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________________ विदित होता है कि उस समय धारा में थे । इनके गुरु का नाम श्रीनन्दी था । मालवा में जैनधर्म: ऐतिहासिक विकास २५१ अनेक जैन विद्वान् और आचार्य निवास करते (१२) कवि धनपाल - ये मूलत: ब्राह्मण थे । लघुभ्राता से जैनधर्म की दीक्षा ली । पिता का नाम सर्वदेव था । वाक्पतिराज मुंज की विद्वत्सभा के रत्न थे । मुंज द्वारा इन्हें 'सरस्वती' की उपाधि दी गई थी । संस्कृत और प्राकृत दोनों भाषाओं पर इनका समान अधिकार था। मुंज के सभासद होने से इनका समय ११वीं सदी निश्चित है । इन्होंने अनेक ग्रंथ लिखे, जो इस प्रकार हैं - (१) पाइलच्छी नाममाला - प्राकृत कोश (२) तिलक मञ्जरी - संस्कृत गद्य काव्य (३) अपने छोटे भाई शोभन मुनि कृत स्तोत्र ग्रंथ पर एक संस्कृत टीका । ( ४ ) ऋषभपंचाशिका - प्राकृत ( ५ ) महावीर स्तुति (६) सत्यपुरीय (७) महावीर उत्साह - अपभ्रंश और (८) वीरथुई । (१३) कवि दामोदर - वि० सं० १२८७ में ये गुर्जर देश से मालवा में आये और मालवा के सल्लखणपुर को देखकर संतुष्ट हो गये । ये मेड़ेत्तम वंश के थे । पिता का नाम कवि माल्हण था, जिसने दल्ह का चरित्र बनाया था । कवि के ज्येष्ठ भ्राता का नाम जिनदेव था । कवि दामोदर ने सल्लखणपुर में रहते हुए पृथ्वीधर के पुत्र रामचन्द्र के उपदेश एवं आदेश से तथा मल्ह के पुत्र नागदेव के अनुरोध से नेमिनाथ चरित्र वि० सं० १२८७ में परमार वंशीय राजा देवपाल के राज्य में बनाकर समाप्त किया । (१४) मेरुतु गाचार्य - इन्होंने अपना प्रसिद्ध ऐतिहासिक सामग्री से परिपूर्ण ग्रंथ "प्रबन्ध चिंतामणि" विक्रम सं० १३६१ में लिखा । इसमें पाँच सर्ग हैं। इसके अतिरिक्त विचार श्रेणी, स्थविरावली और महापुरुष चरित या उपदेश शती जिसमें ऋषभदेव, शांतिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और वर्धमान तीर्थंकरों के विषय में जानकारी है, की रचना की । परमार काल में जैनधर्म तथा सारस्वतों के दृष्टिकोण से डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन का कथन है कि मुंज के सम्बन्ध में प्रबन्ध चिन्तामणि आदि जैन ग्रंथों में अनेक कथायें मिलती हैं । नवसाहसांकचरित के लेखक पद्मगुप्त, दशरूपक के लेखक धनञ्जय, उसके भाई धनिक, जैन कवि धनपाल आदि अनेक कवियों का वह आश्रयदाता था । जैनाचार्य महासेन और अमितगति का यह राजा बहुत सम्मान करता था । इन जैनाचार्यों ने उसके काल में अनेक ग्रंथों की रचना की। मुंज स्वयं जैनी था या नहीं, यह नहीं कहा जा सकता किन्तु वह जैनधर्म का प्रबल पोषक था, इसमें सन्देह नहीं है । उसका उत्तराfधकारी और भाई सिंधुल या सिंधुराज कुमार नारायण नवसाहसांक ( ९९६ - १००६ ई० ) भी जैनधर्म का पोषक था । प्रद्युम्न चरित के कर्त्ता मुनि महासेन का गुरुवत् पोषक था । अभिनव कालिदास, कवि परिमल का नवसाहसांकचरित्र इसी राजा की प्रशंसा में लिखा गया है । १ भारतीय इतिहास : एक दृष्टि, पृष्ठ १६७ से १६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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