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________________ प्रकाशकीय विगत तीन-चार दशकोंमें अभिनन्दन करने और अभिनन्दन-ग्रन्थ तथा स्मृति-ग्रन्थोंके प्रकाशनकी परम्पराका विशेष रूपसे प्रचलन हो गया है। आधुनिकमें जागरणके अग्रदूत पू० श्री १०५ गणेश वर्णीजीके अभिनन्दन ग्रंथ प्रकाशन इस धाराका उद्गम है। प्रस्तुत अभिनन्दन-ग्रन्थ उसी शृङ्खलाकी एक कड़ी हैं । प्रकाशनके क्षेत्रमें इसे एक नई विधाका रूप देनेका भी प्रयास है। सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्रजी भारतीय मनीषियोंमें बहुश्रुत विद्वान् है। जो भी एक बार आपके परिचयमें आता है, वह आपसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। एक सरल व्यक्तित्त्व विद्वत्ताका मान-दण्ड स्थापित करने वाला है, सहज ही इसका निश्चय हो जाता है । साहित्य-साधनाके क्षेत्रमें अर्द्ध शताब्दीसे भी ऊपर समय से आप सतत सम्पादन, अनुवाद तथा ग्रन्थ-रचनामें संलग्न हैं । राष्ट्रीय तथा सामाजिक आन्दोलनोंमें आपकी विशिष्ट भूमिका रही है । आप जागरणके कार्यों में सदा अग्रणी रहे हैं। यही कारण है कि राष्ट्र तथा समाजमें अपना स्थान बनाये हुए हैं । आपकी अपनी अहमियत तथा स्वतन्त्र अस्तित्व है । सम्पूर्ण जैन समाजमें आपका स्थान विशिष्ट है। यद्यपि दो-तीन वर्षोंसे श्रद्धेय पण्डितजीके अभिनन्दनकी चर्चा सुननेमें आ रही थी। किन्तु इस दिशामें न तो कोई योजना ही प्रकाशित हो सकी और न कोई संस्था या समिति ही अग्रसर हो सकी सुयोगकी बात थी कि सिद्धान्त शास्त्रीजीके जयधवला प्रकाशनार्थ काशी आनेपर उनके परम अनुरागी महावीर प्रेस और सेठ भगवानदास परिवारको करणानुयोगके एकमात्र अधिकारी पण्डितजीके प्रति 'गुणिषु प्रमोदं रूपसे आयोजन न होना खटका । इस परिवारने भा० दि० जैन संघके प्राक् प्रधानमंत्री प्रो० खुशालचन्द्रजी गोरावालाकी सहमति से योजनाबद्ध कार्य चलाया और एक समिति गठित की गई। अभिनन्दन ग्रन्थके सम्पादक मण्डलमें डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन, सिद्धान्ताचार्य पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री, पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री, पं० नाथूलाल शास्त्री, ब्र० माणिकचन्द चवरे, प्रो० खुशालचन्द्र गोरावाला, डॉ० देवेन्द्रकुमार शास्त्री का गठन किया गया था । प्रस्तावित योजनाका प्रारूप प्रकाशित हो चुका था। जैन पत्र-पत्रिकाओंमें भी सूचना तथा विवरण प्रकाशित किया गया। अभिनन्दन-ग्रन्थके सम्पादनमें डॉ० देवेन्द्रकुमार शास्त्रीका सक्रिय सहयोग रहा। जिनशासनके सफल प्रभावक एवं सच्चे संपोषक श्रद्धेय पण्डितजीके प्रति पू० एलाचार्य मुनिश्री विद्यानन्दजीकी मंगल कामनासे बम्बई वालोंने भी आर्थिक सहयोग प्रदानकर अपनी भक्ति-भावना प्रदर्शित की है। समितिका यह अभिमत है कि विद्वत्ताका सम्यक् मूल्यांकन व सम्मान ही सच्ची श्रुत-सेवा है। हम न्वित इसलिये भी है कि प्र० एलाचार्य महाराज मनिश्री विद्यानन्दजीका शभ आशीर्वाद हमें मिला है। उनकी मंगल कामनाके परिणामस्वरूप हम जिन-सरस्वती-पुत्रको यह पवित्र अर्घ्य समर्पित कर सके हैं। ग्रन्थ प्रकाशन तथा समारोहमें महाराजा बहादुर सिंह, श्री बाबूलाल पटौदी, श्री रतनलालजी पाटनी, पं० हीरालालजी गंगवाल, सुरेश पाण्डेयजी आदिके सहयोगके लिए भी हम आभारी हैं । हम उन सभी सहयोगियों, दातारों तथा लेखकोंके आभारी हैं जिन्होंने अभिनन्दन-ग्रन्थ तथा अभिनन्दन के इस शुभ कार्यमें तन, मन और धनसे सहयोग प्रदान किया है। अन्तमें, यह अभिनन्दन ग्रन्थ पाठकोंके लिए ही नहीं, विद्वद्वर्ग, अध्येताओं तथा अनुसन्धित्सुओं एवं समाजके प्रगतिशील विचारकोंके लिए भी सारवान सिद्ध होगा। सेठ डालचन्द्र जैन बाबूलाल जैन फागुल्ल अध्यक्ष मंत्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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