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________________ १०२ : सिद्धान्ताचार्य पं० फलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन-ग्रन्थ सुधारवादी प्रखर विद्वान् नेता .५० यतीन्द्र कुमार वैद्यराज, लखनादौन अत्यन्त साधारण शुद्ध खादीकी वेषभूषामे हर प्रकारकी कृत्रिमता (बनावट) से दूर, सरल स्वभावी, मिलनसार पं० फूलचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्रीको कोई सरलतासे पहचान सका है। आजके इने-गिने शीर्ष विद्वानोंमें उनका प्रमुख स्थान है। वे दीर्घकालसे जैन शासनकी सेवामें समर्पित हैं । कलमके धनी होनेसे जिनवाणीके भंडारको खूब समृद्धि की है । प्रातः स्मरणीय पूज्य गणेश प्रसादजीके शिष्य सच्चे भक्त है। वर्णी ग्रन्थमालाके द्वारा की गई उनकी सेवा कभी भुलाई नहीं जा सकती। मैं पाँच वर्ष पहले कुम्भोज बाहुबलि गया था वहाँके महान् संत कर्मठ साधक मुनी महाराज समन्तभद्रजीके मुखसे निकले ये वचन अभी तक याद हैं। 'वर्तमानमें सम्पूर्ण जैन वाङ्गमयका तलस्पर्शी ठोस विद्वान् है तो पं० फूलचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्री हैं।' मेरा पं फूलचन्दजीसे प्रेम परिचय करीब ४० वर्षसे है । मैं उस समय छत्तीसगढ़में चिकित्सा कार्यरत था । पंडितजीके लभ्राता पंडित भैयालालजी उस समय डोंगरगढ (छत्तीसगढ़) में रहते थे । वहींसे पंडितजीसे सम्पर्क स्थापित हुआ। यद्यपि उनकी ओर मेरी य ग्यतामें जमीन आसमानका फर्क था। पर वे इतने आत्मीय स्नेहसे व्यवहार करते थे। जैसे बराबरी वालेसे होता है। उस समय छत्तीसगढ़की जैन समाज जहाँ अधिकतर परवार लोग रहते हैं। उनमें बड़ी सेन तथा छोटी सेन (दस्सा) समाज ऐसे दो वर्ग थे। अनेक दस्सा ऐसे भी थे जिन्हें आपसी रागद्वेषसे जाति च्युत कर दिया गया था। उनके साथ अछूतों जैसा व्यवहार होता था खानपान तो क्या उन्हें देव दर्शन पूजनसे भी च्युत किया जाता था। अपने धार्मिक अधिकारोंके लिये वे बेचन रहते थे। इन बुराइयोंको दूर करनेके लिये । उदार धर्म समाज प्रेमी सेठ भागचंद जीकी अध्यक्षतामें प्रगतिवादी जैन संघ बनाया गया था । मैं उसका मंत्री था। सेठ भागचंद्र जी पंडित फलचंदजीके बहत श्रद्धालु भक्त थे उसकी प्रेमके कारण पण्डितजी बनारससे ४-५ बार आकर मेरे साथ स्थान-स्थान पर जाकर अपने भाषणोंसे शास्त्री प्रमाणोंसे सिद्ध कर उन्हें दर्शन पूजाका अधिकार दिलाया था। वे बिना हिचकके उन्हीं दस्सा भाइयोंके यहाँ ठहरकर सहभोज करके उनकी हीन भावना को दूर करते थे। मेरा विश्वास है नि स्वार्थ समाजसेवी समर्पित उदार सेवा भावी भविष्यका ज्ञान रखते हैं। पंडितजी हर जगत् भविष्यवाणी करते हैं। आज आप जिनके हाथका पानी नहीं पीते । देव दर्शनमें रुकावट करते हो तीस साल बाद अपनी बेटियाँ व्याह कर सम्मान करेंगे। आज दस्सा बीसाका भेद मिट रहा है आपसमें हजारों सम्बन्ध हो रहे हैं । दि० जैनका युग है । पंडित जीकी भविष्यवाणी सत्य हो रही है। पंडितजी सदासे सूधारवादी नेता है सामाजिक रूढ़ियोंको समूल्य नष्ट करने में जितने आन्दोलन हुए हैं समाजमें पूरा सहयोग रहा है। . आज वे वृद्धताको प्राप्त है। मैं ३ माह पहले उनसे मिलने इन्दौर उदासीन आश्रम गया था। बहुत स्नेह किया । मैंने पूछा अभी भी कुछ जागृतिकी तमन्ना है। तो बोले मैं बूढा हूँ तो क्या हुआ दिलका नौजवान हूँ । शरीर शिथिल हो गया पर भावना प्रधान हूँ । कामना है । शतंजीवम शरदः भूयश्य शदः शतान् शत मदीनाः शतान् शतं प्रव्रजाम शरदः शतम् भुयश्य शदः शतात् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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