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________________ श्रद्धा के दो पुष्प साधु चन्दन बावना, सीतल जाका अंग । तपन बुझावत और की, दे दे अपना रंग ॥ समता धर्म के साधक स्व-पर-कल्याणकारी साधु-महात्मा तरण तारण होते हैं । धर्मधुरीण, त्यागी सन्तों के प्रसाद से ही गृहस्थजनों में धार्मिक भाव जागृत रहता है। "उवसमसारं खु सामण्णं" में आस्था रखने वाले सन्तों का समागम सौभाग्य से ही प्राप्त होता है। मालवरत्न स्थविरवर उपाध्याय श्री कस्तूरचन्दजी महाराज और आगमतत्त्वविशारद प्रवर्तक श्री हीरालालजी महाराज ऐसे ही जंगम तीर्थ हैं, जो अपनी प्रेरकचर्या, तपश्चरण एवं सदुपदेशों द्वारा दीर्घकाल से जनसाधारण को सुपथ दिखाते आ रहे हैं। दोनों सन्तों ने किशोरावस्था में ही दीक्षा लेकर तप त्याग के मार्ग को अपनाया था, और संयोग से दोनों का ही विशेष सम्बन्ध मालव भूमि के साथ रहा । इन मुनिद्वय के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के उद्देश्य से यह अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित किया जा रहा है, जो एक श्लाघनीय उपक्रम है । महात्माद्वय के दीर्घायुष्य की कामना करते हुए में उनके प्रति अपनी विनम्र श्रद्धा के दो पुष्प समर्पित करता हूँ । -डा० ज्योतिप्रसाद जैन लखनऊ-१ सन्देश १६६ अभिवन्दनीय सौभाग्य महामहिम मालवरत्न करुणासागर उपाध्याय गुरुदेव श्री कस्तूर चन्दजी महाराज साहब एवं परम श्रद्धेय प्रवर्तक पद विभूषित जैनागमतत्त्वविशारद श्री हीरालालजी महाराज साहब के तपोमय, त्यागी-संयमी, यशस्वी जीवन से उत्प्रेरित होकर " मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ " प्रकाश में आ रहा है, बड़े ही गौरव का विषय है । परमपूज्य द्वय महान् मुनिवरों का जीवन सूर्य के समान तेजस्वी, शशि के समान उज्ज्वल, सागर के समान गम्भीर, बादल के समान उदार, पानी के समान निर्मल, उद्यान के समान मनोरम, स्फटिक के समान स्वच्छ है । Jain Education International जिनकी प्रेरणा का दिव्य प्रकाश प्राप्त कर अनेकों आत्माओं ने अपने जीवन का निर्माण किया है एवं कर रहे हैं । 1 महामनस्वी संयमी श्रमण आत्माओं का अभिनन्दन करने का सौभाग्य से ही अवसर प्राप्त होता है । मैं अपनी ओर से सभक्ति सश्रद्धा वन्दनांजलि पावन श्रीचरणों में अर्पित करती हूँ । साथ ही मुनिद्वय दीर्घायु प्राप्त कर समाज, संघ एवं प्रत्येक नर-नारी के सफल मार्ग-दर्शक बने रहें, यही मंगल कामना करती हूँ । शुभ कामना For Private & Personal Use Only - साध्वी मदन कुँवर खार (बम्बई) www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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