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________________ २१२ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ अतिरिक्त विक्रमादित्य, चन्द्रगुप्त (द्वितीय), हर्ष, राजा भोज (द्वितीय), दिलावर खाँ गोरी, होशंगशाह, महमूद खिलजी, बाबर, बहादुरशाह, हुमायूँ, शेरशाह सूरी तथा सुजातखाँ आदि ने भी मालवा पर समय-समय पर शासन किया है । सन् १६६० के आसपास मराठों ने मालवा में प्रवेश किया और बाजीराव पेशवा, होल्कर तथा सिन्धिया आदि ने लगभग ५० वर्षों तक मालवा को खूब रौंदा और कर वसूल करते हुए समाप्त हो गए। इसके पश्चात् अंग्रेजों ने सारे देश की भांति मालवा में भी स्थायी प्रशासन प्रदान किया जो भारत की स्वतन्त्रता के पूर्व तक चलता रहा । सन् १९४७ में भारत के स्वतन्त्र होने के पश्चात् दो बार राज्यों का गठन किया गया। पहली बार सन् १९४८ में इन्दौर तथा भोपाल जैसी स्वदेशी रियासतें भारतीय संघ में मिलाई गईं, मालवा का विभाजन हुआ । मध्यप्रदेश, मध्य भारत, महाकौशल, भोपाल का निर्माण हुआ । झालावाड़, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ राजस्थान में तथा खानदेश बम्बई प्रेसीडेन्सी में सम्मिलित हुए । सन् १९५६ में दूसरी बार पुनः राज्यों का पुनर्गठन हुआ और फलस्वरूप सम्पूर्ण मालवा प्रदेश को तीन राज्यों - मध्यप्रदेश, राजस्थान तथा महाराष्ट्र में सामिल कर दिया गया । प्राकृतिक बनावट मालवा प्रदेश भारतीय प्रायद्वीप के सबसे उत्तर में स्थित है। इस प्रदेश के उत्तर-पूर्वी भाग में बुन्देलखण्ड नीस अधिकता से पाई जाती है । जोहरबाग तथा घार क्षेत्रों के जंगली क्षेत्रों में आचियन समय की चट्टानें पाई जाती हैं । इसके अधिकांश भाग में बसाल्ट चट्टानें पाई जाती हैं। नीमच से पूर्व में सागर तक विन्ध्याचल पहाड़ियाँ फैली हैं । ये पहाड़ियाँ कैमूर के साथ-साथ भानपुरा, झालरापट्टन, नोवर, भोपाल तथा सागर जिलों में सतह पर दिखाई देती हैं । ये पहाड़ियां नर्मदा नदी के उत्तर में एक दीवाल का निर्माण करती हैं । होशंगाबाद के दक्षिण में प्राप्त सतपुड़ा में गोंडवाना की चट्टानें पाई जाती हैं। इस प्रदेश के दक्षिण में डकन, लावा तथा नर्मदा की जलोड़ मिट्टियाँ पाई जाती हैं, जिनके उपजाऊपन के लिए मालवा जगत्प्रसिद्ध है । डकनलावा की गहराई ६०० से लेकर १५०० मीटर तक है। इसका निर्माण पृथ्वी के आंतरिक लावा प्रवाह से हुआ है । यह मिट्टी इस समय परिपक्वावस्था में पाई जाती है । भू-संरचना की दृष्टि से मालवा प्रदेश को निम्न प्राकृतिक विभागों में बाँटा जा सकता है। उपविभागों का नाम : मालवा पठार (१) विस्तार एवं नदी तंत्र - भोपाल गुना, विन्ध्याचल पहाड़ियाँ तथा मच्छलप घाट के बीच में फैला है । इसकी सामान्य ऊँचाई ५००-६०० मीटर है। माही - चम्बल, काली-सिन्ध, पारवती तथा बेतवा नदियों का ऊपरी भाग इसमें प्रवाहित होता है । (२) पश्चिमी विन्ध्यान पहाड़ियाँ - इस उपविभाग में तीव्र ढाल है । ६५० कि० For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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