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________________ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ मंगल कामना अर्पित है चन्दन मुनि “साहित्य विशारद" जय जय तेरी हम सब करते, करुणा सिन्धु हैं जयकार । जय हो मालवरत्न हमारे, गुण रतनों के जो भण्डार ॥ __ जय हो जीवन गुरुवर तेरा मोह ममता के त्यागी हैं, अन्तरमन निर्मल पानी सा, जिनवाणी के रागी हैं, धन्य - धन्य हो तुम को हरदम तपधारी अणगार। जय हो मालवरत्न हमारे गुण रतनों के जो भण्डार ॥१॥ धीर वीरता के हैं सागर कस्तुर गुरुवर हैं महान, बलिहारी हम जाते चरणों में उपाध्याय हैं मेरे गुणवान, श्रमण संघ के सजग प्रहरी हिमायती हे हितकार ! जय हो मालवरत्न हमारे गुणरतनों के जो भण्डार ।।२॥ हे त्यागमूर्ति सन्त शिरोमणी ! आप सदा ही अजय हैं, गुण-गरिमा के हे महामानव ! क्षमा निधि तेरी जय है, मृदुता सरलता से पूत जीवन, धन्य-धन्य हे मुनि शिणगार ! जय हो मालवरत्न हमारे, गुण रतनों के जो भण्डार ॥३॥ वाक्पटुता, मधुर वाणी आगम के तुम ज्ञाता हो, निपुण हैं ज्योतिष विद्या में सहजग के तुम भ्राता हो, न्यायप्रियता से चन्दन धन्य, जिनकी महिमा का नहीं पार । जय हो मालवरत्न हमारे गुणरतनों के जो भण्डार ॥४॥ दीर्घायु हों मेरे गुरुवर प्यारे, मंगलकामना अर्पित है, अन्तःकरण की भाव भेटना, चरणों में आप समर्पित है, युग-युग जीवो कस्तूर गुरुवर, दिव्य संजम ज्योति अवतार । जय हो मालवरत्न हमारे, गुण रतनों के जो भण्डार ॥५॥ । । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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