SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Jain Education International शुभकामना एवं श्रद्धाचंन गुरु-गुण-गान सती श्री ज्ञानवती जो हैं, शासन के सितारे हैं । के ये गुरु, थ के उजियारे हैं |र || गुरु कस्तूर प्यारे प्राण भक्तों ये मालव के हैं रतन, जावरा है इनका वतन, जग जान लिया झूठा, और सफल किया नर-तन । रतिचन्द पिता, माता 'फूला' के दुलारे हैं... ॥ १ ॥ ओ करुणा के सागर, मेरी छोटी सी गागर, कृपा करके भर दो, ओ सद्गुण के आगर । मझधार नय्या के, बस तुम ही किनारे हो... ॥२॥ अन्तर में प्रभा भर दो, तुम ज्ञान दिवाकर हो, सद्गुण को महका दो, तुम शान्ति सुधाकर हो । ज्ञानवती के ये ही, गुरुदेव सहारे हो... T...11311 O करते श्रद्धा श्रर्पित आज महासती श्री प्रीतिसुधाजी करते श्रद्धा अर्पित आज, जिन शासन के दिव्य सितारे । कस्तूरचन्द जी महाराज ॥ ध्रुवपद || हृदय आप का अति निर्मल है, साथ में पुण्य का जोर प्रबल है, चरणों में नत जनता सकल है, सब की है एक आवाज || १ || स्फटिक सम शुद्ध मन है आपका, परचा देते अजब अनोखा, कइयों ने अनुभव से देखा, डूबते को बनते जहाज || २ || सागर आप कहाते, करुणा दोनों का आश्रय हैं बनते, साधु-नियम में मजबूत रहते, - कहलाते गरीब निवाज || ३ || ज्ञान-क्रिया से जीवन सजाया, 'उज्ज्वल' 'प्रीति' का बिगुल बजाया, हो रहा अभिनन्दन महोत्सव सवाया, चिरायु हों ये संतराज ॥४॥ For Private & Personal Use Only २०१ www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy