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________________ चतुर्थखण्ड : ३४५ "पुर" शब्द मेवाड़के पुर जिलेका सूचक है और मेवाड़ के लिये 'प्राग्वाट' शब्द भी लिखा मिलता है । देखो, प्रा० इ० पृ० १६ । (३) श्री अगरचन्दजी नाहटाका मत है कि वर्तमान 'गौड़वाड़' सिरोही राजके भागका नाम कभी प्राग्वाट प्रदेश रहा है । वही पृ० १६ (४) मुनि श्री जिनविजयजी स्टे० चन्देरिया (मेवाड़) का मत है कि अबुदपर्वत से लेकर गौड़वाड़ तक लम्बे प्रान्तका नाम पहिले प्राग्वाट प्रदेश था । वही पृ० १६ इन विविध मतों से ऐसा लगता है कि पहिले कभी मेवाड़ प्रदेशके उस भागका नाम प्राग्वाट प्रदेश रहा है जिसके अन्तर्गत अर्बुदपर्वत स्थित है । हो सकता है कि इस प्रदेशमें मुख्यरूपसे बसने वाली जातिका नाम प्राग्वाट जाति रहा होगा । जैन हितैषी भाग ११ अंक ५-६ फाल्गुन चैत्र वि० सं० २४४१ पृ० ५८३ - में लिखा है कि पोड़वाड़वंश श्री हरिभद्र सूरिजीने मेवाड़ देशमें स्थापन करा और तिनका वि० सम्वत् स्वर्गवास होनेका ५७५ का ग्रन्थोंमें लिखा है । (६) 'प्राचीन जैन स्मारक' ( मूलचन्द किसन दास कापड़िया, सूरत ) – १९२६ के पृ० ३६ पर यह लेख अंकित है— यह बहुत सम्भव है कि नागपुर और भंडारामें जो वर्तमान परवार जाति है वह उन अधिकारियोंकी सन्तान हो, जिन्हें मालवाके राजाओंने यहाँ नियत किया हो (देखो भंडारा गजट १९०८) (७) ‘जातिभास्कर’”—-पुस्तक के पृ० २६३ पर लिखा है -- पुरावाल गुजरातके पोरवा-पोरबन्दरके पास होनेसे यह पुरावाल कहकर प्रसिद्ध है । इस समय ललितपुर झाँसी, कानपुर, आगरा, हमीरपुर, बाँदा जिलोंमें इस जातिके बहुतसे लोग रहते हैं । ये यज्ञोपवीत धारण नहीं करते हैं । श्रीमाली ब्राह्मण इनका पौरोहित्य करते हैं । अहमदाबादके विख्यात धनी महाजन भागुभाई पुरोवाल वंशोत्पन्न हैं । उसी पुस्तक के पृ० २७२ में लिखा है- पौरवाड़ ७३ पूरोजी पेंड परिहार माता भात्री ( भातर ) गोभनानांस, गुरु सास्वत, त्रिगुणायत्, माता भद्रकाली सती भात्री ? पौरवाड़, २ परवाड़, ३ दागड़ा भैरादामें मेड़ता परगने में ख्यात दागड़या लढ़ामें, परताणया में पौरवालमें ३ खाँप हैं ? ये कतिपय उल्लेख हैं जिनसे यह निश्चित होता है कि मेवाड़ के प्राग्वाट प्रदेश से लेकर गुजरातके पोरबन्दर तकका प्रदेश इस जातिका (प्राग्वाटका ) मूल निवास स्थान रहा है । वहींसे यह जाति विविध प्रदेशोंमें फैली है और यह जाति तीन भागों में विभक्त हो गई है - पौरवाड़, परवाड़ और पा (जा) गडा । ( १ ) यहाँ इतना विशेष जानना चाहिये कि 'जातिभास्कर' के उल्लेखानुसार अहमदाबाद आदि प्रदेशोंमें बसनेवाले पोरवाड़ बन्धु और बुन्देलखण्डमें बसनेवाले परवार बन्धु एकही वृक्षकी दो शाखायें हैं । इसलिये जिनका यह मत है कि पोरवाल जाति से परवार जाति सर्वथा भिन्न है, उनका वह मत समीचीन प्रतीत नहीं होता । इतना अवश्य है कि वर्तमानमें जिस जातिको परवार नामसे सम्बोधित किया जाता है, वह प्रारम्भसे ही दिगम्बर आम्नायको माननेवाली रही है । इसलिये उत्तरकालमें जिन बन्धुओंने दिगम्बर आम्नायको छोड़कर राज्यादि बाह्य प्रलोभनवश श्वेताम्बर आम्नायको स्वीकार किया उनमें दिगम्बर परवारोंसे इतना अन्तर अवश्य पड़ गया है जिससे यह समझना कठिन हो गया है कि मूलमें ये दोनों जातियाँ कभी एक रही हैं । १. वेंकटेश्वर प्रिंटींग प्रेस. बम्बई प्रकाशन ४४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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