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________________ विराट् विरल व्यक्तित्व जीवन को महान् बनाने के लिए इन गुणों की आवश्यकता होती है । गांभीर्य, धैर्य, वात्सल्य, क्षमा, करुणा । वास्तव में यह गुण जीवन को महान् बनाने में पर्याप्त है, वह जीवन महान् ही नहीं, धन्य भी हो जाता है । उन्हें ही हम 'महान् पुरुष' कहते हैं । सन्देश मेरी दृष्टि में आज भी ऐसे एक महान् पुरुष विराजमान हैं, जिनमें सहज ही उक्त गुणों का संगम हो गया है । वह हैं मालवरत्न, ज्योतिर्विद, स्थविर, भगवन्त, परमोपकारी, करुणासागर श्री कस्तूरचन्दजी महाराज । परम श्रद्धेय गुरुदेवश्री देह से भले ही दीर्घं न हों, किन्तु उनका मानस, उनकी दृष्टि एवं उनके विचार इतने विशाल हैं कि इनके सम्मुख विश्व भी छोटा है । उनके आध्यात्मिक विकास की ऊँचाइयाँ विराट्तम रूप से अक्षुण्ण हैं । मेरे जीवन की सुघड़ता का श्रेय आपको ही है । मुझे वर्षों तक आपश्री की सेवा में रहने का सुअवसर प्राप्त हुआ है । मैंने अनुभव किया है कि आपके पास जो भी संतप्त और पीड़ित जब आया तब वह आपके पास से संतोष का समाधान लेकर ही गया है । किसी भी दीन-दुःखी को देखकर आपका मन द्रवित हो जाता है । संघ एवं समाज पर आपश्री का प्रत्येक क्षण मधुर शासन ही रहा है । कठोरता, कटुता, संघर्ष तथा राग-द्वेष की पतन वृत्ति को गुरुदेवश्री पसन्द ही नहीं करते हैं । परस्पर संघ -स्नेह और शान्ति से ही रहने की सुझाव- सम्मति प्रदान करते रहते हैं । Jain Education International आज इन करुणामयी गुरुदेवश्री के महा-विराट् - विरल - व्यक्तित्व की परमोज्ज्वल सेवा में अपनी लघुतम भावाञ्जलि सादर समर्पित करता हुआ, अपने स्वयं के लिए इस प्रयास को गौरवपूर्ण मान रहा हूँ । For Private & Personal Use Only - मूल मुनि १६१ शुभ कामना www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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