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________________ सादर भावाञ्जलि परम श्रद्धेय मालवरत्न ज्योतिषाचार्य पंडितरत्न उपाध्याय पूज्य गुरुदेव श्री कस्तूरचन्दजी महाराज साहब के धूलिया श्रीसंघ के सदस्यों को दर्शनों का अनेक बार प्रसंग प्राप्त हुआ । सन्देश महाराजश्री समता, सरलता, सहिष्णुता त्रिवेणी के पावन तीर्थ के रूप हैं । महाराजश्री का सदैव हँसमुख चेहरा, शांत-गंभीर-सौम्य मुद्रा से हमें ऐसा आभास होता है कि वे हमारे धर्मपिता ही हैं । ८६ वर्ष की वृद्धावस्था होते हुए भी बड़े धैर्यवंत हैं। अनेक शास्त्रों और ज्योतिष -विषयों पर आपश्री का प्रभुत्व सराहनीय है । कोई भी छोटे-बड़े व्यक्ति, स्त्री, पुरुष महाराजश्री के दर्शन को आवें उनसे प्रेमयुक्त वार्तालाप करते हैं । साथ ही मांगलिक श्रवण का लाभ मिलता है । Jain Education International चतुर्विध संघ पर आपश्री की अनुपम कृपा रहती है। शासनदेव से श्री संघ की यही प्रार्थना है कि चतुविध संघ के हित के लिए दीर्घायुष्य प्राप्त होवे और जनकल्याण का कार्य होता रहे । महाराजश्री के चरणों में धुलिया श्री संघ की वन्दनांजलियाँ समर्पित हैं । आपश्री का विनीत - नेमीचन्द नथमल बोहरा श्री वर्धमान स्था० जैन श्रावक संघ धूलिया For Private & Personal Use Only १५५ शुभ कामना www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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