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________________ १६ : सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन-प्रन्थ बहुमुखी प्रतिभाके धनी • भट्टारक चारुकीर्ति स्वामीजी, श्रवणबेलगोला वास्तवमें जिस समाजमें मेधावी विद्वानोंका समादर और सत्कार होता है, वही समाज जीवित है। विद्वान् समाजका प्राण है । आजके इस संघर्षमय वातावरणमें भी किसी सारस्वत पुरुषका अभिनन्दन, ग्रन्थ प्रकाशनके द्वारा होना बहुत ही महत्व रखता है । सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्रीजीका जीवन जिनवाणीके सच्चे स्वरूपके उद्घाटनमें ही बीता है। आपकी कई मौलिक रचनाओंके अध्ययनसे यह अनुभव हुआ है कि आपकी चिन्तन शक्ति गहरी और तात्त्विक है । आप जैसे अगाध पांडित्य और बहुमुखी प्रतिभा संपन्न विद्वान्का सन्मान समाजका ही सन्मान है । ___ हमारी शुभकामना है कि इस पुनीत कार्यमें लगे आपको पूर्ण सफलता मिले और इस कृतिमें समाविष्ट विशिष्ट सामग्री धार्मिक जगतकी समष्टि और व्यष्टि दोनोंके लिए नया स्रोत बने । इति 'भद्रं भूयात्' इत्याशीर्वाद पूर्वक । मंगल कामना .पद्मश्री पण्डिता ब्र० सुमतीबाई शहा, सोलापुर पंडितजीने अपनी पूरी आयु ग्रन्थ संशोधनमें लगाई । मूडबिद्रीके तालेमें रहा हुआ धवल, महाधवल और जयधवलका हिन्दी अनुवाद करके जैन समाजको स्वाध्याय करनेके लिए यह ग्रन्थकी सुविधा उपलब्ध की। पंडितजी एक बड़े तत्वज्ञ और मर्मज्ञ हैं। वे हमारे यहाँ बहुत बार आये। उनके सहवासमें यहाँके त्यागी और आश्रमवासियोंको उनसे फायदा हुआ। उनकी तबियत अच्छी नहीं रही तो भी स्वाध्यायके समय उनका पूरा लक्ष्य अध्यात्म रहता था। पंडितजी स्वस्थ रहें यही कामना करती हूँ। जैन कर्म-सिद्धान्तके प्रढ़ विद्वान् .पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री, वाराणसी पंडित फलचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्री जैन कर्म सिद्धान्तके प्रौढ़ विद्वान् है। सन् १९२१-२३ में मैं पं० फुलचन्द्रजी और पं० जगन्मोहनलालजी, स्व० गुरुवर्य पं. गोपालदासजीके द्वारा संस्थापित जैन सिद्धान्त विद्यालयमें उनके शिष्य स्व० पं० वंशीधरजी न्यायालंकार तथा स्व० पं० देवकीनन्दनजीके पास जैन सिद्धान्तका अध्ययन करते थे और एक ही कमरेमें रहते थे। तभी पं० फलचन्द्रजी कर्मकाण्ड गोम्मटसारके अध्येता प्रसिद्ध थे। उसके पश्चात् तो जब षट्खण्डागमके प्रकाशनका भार स्व० डॉ० हीरालालजीने लिया तो पं० फलचन्द्रजी और स्व० पं० हीरालालजीने मुख्य रूपसे उसके अनुवादका कार्य किया। उसके पश्चात् जब भा० दि० जैन संघ मथुराने बनारसमें जयधवला कार्यालय स्थापित करके कसायपाहुडके प्रकाशनका भार लिया तब पं० फूलचन्द्रजी ही उसके मुख्य सम्पादक नियुक्त किये गये और वे बनारस रहने लगे। हम लोग तो उनके सहायक मात्र थे । कसायपाहुडके भी अनुवादका मुख्य श्रेय उन्हींको है। उन्होंने भारतीय ज्ञानपीठसे प्रकाशित तीसरे सिद्धान्त ग्रन्थ महाबन्धका भी अनुवाद किया है । इस तरह तीनों सिद्धान्त ग्रन्थोंके मुख्यरूपसे अनुवादक वे ही हैं । उनके समान अन्य कोई विद्वान् सिद्धान्त ग्रन्थोंका अधिकारी विद्वान् नहीं है। अतः वे अभिनन्दनीय हैं। हम तो उन्हींके अनुवादोंको पढ़कर सिद्धान्त ग्रन्थोंके ज्ञाता बने हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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