SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८२ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ गुरुदेव 'कस्तूरचन्द' यश मलयाद्रि सम महके महा ! C एक श्रद्धालु ज्ञानाब्धि जैनाचार्य 'खूबचन्द' सुगुरु से सद्ज्ञान ले। संसार में क्या सार है इस तत्व को सम्मान दे॥ अविलम्ब बन अणगार घर का त्याग सर्व परिग्रहा। गुरुदेव कस्तूरचन्द यश मलयाद्रि सम महके महा ॥ निज मात-तात 'रु वश को जिसने समुज्ज्वल है किया। सद्धर्म ध्वजा फहराने में जीवन को सार्थक कर दिया । आलोक प्रेम प्रभाव जिनका सुजनगण गुण गा रहा। गुरुदेव कस्तूरचन्द राश मलयाद्रि सम महके महा ॥ वाणी सुधारस से भरी प्राणी पिये इक बेर जो। पद-पंकजों में आ गिरे, बिन वैर इनके फेर वो॥ भवी जीव चातक हेतु जो धन-तुल्य गर्जे हैं अहा। गुरुदेव कस्तूरचन्द यश मलयाद्रि सम महके महा ॥ जैनागमों का ज्ञान शुचि गुरु-मुख अहो ! जिनने पिया। इस हेतु इनके हृदय में विश्राम करुणा ने लिया । हर्यक्ष के सम हेरि इनको वादि गज मद ढा रहा। गुरुदेव कस्तूरचन्द यश मलयाद्रि सम महके महा ॥ अवलोक जिनकी शांत मुदा शांति भी चकरा गई। आबाल-वृद्धों के हृदय में जो सहर्ष समा गई । तप-तेज के समक्ष समझो सूर्य भी फीका रहा। गुरुदेव कस्तूरचन्द यश मलयाद्रि सम महके महा ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy