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________________ ९२ : सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन-ग्रन्थ चल रहा है। मैंने पूज्य एलाचार्य महाराजके सानिध्यमें बोरीवली त्रिमूर्ति स्थलपर भी पण्डितजीको देखा है। नियमित स्वाध्याय एवं शेष समयमें लेखन उनका कर्तव्य कर्म था। वे एक ऐसे कर्मयोगी पण्डित हैं जो धर्मको जीनेमें आस्था रखते हैं । संक्षेपमें उनका समग्र जीवन धर्ममय है। अखिल भारतीय संस्थाओं तथा समग्र समाजसे मैं कहना चाहँगा कि पण्डितजीका सही सम्मान तभी होगा, जब हम यह संकल्प करें कि वर्तमान विद्वानोंकी पीढ़ीके पश्चात भी हम इस विद्वत् ज्योतिको बुझने नहीं देंगे, तथा होनहार विद्वानोंके पढ़ाने उनके गृहस्थाश्रमको चलानेके लिए विश्वविद्यालय स्तरपर आर्थिक योगदान देंगे, तथा भविष्यके लिए भी उनके जीवन निर्वाहकी सुरक्षाका प्रबन्ध करेंगे । स्मरणीय है कि समाजके इन विद्वानोंने ही आर्य धर्म एवं श्रमण संस्कृतिको अपने उच्चतम शिखरपर पहुँचानेका भगीरथ प्रयत्न किया है । यह देन स्व. पंडित गोपालदासजी बरैया तथा स्व० बाबा वर्णीजी जैसी महान् विभतियोंकी है । पंडित फूलचंदजी द्वारा प्रवर्तित कार्योंके प्रति हमें श्रद्धा सुमन अर्पित करना है तथा संस्थाओंको विवादसे ऊपर उठकर विद्वान तैयार करने में लगाना है जिससे हमारी संस्कृति एवं जिनवाणीकी रक्षा सम्भव हो सकें। ___अन्तमें मैं पूज्य पंडितजीके प्रति अपना अपरिसीम आदर भाव प्रकट करते हुए उन्हें तथा उनके कर्तृत्वको प्रणाम करता हूँ। समाजके गौरव • श्रीमंत सेठ भगवानदास जैन, सागर आदरणीय पं० फूलचंद्र जी जैन सिद्धांतशास्त्री बनारस ( उ. प्र. ) से हमारा सम्बन्ध गत् ५० वर्षोंसे है और निरन्तर ही एक दूसरे के प्रति लगाव-झुकायका भाव, धर्म-प्रेम और समाज हितकी भावनाके कार्योंकी प्रेरणा भी निरंतर बनी हुई है। ___पंडितजी सफल लेखक, रचनाकार, टीकाकार, साहित्य मनीषी, तत्त्व आराधक एवं चितक और जिनेन्द्रोपासक हैं । आपने धार्मिक ग्रन्थोंका अध्ययन-मनन-चिंतन व पठन-पाठन कर आध्यात्मिक जगतमें अविरल ख्याति अर्जित की है-अतः ऐसे मूर्धन्य विद्वान्का अभिनंदन किया जाना भी वास्तविकता से परे नहीं है। जैन सिद्धांतके महान् ग्रन्थ श्री धवला, जयधवला, महाधवला जैसे ग्रन्थोंकी टीकायें अपनी विलक्षण प्रतिभा एवं सैद्धांतिक शैली से जो निरूपण व विश्लेषण कर समाजको समर्पित की हैं-वास्तवमें उनमें आपने "गागरमें सागर" को भर दिया है। इन टीकाओं के अलावा भी आपने लेखनी के द्वारा जिनवाणीके भंडारको भरने में कोई कमी नहीं रखी है और अभी भी सरस्वतीकी सेवा करने का व्रत लिये हये हैं। पंडितजी की जन्म एवं कर्म भुमि बुंदेलखंड होने से यहाँ की समाजके श्रेष्ठिवर्ग जैन समाज एवं तीर्थक्षेत्रोंके प्रति भी उनका असीम अनुराग एवं श्रद्धाका भाव बना हुआ है। बुंदेलखंड में १६वीं शताब्दीके महान जैन आध्यात्मिक संत जिन तारण स्वामीके तीर्थस्थलों व साहित्यके प्रति उनकी अपार श्रद्धा बनी हुई है। प्रसन्नताकी बात है कि हमारे अनुग्रहके फलस्वरूप वह श्रीमद् जिन तारण स्वामीके जीवन दर्शनपर एक शोध पूर्ण प्रबंध लिख रहे हैं। 'बृहद तीन बत्तीसी संग्रह'-की आधुनिक टीका तथा 'श्री तारण तरण जिनवाणी संग्रह'-का संपादनका कार्य भी आध्यात्मिक जगत में एक उपलब्धि है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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