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________________ पूज्य वर्णीजोकी दृष्टिमें पण्डितजी पं० रमेशचन्द बांझल, इन्दौर विद्वत्वर्य पण्डित शिरोमणि श्री फूलचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्री जिनागममें करणानुयोगके विशिष्ट ज्ञाता माने जाते हैं । पण्डितजीने करणानुयोगका सच्चा प्रतिनिधित्व किया है और यही कारण है कि धवल आदि सिद्धान्त ग्रन्थोंकी टीका करनेके कारण धर्मानुरागी मुमुक्षुओंको कर्म-सिद्धान्तकी अवस्थाओं एवं परिस्थितियोंकी पूरी झाँकी देखनेको मिलती है । आर्षानुयायी विद्वानोंकी विभिन्न विशेषताओंमें से एक यह भी महत्त्वपूर्ण विशेषता रही कि आत्मविज्ञापन एवं यशोलिप्साके लिये साहित्य-सृजन नहीं किया । व्यक्तिगत परिचयकी अपेक्षा उन्होंने प्राणी मात्रको प्रयोजनमत तत्त्वोंका विशद वर्णन करना एवं प्राणियोंको अविकल मोक्ष-मार्गमें स्थापित करना तथा स्थित मोक्ष-मार्गियोंके प्रति निविचिकित्सा, स्थितिकरण और वात्सल्य भाव रखना अपना पुनीत अनुष्ठान स्वीकार किया जो कि पं० श्री फुलचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्रीमें स्पष्ट परिलक्षित होता है। पं० जी साहब बड़े धार्मिक, सामाजिक, क्रान्तिकारी, निष्पह प्रवचनकार स्वाभिमानी है और आर्षभक्ति (आपमें) कूट कूट कर भरी है । आपका करणानुयोगका अनुभव बड़ा व्यापक है । आपकी निरीक्षण-शक्ति बड़ी अद्भुत और तीव्र है । करणानुयोगके तो निष्णात पण्डित हैं ही, साथ ही संस्कृतके उद्भट विद्वान् हैं । सृजनात्मक साहित्यकी अभिव्यक्तिके लिये सरल एवं सुबोध हिन्दीको अपनाया (गया है) ताकि भाषाका अल्पज्ञ मुमुक्षु भी हृदयंगम कर सके । पूज्य गणेशप्रसाद वर्णीजीने दो भागोंमें 'मरी जीवन गाथा' के अनेकानेक स्थलोंपर पं० श्री फूलचन्द्रजी को प्रसिद्ध किया है। १. कटनीमें विद्वत्-परिषद् कटनीमें भारतवर्षीय दि० जैन विद्वत्-परिषद्का प्रथम अधिवेशन हुआ, जिसमें अनेक विद्वान् पधारे थे। इनमें एक पं० श्री फूलचन्द्र जी सिद्धान्तशास्त्री हैं; जिनके विषयमें वर्णीजीने उल्लेख किया कि "तथा बनारससे पण्डित फूलचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्री भी, जो कि करणानुयोगके निष्णात और मर्मज्ञ पण्डित है आये थे । आप तो विद्वत-परिषद के प्राण हैं ।' (भा० १ पृष्ठ ५२४) अतः स्पष्ट परिलक्षित होता है कि आप अपने समयके अद्वितीय करणानुयोगके ज्ञाता हैं। २. सागर में शिक्षण-शिविर ___सागरमें धार्मिक शिक्षण-शिविर महोत्सवमें पं० श्री फूलचन्द्र जी सिद्धान्तशास्त्री आदि अनेक उच्चकोटिके विद्वानों के आगमनसे समाज अत्यन्त गौरवान्वित हो रहा था एवं ममक्ष जैनधर्मसे अत्यन्त लाभ हो रहे थे। पं० श्री फूलचन्द्रजीने धवल ग्रन्थके तेरानवे , सूत्रमें 'संजद' पद होना चाहिए, इस विषय पर मार्मिक भाषण किया, जिसका वर्णीजीने उल्लेख किया "इन्हीं चार दिनोंमें विद्वत्-परिषद्को कार्यकारिणीको बैठक हुई । 'संजद' पदकी चर्चा हुई, जिसमें श्री पं० फूलचन्द्र जी सिद्धान्तशास्त्रीका तेरानवे सूत्र में 'संजद' पदको आवश्यकतापर मार्मिक भाषण हुआ और उन्होंने सबकी शंकाओंका समाधान भी किया। इसमें श्री पं० वर्द्धमानजीने अच्छा भाग लिया था । अन्तमें सब विद्वानोंने मिलकर निर्णय दिया कि धवल सिद्धान्तके तेरानवें सूत्रमें 'संजद' पदका होना आवश्यक है।" (भाग १ पृष्ठ ५४६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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