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________________ ६४ : सिद्धान्ताचार्य पं० फलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन-ग्रन्थ कहते हैं कि इस कोषमें इस समयतक एक करोड़ रुपयोंसे अधिक रुपया लिखाया जा चुका है, वसूली भी पर्याप्त हो गई है । अभी तक उससे तीर्थ-रक्षाके ये काम सम्पन्न किए जा चुके हैं । १. जिस तीर्थ क्षेत्रपर जिस बातकी कमी दिखाई देती है उस क्षेत्रपर उसकी पूर्तिके लिए अनुदान देना । इस अनुदानके अनेक भेद हैं-जीर्णोद्धार, धर्मशालाका निर्माण, पूजाकी व्यवस्था आदि । २. तीर्थोका सर्वेक्षण करके उनकी विस्तृत जानकारी लिपिबद्ध करना । ३. गृहस्थाचारके अनुरूप तात्त्विक भमिका तैयार करना । ४. समाजमें फैली हुई धर्मके नामपर कुरीतियोंके उच्चाटनमें योगदान करना । ५. शिक्षाके प्रचारमें आवश्यक सहयोग करना आदि । ये पिताजीके जीवनकी कुछ मुख्य घटनाएँ हैं जो उनके साथ बैठकर की गई बातचीतके आधार पर लिखी गई हैं। ऐसी बहुत सी बातें हैं जो समयाभावके कारण नहीं लिखी जा सकी है और बहुत सी बातोंको काफी संक्षिप्त करके लिखा गया है। घटनाक्रम भी सही नहीं है, और कभी समय मिला तो पूरी जीवनी बादमें लिखी जायेगी ऐसी आशा है। फिर भी जो भी लिखा जा सका है उसमें पिताजीके जीवनकी एक झलक तो मिल ही जाती है। पिताजीने अपने जीवनमें स्वाभिमान और स्वावलंबनको आधार बनाया और विवेकमें जो बात सही लगी उसके लिए लड़ते रहे । विद्यार्थी उन्हें बहुत प्रिय रहे हैं और कितने ही विद्यार्थियोंको उन्होंने अनेक प्रकारसे मदद देकर आगे बढ़ाया। अभी भी ८४ वर्षकी अवस्थामें वे सक्रिय हैं और अपना सारा कार्य करते हैं। अनेक कार्य उन्होंने हाथमें ले रखे हैं और हम श्री जिनेन्द्र प्रभुसे प्रार्थना करते हैं कि वे शतायु होकर अपना अमूल्य योगदान जैनदर्शनको प्रदान करते रहें। AAJinni Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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