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________________ चतुर्थ खण्ड : ३६७ पद्मावती पुरवाल वखतराम शाहका 'बुद्धिविलास' ग्रन्थ हमारे सामने है। इसमें ८४ खाँगों (जातियों) का नामोल्लेख करते हुए पुरवार (परवार) जातिके सात भेद किये गये हैं-(१) अठसखा परवार, (२) चौसखा परवार, (३) छैसखापरवार, (४) दोसखा परवार, (५) सोरठिया परवार, (६) गांगड़ परवार और (७) पद्मावती परवार । उल्लेख इस प्रकार है। अठसक्खा फुनि है चौसक्खा, सेहसरडा फुनि है दो सक्खा । सोरठिया अर गांगड़ जानो, पद्मावत्या सप्तम मानो' ॥६८७॥ यद्यपि पौरपाट (परवार) जाति मूलमें एक है और उसके ये सात भेद है, पर ८४ जातियोंकी गणना में इन्हें स्वतन्त्र मान लिया गया है । 'प्राग्वाट इतिहास प्रथम भाग'२ की भूमिका पृष्ठ १४-१५ में जिन १६१ जातियांका उल्लेख किया गया है उनमें परवार जातिके कुल ५ नामोंका ही उल्लेख दृष्टिगोचर होता है। उस सूचीमें गांगड़ और सोरठिया ये दो नाम नहीं है । ८४ जातियोंका नामोल्लेख करनेवाली ३-४ सूचियाँ और भी हमारे पास हैं । उनमें भी सात नाम पूरे नहीं उपलब्ध होते, किसीमें किन्हीं नामोंको छोड़ दिया गया है और किसीमें किन्हीं नामोंको । मात्र पद्मावती नाम यह सब सूचियोंमें है। जिस मूल जातिसे इस जातिका निकास माना जाता है उसे आजसे हजार आठ सौ वर्ष पूर्व 'प्राग्वाट' भी कहा जाता था। के० ए० मुंशीने 'गुजरात नो नाथ' ३ नामक एक उपन्यास लिखा है, उसमें उन्होंने इस जातिके लिये पोरवाल, पुरवाल या परवार (पौरपट्ट) नामका उल्लेख न कर इसे 'प्राग्वाट' ही कहा है। ऐसा लगता है कि पूर्व कालमें इसके लिए 'प्राग्वाट' शब्दका व्यवहार बहुलतासे होता रहा है। भट्टारक देवेन्द्रकीर्तिने सूरतके पास रांदेरमें मूलसंघ आ० कुन्दकुन्द आम्नायके जिस भट्टारक पट्टपर विद्यानंदीको प्रतिष्ठित किया था उन्हें एक प्रशस्तिमें (अष्टशाखाप्राग्वाटवंशावतंसानाम्) अष्टशाखा प्राग्वाटवंशका आभूषण' कहा गया है । स्पष्ट है कि जिस परवार जातिको पहले प्राग्वाट कहा जाता था उसके ही वे ज्ञातिभेद है जिनका हम प्रारम्भमें ही उल्लेख कर आये हैं। तत्काल अ० भा० दि० जैन विद्वत्परिषदने स्व० डॉ० नेमिचन्दजी शास्त्री, ज्योतिषाचार्य द्वारा लिखित 'भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङमयका अवदान' ग्रंथ प्रकाशित किया है। उसमें पृष्ठ ४५२ से लेकर एक पट्टावलि दी हुई है। यह पट्टावलि स्व० आचार्य महावीरकीतिके एक गुटिकेसे ली गयी है। उसमें विक्रमको चौथी पाँचवीं शताब्दीमें हए सर्वार्थसिद्धि आदि महान् ग्रन्थोंके कर्ता आ० पूज्यपाद और विक्रमको दशवीं शताब्दीमें हुए आ० माधचन्द्रको पद्मावती पोरवाल उल्लिखित किया गया है। यह भी इस तथ्यको सूचित करता है कि पद्मावती पुरवार यह भी उस वंशका एक भेद है जिसे पूर्वमें प्राग्वाट कहा गया है। यह तो हम पहले ही लिख आये है कि शाह वखतरामने पुरवार या परवार जातिकी जिन सात खांपोंका उल्लेख किया है उनमें एक खांप पद्मावतीपुरवार भी है। परवार जातिमें १४४ मूर और १२ गोत्र प्रसिद्ध हैं इनमें वासल्ल गोत्रके अन्तर्गत एक पद्मावती मृर भी है । 'मूरको' शाख भी कहते हैं । जैसे अठशखा, १. प्रकाशन-राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर । २. प्राग्वाट इतिहास प्रकाशक समिति स्टेशन राणी (मारवाड़ राजस्थान)। ३. प्रकाशन-गुर्जर ग्रन्थरत्न कार्यालय गांधी मार्ग, अहमदाबाद । ४. 'भट्टारक सम्प्रदाय पृ० १७३' जैन संस्कृति संरक्षक संघ, सोलापुर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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