्राचीन जैन साहित्य के भण्डार भरे पड़े हैं जो हमारी अनुपम निधि है । सदियों से श्रमण संस्कृति एवं वैदिक संस्कृति की अमिट धारा प्रवाहित रही है । सह-अस्तित्व की पवित्र भावना को लेकर दोनों धाराएँ उत्तरोत्तर प्रगतिशील, विचारशील एवं जन-जन के लिए प्रेरक रही है । इस प्रदेश में वैष्णव, शैव, जैन, मुस्लिम धर्म की संस्कृतियां न केवल पनपीं, अपितु आज भी इस प्रदेश में इनके धार्मिक स्थान उनकी गौरव गरिमा का गुणगान कर रही है । वस्तुतः यहाँ के निवासियों के मन-मस्तिष्क पर धर्म-दर्शन का पर्याप्त प्रभाव दृष्टिगोचर होता है । साथ ही साथ यहाँ के भव्य स्थानों में सामूहिकरूप में आबाल वृद्ध धर्माराधना करते हुए मिलते हैं । जहाँ-तहाँ आपको इस रमणीय धरा पर अनेकों प्राचीन कलात्मक स्थल मिलेंगे - उज्जैन, धारा नगरी, तीर्थ स्थली मक्षी दशपुर (मन्दसौर), मांडुजी का किला, ॐकारेश्वर, अर्वाचीनता के प्रतीक जैसे- इन्दौर-भोपाल, रतलाम जहाँ नवीनता एवं प्राचीनता का सुन्दर संगम परिलक्षित होता है । निःसन्देह प्राकृतिक विपुल वैभव से भरे-पूरे इस मालवा देश के अनुपम सौन्दर्य का दर्शन कर प्रत्येक बुद्धिजीवी का मन बाग-बाग होना स्वाभाविक है । इसी प्रकार इस पुण्यभूमि की प्रशंसा करने में देवगण भी पीछे नहीं रहते हैं, जैसा कि - गीतकानि । भागे ॥ कर्मवीर और धर्मवीरों की पुण्यभूमि समय-समय पर इस तपोपूत भूमि ने कई बार सत्ता की खींच-तान में उतारचढ़ाव के कटुक-मधुर झटके सहे हैं । फिर भी इस तपोभूमि की गौरवशाली गोद में कर्म प्रिय जैसी कुछ महान् विभूतियों का अवश्य योगदान रहा है । जैसे - परदुःख Jain Education International गायंति देवा किल धन्यास्तु ते मालव-भूमि For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy