SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 211
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८० Jain Education International मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ श्रो शासन के सम्राट् ! D प्रियदर्शी श्री सुरेश मुनिजी महाराज (तर्ज- दिल लूटने वाले....) ओ शासन के सम्राट् गुरुवर, ध्यान तुम्हारा लगाऊँगा । हृदय मन्दिर में नाम सदा मैं, मन वच-तन से ध्याऊँगा ॥ टेर॥ इस शस्य - श्यामला मालव भूमि में जन्म आपने पाया है । माता 'फूला' ने फूल दिया, पिता 'रतिचन्द' मन भाया है ॥ में हर्ष विभोर हो सदा आपके, गुण गौरव को गाऊँगा ॥ १ ॥ कुल चौदह वर्ष की वय में आपने, संयम को स्वीकार किया । कार्तिक सुद तेरस 'रामपुरा', पूज्य 'खूबचन्द' धार लिया || ज्योतिषाचार्य कस्तूर गुरु को कभी भूल नहीं पाऊँगा ||२|| जो भी आता आप शरण में, उससे मधुर व्यवहार करे । मिलनसार रहने की गुरुवर, प्यारी मिष्ट गिरा उचरे ॥ 'मालव रत्न' 'करुणा सागर ' की सेवा सदा बजाऊँगा ॥३॥ मानस स्थल गंभीर आपका, वाणी मिश्री सम मानो । देव पुरुष ये अवतरे हैं, प्रकाश ज्योतिर्मय जानो ॥ आशीष आप गुरु देना मुझको, आतम ज्योति जगाऊँगा || ४ || जैन जगत के उजियारे, जयवंत गुरु उद्धार करो। कस्तूरी सम यश फैल रहा गुरु, अखण्ड आनन्द माल करो || 'मुनि सुरेश' आपके चरणों में, मैं हरदम शीश नमाऊँगा ||५|| For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy