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________________ चतुर्थ खण्ड : ४१३ इन सब निर्माण कार्योंके अतिरिक्त स्वामीजीके अनन्य भक्त श्री लुकमानशाहके निवासस्थानके रूपमें चव-तरासह एक कुटी बनी हुई चिरकालसे आ रही है। भेंट व अभिप्राय श्री महाराज माधोराव सिंधियाने ता० २२ फरवरी सन १९०३ की शुभ वेलामें श्री निसईजी क्षेत्र पर आकर क्षेत्रके दर्शन किये थे। उस समय खरई निवासी चौधरी दयानन्दजी उपस्थित थे । दर्शन करनेके बाद महान जनताने इच्छा व्यक्तकी कि क्षेत्रके लिए जो अपेक्षित हो उसकी हमें जानकारी दे। चौधरी साने आप क्षेत्र पर दर्शनार्थ पधारें आपकी इतनी कृपा बनी रहे इसमें हमें सन्तोष है । इसके सिवाय और कोई इच्छा प्रकट नहीं की फिर भी श्री महाराज साहबने क्षेत्रके चारों ओरकी पाठर भूमि स्वेच्छासे क्षेत्रको प्रदान कर दी। क्षेत्रका निर्माण और विस्तार उसी पर हुआ है। अन्तमें महाराज साहबने सम्मति रजिस्टर पृ० १५१ में अपनी सम्मति देते हुए लिखा हैप्रशस्ति-लेख श्री निसईजीकी पूर्व दिशाके दरवाजेकी तिवारीके भीतर दीवालमें जड़ा हुआ शिलापट्ट प्रशस्ति लेख श्री सन्त महाराजजी श्री मल्हारगढ़में स्थान श्री निसईजी है ताहाँ तीरथके परवान तीरथके परवान ताहाँ देहलान सुहाई धरमशाला नाम रानगढ़ सेवनबाई श्री सेंठे हरीदास केस्नचन्द नाम है तिनको सेठानीको नाम कहत हैं जमुनाजीको श्री वेदीजीके सामने पुरव दक्षन कौन रामचन्द कारंदा हते मागौर ब्रामन तीन स्वपंचोंकी तरफसे सबकि खुरई गांओ दयाचन्द तिनिते कहै चौधरीआटको काम चैत्र मास महीना हतौ इकतालीसकी साल ती दिनको पूरी भई तिथ पांचे गुरुवार दसकत कांलुगो लीषे मुनीलाल है नाम हात जोर सबसे कहै जै जै जै सियाराम कारीगिर दस पाँचने बनाओ पूरो काम षुभानामालीकी तरफ लिषे कौनको नाम मी० चैत वदी ५ सन् १८८५ गुले कारीगर गुरुवार सं० १९४१ । सामायिक बारादरी नदी तट श्री निसईजी क्षेत्रकी दिशामें लगभग एक मीलके फासले पर बंतवा नदी है पूरबके तट पर एक पक्का घाट और सामायिक मंदिर बना हुआ है। कहते हैं कि स्वामी इसी स्थान पर आकर सामायिक स्वाध्याय आदि किया करते थे। इसीके स्मृतिस्वरूप सामायिक मंदिरका निर्माण पूरे समाजकी ओरसे घाटका निर्माण वि० सं० २००२ में बांदा निवासी उजयामूरी श्री सेठ बल्देवप्रसाद गुलाबचन्दने कराया है इसके अतिरिक्त अनेक दानी महानुभावोंकी ओरसे वहाँ सम्भवतः ये कोठे बाहरसे आने-जाने वाले अतिथि लोगोंकी सुविधाकी दृष्टिसे बनाये गये है। जनश्रुति यहाँ घाटके सामने नदीमें स्वाभाविक तीन टापू निकले हुए हैं। उनके विषयमें यह जनश्रुति प्रसिद्ध है कि भट्रारक पन्थका विरोध करनेके कारण अनेक भाई-बहिन स्वामीजीके विरोधी हो गये थे फलस्वरूप विरोधियोंने तीन बार नदीमें डुबोया पर प्रत्येक बार डुबाये जाने पर वहाँ एक टापू बनता गया। यह भी कहा जाता है स्वामीजी नदीमें डुबाये जाते समय यह गाथा पढ़ते रहे परमानंद विलासी मोहि लेचल अगम अथासी । मेला श्री निसईजीमें एक तो फाग फूलनाका मेला होता है जिसके प्रतिवर्ष भराये जानेके नियम है दूसरा नैमित्तिक मेला भी भराया जाता है इसके प्रतिवर्ष भराये जानेका नियम नहीं है किन्तु जिस वर्ष किसी व्यक्ति विशेषने इच्छा व्यक्त की उस वर्ष उसकी ओरसे यह मेला भराया जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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