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________________ ३८६ : सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन-ग्रन्थ ठिकानेसार ७९ पत्रसे भी आगे है। ८०वें पत्रसे १०८ तक सूची तथा विशेष विवरण है। १०९ पत्रसे १३८ पत्र तक ठिकानेसार सम्बन्धी तथा दूसरे विषयोंका संकलन है। इसकी लिपि द्वि० भादों सुदी १४ शनिवार सन् १८९०को कुन्डावासी टीकारामने की है । २. दूसरा ठिकानेसार गंजबासौदामें प्राप्त हुआ। इसकी लम्बाई १९ अंगुल तथा चौड़ाई ९ अंगुल है । कुल पत्र संख्या ४२ है। इसकी लिपि जेठ सुदी ८ सम्वत् १९६९ में की गई है। ३. तीसरा ठिकाने सारकी प्राप्ति खुरई (सागर) चैत्यालयसे हई। इसकी लम्बाई लगभग १३ अंगुल, चौड़ाई ९ अंगुल और पत्र संख्या ९८ है। पत्र संख्या ८ में विवरण व सूची है। शेष पत्रोंमें विशेष विषयोंका संकलन है । इनपर पत्र संख्या अंकित नहीं है। इसके लिपिबद्ध होनेकी वही तिथि सम्वत् है जो मल्हारगढ़ निसईके गुटिकाकी है । लेखकका नाम भी वही है। इन तीनों ठिकानेसार ग्रन्थोंमें विषयका संकलन एक क्रमसे नहीं है। किन्तु खुरई चैत्यालय और मल्हारगढ़ निसईजीसे प्राप्त दोनों ठिकानेसार ग्रन्थों की लिपिकी तिथि और लिपिकार ये एक ही हैं। इससे इस बातका तो पता चलता है कि सम्भव है खुरई चैत्यालयकी प्रतिको देखकर मल्हारगढ़ निसईजीके गुटिकाकी प्रतिलिपि की गई है क्योंकि खुरई चैत्यालयका गु टिका कुछ प्राचीन लगता है । इतना अवश्य है कि विषयके संकलनमें लिखानेवालेकी रुचिको ध्यानमें रखा गया है। जिस ठिकानेसारके आधारसे ये तीनों प्रतियाँ तैयार की गई हैं वह कहीं हैं या नहीं इसका अभी तक कहीं पता नहीं चल सका । ये तीनों प्रतियाँ किन्हीं प्राचीन प्रतियोंकी लिपि है, इसका लिपिकारने एक दोहा लिखकर उल्लेख भी किया है । दोहा इस प्रकार है जैसी प्रत देखी हमन, तैसी लई उतार । हमको दोष न दीजिये, बुधजन लीजो सुधार । ३. तीनों बत्तीसियोंके विषयमें तीनों ठिकानेसार ग्रन्थोंमें तीनों बत्तीसियोंके विषयमें जो उल्लेख मिलते हैं उनकी चर्चा करना यहाँ इष्ट हैं । मुद्रित बड़े गुटिकामें प्रथम बत्तीसी मालारोहण छपी है। इसके बाद पण्डित पूजा और इसके बाद कमलबत्तीसी छपी है। मालारोहणका श्री जिनतारण-तरण स्वामीके अनुयायियोंमें विशेष स्थान है। विवाहकी सम्पन्नता इसीके पाठसे की जाती है । इसकी सूचना गंजबासौदाकी प्रतिसे होती है । इसमें कहा गया है माला करेसं रजपुत्र व्याहण चले नृत्यरंज तिनिके समय मालारोहिणी उत्पन्न भई । पत्र सं. ३५ । इससे पता चलता है कि किसी राजपुत्रके विवाहके समय मालारोहिणी बत्तीसी लिखी गई थी। किन्तु मल्हारगढ़ निसईजीकी प्रति पत्र सं० १२ में यह उल्लेख मिलता हैखिमलासे पद्मकमलकी बेटी मनसिरिमाला उत्पन्न भई । परवर मैडीसी चौधरी नाऊनपुरको । ३६ । साथ ही इसी गुटिकाके पत्र संख्या ११५ में यह उल्लेख मिलता है अस्थान खिमलासौ पद्म कमनजू को प्रसाद भयौ । सुहगंसि रमन फूलना पहली गाथा प्रसाद पद्मकमलको । आचरी की गाथामें सूहगावती रुइया जिनको प्रसाद ।।११।। किन्तु यह फूलनाओंके समयके निर्णयका प्रसंग है, इसलिये गंजबासौदाका उल्लेख विशेष प्रामाणिक लगता है, क्योंकि इसके विरुद्ध खुरई चैत्यालयकी प्रतिमें यह उल्लेख है ____ अस्थान खिमलासौ पद्मकमलकौ प्रसाद भयौ सुहगंमि रमन फूलना पहिली गाथा प्रसाद पद्मकमलजूको आचरीकी गाथा मैं सुहगावति रुइया जिनको प्रसाद ॥१२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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