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________________ २५४ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ का विशेषज्ञ, संगीत में अतुल प्रवीण, गम्भीर शास्त्र युक्त, चातुर्य की एकमात्र निवास भूमि, अतुल सद्गुणों से उन्नति करने वाला श्रीमालवंश का निर्मल बुद्धि मंडन विराजता है। महेश्वर कवि के काव्य मनोहर के सर्ग १ और २ में मंडन के विषय में लिखा है कि मंडन झांझण संघवी के दूसरे पुत्र बाहड़ का छोटा पुत्र था। वह व्याकरण, अलंकार, संगीत, तथा अन्य शास्त्रों का महान बिद्वान था। विद्वान व्यक्तियों पर इसका बड़ा प्रेम था। इसके यहाँ विद्वानों की सभा लगी रहती थी, जिसमें उत्तम कवि अच्छे काव्यों की, प्रबन्धों की और प्राकृत भाषा के कवियों की उदार कथाओं की स्तुति करते थे और नैयायिक, वैशेषिक, भाट्ट, वेदान्ती, सांख्य, प्रभाकर, बौद्धमत के महान विद्वान उपस्थित रहकर इसकी प्रशंसा करते थे। गणित, भूगोल, शकुन, प्रश्न भेद, मुहूर्त और वृहत जातक में निष्णात, देश ऋतुकाल, प्रकृति रोग, ब्रण चिकित्सा आदि के लक्षणों के ज्ञाता, असाध्यसाध्यादि रसक्रिया में निपुण वैद्य, साहित्यविद्, नायक नायिका भेद को जानने वाले इसकी सभा में उपस्थित रहते थे। उत्तम-उत्तम गायिकाएं, गायक आदि इसके यहाँ आते रहते थे और इसकी संगीत शास्त्र की अद्वितीय योग्यता को देखकर अवाक् रह जाते थे। यह सबको भूमि, वस्त्र, आभूषण, धन आदि दान में देता था। याचकों को भी यह दान करता था । मंडन के ग्रंथ शृगारमंडन और सारस्वतमंडन के आधार पर डा० पी० के० गौडे ने निम्नांकित जानकारी मंडन के विषय में प्रकाशित की है: शृंगार मंडन-इसमें कुल १०८ श्लोक हैं जो शृंगार रस से सम्बन्धित हैं। (१) श्लोक क्रमांक १०२ मालवा के शासक से सम्बन्धित है जिसकी राजधानी मण्डप दुर्ग या मांडू थी। (२) उपर्युक्त मालवा की राजधानी का शासक आलमसाहि था। ___(श्लोक क्रमांक १०३) (३) आलमसाहि ने गुजरात तथा दक्षिण की लड़ाइयों में विजय प्राप्त की थी। _ (श्लोक क्रमांक १०४) (४) झांझण (मंडन का पितामह) श्रीमालवंश का था। यह सोन गिरान्वय का मंत्री कहलाता था जैसा कि काव्यमंडन के श्लोक क्रमांक ५५ में बताया गया है। इसके छः पुत्र थे जिनके नाम काव्यमंडन में बताये गये हैं। (श्लोक क्रमांक १०५) (५) इन पुत्रों में बाहड़ एक प्रतिष्ठित व्यक्ति था। (श्लोक क्रमांक १०६) १ जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृष्ठ ४७६ २ वही, पृष्ठ ४८२ ३ The Jain Antiquary, Vols. IX, No. II of 1943, XI No. 2 of 1946. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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