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________________ १५२ संदेश मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ गुरुद्वय के पवित्र चरणों में वन्दनाञ्जलि - उच्छवलाल मेहता (रतलाम) असीम गुण भण्डार धर्मशासन प्रभावक तपोनिष्ठ रत्नत्रयाराधक जन-जन के उद्धारक आगमोदधि ज्योतिषाचार्य मालवरत्न गुरुदेव श्री कस्तूरचन्दजी महाराज एवं प्रवचनभूषण प्रवर्तक श्री हीरालालजी महाराज के पवित्र पाद पद्मों में श्रद्धा सुमन समर्पित कर मुझे परमानन्द का अनुभव हो रहा है । मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ का मैं हार्दिक स्वागत करता हूँ। जैन समाज के लिए गौरव गरिमा की बात है । शासनदेव से यह शुभ कामना है कि चिरकालपर्यंत गुरुद्वय अपनी तेजोमय आभा एवं जाज्वल्यमान प्रतिभा से जन-जीवन को आलोकित करते हुए जन-कल्याण के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते रहें । इसी मंगलकामना के साथ लेखनी को विराम देता हूँ । करुणा के सागर -निर्मल कुमार लोढ़ा (निम्बाहेड़ा) भारतवर्ष को आध्यात्मिकता की जननी कहा जाय तो भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस भारतभूमि पर अनेक महापुरुष हुए। जिन्होंने यहाँ की जनता के दिलों में अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह के सिद्धान्तों को कूट-कूट कर भरा है, जो कभी भी भुलाये नहीं जा सकते। आज भी देश में ऐसी महान विभूतियाँ विद्यमान हैं, जो समय-समय पर मार्ग-दर्शन देकर हमें ज्ञान की ओर बढ़ने का सन्देश देती रहती हैं । Jain Education International मालवरत्न श्रद्धेय गुरुदेव श्री कस्तूरचन्दजी महाराज स्थानकवासी जैन समाज की एक महान विभूति हैं, जो आज हमारे और आपके लिए प्रकाशस्तम्भ स्वरूप हैं । आपका जन्म ‘जावरा' निवासी सुश्रावक सेठ रतिचन्दजी चपलोत की धर्मपत्नी फूलीबाई चपलोत की कुक्षि से हुआ था । आपश्री ने जैनाचार्य श्री खूबचन्दजी महाराज का शिष्यत्व स्वीकार किया । आपश्री ने देश के विभिन्न प्रदेशों में परिभ्रमण कर जिनवाणी का जन-मानस में अत्यधिक प्रचार किया है । आपश्री के प्रवचन एवं दर्शन से जनता को अति आनन्द एवं शान्ति की प्राप्ति होती है । हम आपका अभिनन्दन करते हुए प्रभु से कामना करते हैं कि 'आप चिरायु हों' । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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