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५२ : श्री महावीर जैन विद्यालय सुवर्णमहोत्सव ग्रन्थ
कंगर पंक्ति बिराजै हो अति छाजै सूरज किरणना, मार्नु निकस्या आज। सहसकिरणना मन मै हो ते जाणे बीजो चंद्र छै, पिण रवि तीजो माझ ॥२॥ न०॥ हिव पुर परसिर खाई हो वड़ छाईधाई बहु जलै, पातालवर पैठ। दरवाजै भली भरजा हो जिम दुरजन नै मन भयरवा, थूल पृथुल गुरु गृठ ॥३॥ न०॥ आगै पुरनी मंडप हो कवि मुखथी जिम तिम वर्णवै, नगर घरोघर मान । ऊँचा मंडप अडिया हो नभिं गडिया सूरज किरण नै, मानु रवि जोवण टान ॥ ४ ॥ न०॥ मंदिर सवि छाजै हो मानु राजै स्फटिक रयणतणा, जाली गोखां जोड । नवल महिल घन मेडी हो मिल मेडी बंगला उज्वला, करणी विराजै कोड ॥ ५॥ न०॥ चहा मंडप राजै हो विराजै मारग चोपडा, श्रेणी हटाउल ओट। फिरता छत्रीसे पउणा हो, नही ऊणा धन धण सुंदरा, व्यापारी बहु मोट ॥ ६ ॥ न०॥ चपल तुरंगम सोहै हो मन मोहै गयवर गाजता, रथ सु पालखीयानी जोर । राज मारग में तरुणी हो गत वरणी गयवरनी सदा चालती माचसमां चोर ॥ ७॥ न० ॥ मिलती हिलती नारी हो सुर नारी पर सोभती, फिरती चोहटा मांह। . लेजो बहु छे भाजी हो मन राजी देखीनै हुवै, वैगण साग विकांह ॥ ८ ॥ न०॥ खारिक पिस्ता खिजूरा हो मन जूरा किस्ता हुवे सदा, पुंगीफल बहु मोल।' अंबा रायण केला हो बहु मेला मेवा सामठा, लेवै लोक अमोल ॥ ९॥ न०॥ जरीयां रेशमी गंठा हो भरि बैठा थिरमा सावटु पट्टु नीला लाल। . पंचरंग पट पांभडीया हो भलजडीयां वींटी नग भला, भारी मोला माल ॥10॥न०॥ साड़ी छीटां सुहावै हो मन भावे ओढण कांबली, देव कुसुम वलि दाख। जाती फल तज चीणी हो वलि फीणी खुरमा जलेबियां, लाडु घेवर साख॥ ११॥ न०॥ देहरा च्यार विराजै हो गाजे नादें अंबरा, ऊंचा अति असमान । कोरणी अति मन हरणी हो वरणी नही जायै सही, गावत गंध्रप गान ॥ १२ ॥ न० ॥ शांतिनाथमहाराजा हो मन भाया सुरनर इंद्रने, श्री प्रभु पार्श्व जिनंद। परतिख परता पूरै हो दुख चूरै, भविजन वृंदना, आपै सुख अमंद ॥ १३॥ न०॥ सरणागत साधार हो मुनिधारै अनुभव ध्यान में, आलंबन जगतात । वीरम परसर राजै हो दिवाजे राजे महीपति, श्री सद्बुजानी जात।। १४ ॥ न०॥ श्रावक बहुतै युक्ति, गुरुभक्ति नित प्रति साचवै, पूजा विविध प्रकार। सतर भेद ने स्नात्र हो, शुचि गात्रै आठ प्रकार सुं, गावै मंगलाचार ॥ १५॥ न०॥ माता ईश्वर गणपति हो, फणपति भैरूं देहरा, सहसलिंग तलाव । जोगण चोसठ मंडी हो, ग्रहचंडी बावन वीरना, पूजे शिवमती भाव ॥ १६॥ न०॥ गछ चोरासीना साला हो ध्रममाला गुणह गंभीरनी, साधु घणाहिय ज्ञान । सामायक बहु पोसा हो नहिं थांपण मोसा को करो, जैनधर्म शुभध्यान ॥ १७॥ न०॥ एहवो पुरवर वसतो हो मुख हसतो इंद्रनगर परै, नहिं एहवो वलि कोय। इक दिन हर्ष वधाई हो तिहां आई श्रीजी साहबा, गच्छ धारी तुम होय ॥ १८॥ न०॥ विनती करि बहुवारि हो हितधारी नहि तुमे साहबा, टोकर सेठ कहै जाण । हिवै तुम पूज पधारो हो अवधारो मंगल चारने, संघ आग्रह बहुमान॥१९॥ न०॥ घणा महोच्छव वाजै हो दिवाजे गाजै आवीया, वीरमगाम तै धाम। घर घर मंगल गाया हो वधाया श्रीजी साहिबा, दीपक मुनि कहै ठाम ॥ २०॥ न०॥
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