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________________ २३६ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ हेतु कलिंग सम्राट् खारवेल ने निर्ग्रन्थ श्रमणों का सम्मेलन बुलाया था, उसमें मथुरा, उज्जैन और गिरिनगर के निर्ग्रन्थ श्रमण ही विशेष रूप से आमंत्रित थे। मालवभूमि पर शकों का आधिपत्य-मालवा पर शकों के आधिपत्य का उल्लेख 'कालकाचार्य कथानक' एवं 'यशोधर चरित्र' में हुआ है। उस समय मालवा पर गर्दभिल्ल का राज्य था, जो खारवेल का वंशज था। गर्दभिल्ल दुश्चरित्र था। उसने 'खण्ड वस्त्रधारी' जैन सम्प्रदाय के कालक नामक आचार्य की रूपवती साध्वी बहन सरस्वती को अपने अन्तःपुर में बुला लिया। कालकाचार्य इस बात को सहन न कर सके और शक राजाओं को उत्तेजित कर गर्दभिल्ल पर आक्रमण करवा दिया । शकराज विजयी हुए और उनका आधिपत्य मालवा और उज्जयिनी पर हो गया। पश्चात् कालकाचार्य ने बहन सरस्वती का उद्धार किया और प्रायश्चित्त लेकर वह पुन: जैन साध्वी बन गई। मालवा पर विक्रमादित्य का अधिकार आन्ध्रवंशीय राजा अपने निकट सम्बन्धी गर्दभिल्ल के पतन को सहन नहीं कर सके और आन्ध्रभृत्य गौतमीपुत्र शातकणि शकों से जूझ पड़े। इस समय शकों की राजधानी भृगुकच्छ (भड़ोंच) थी, और उज्जैन के निकट का उनका राज्य विस्तार था। वे शक्तिशाली थे। शातकर्णि पराजित हुए, परन्तु उन्होंने कुटिल बुद्धि से काम लिया। उन्होंने नरवाहन का कोष धार्मिक कार्यों में व्यय करवा कर, खाली कर दिया और पुनः आक्रमण कर उसे पराजित किया । तब मालवा और उसकी राजधानी उज्जयिनी मुक्त हुई। जैनसाहित्य विक्रमादित्य की विजय एवं पराक्रमी गाथाओं से भरा पड़ा है। वह जैनधर्म के प्रति सहिष्णु था और जैनों ने शक विजय पर प्रारम्भ विक्रम सम्वत् अपनाया था। कई कथानक इस कथन की पुष्टि करते हैं कि विक्रमादित्य स्वयं जैनधर्म के उपदेशक थे। इससे यह प्रमाणित होता है कि विश्व विख्यात सम्राट विक्रम का जैनधर्म के प्रति कितना लगाव था। चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य और जैनाचार्यों का केन्द्र-चन्द्रगुप्त (द्वितीय) विक्रमा. दित्य गुप्त साम्राज्य का प्रतापी राजा था। उसने मालव विजय कर उज्जयिनी को अपने अन्तर्गत ले लिया। उसकी राजसभा में क्षपणक (दिगम्बर जैनाचार्य) को सम्मान प्राप्त था। जैन शास्त्रों के अनुसार वे सिद्धसेन नामक आचार्य थे, जिन्होंने महाकाली १ जर्नल ऑफ दि विहार एण्ड उड़ीसा रिसर्च सोसाइटी, भाग-१३, पृ० २३६ । २ कालकाचार्य कथानक-प्रभावक चरित्र (बम्बई), पृष्ठ ३६-४६ ३ शातकर्णि के समय नरवाहन (नहवाण या नहपान) वहाँ का शक राजा था। ४ स्व० काशीप्रसाद जायसवाल ने गौतमीपुत्र शातकणि को उज्जैन में आकर बसने और वहाँ का राजा बनने का उल्लेख किया है। यही शातकणि विक्रमादित्य के नाम से प्रख्यात हुए। (देखिये-जर्नल ऑफ दि बिहार एण्ड उड़ीसा रिसर्च सोसाइटी, भाग १६) ५ संक्षिप्त जैन इतिहास (सूरत) भाग-२, खण्ड २, पृष्ठ ६६, पार्श्वनाथ चरित्र (भवदेवसूरिकत) सर्ग ३ व जैन सेवियर पार्श्वनाथ (बाल्टिमोर यू० एस० ए०) ७४-८३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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