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________________ ४६ : श्री महावीर जैन विद्यालय सुवर्णमहोत्सव ग्रन्थ णियमंतत्तणि रंजियउ राउ । सावयविहाण कम्माणुराउ ॥ परणारिपरम्मुहु विगयलोहु । असपत्ति साहु जणजणियमोहु ॥ (सावय० ११४४-७) तथापुणु वीयउ गंदणु सकियच्छे । रज्जकज्जधुरधरणसमच्छे । संघाहिउ असपत्ति असंकिउ । ससिपहकरणिम्मलजसअंकिउ । णिरसियपावपडलणिउरुंबद । जेण पइट्टाविय जिणबिंबइ ॥ (सावय०६।२६१६-८.) चौथा मूर्ति-निर्माता था संघाधिप नेमदास। इनकी भीखा एवं माणिको नामकी दो पत्नियाँ थीं। नेमदास योगिनीपुरके निवासी थे। वे वहाँके वणिक्श्रेष्ठोंमें अग्रगण्य तथा समकालीन राजा प्रतापरूद्र चौहान (वि० सं० १५०६के आसपास) द्वारा सम्मानित थे। इनके छोटे चतुर्थ भाई वीरसिंहने गिरनारयात्रा की थी। इनके पिताका नाम तोसउ था तथा वंश सोमवंशके नामसे प्रसिद्ध था। नेमदासने ग्वालियर तथा अन्य कई स्थानों पर पाषाण एवं धातुकी बहुत-सी मूर्तियों एवं गगनचुम्बी जिनमन्दिरोंका निर्माण कराया था। रइधूका आशीर्वाद उन्हें प्राप्त था अतः धार्मिक एवं साहित्यिक कार्यों में वे सदा इनके साथ रहते थे। रइधूकृत पुण्णासवकहाकी आद्यन्त प्रशस्तिमें इन्हीं बातोंका इस प्रकार उल्लेख किया गया है: ... । संघाहिव णामें मिदासु ॥ .. अग्गेसरु णिववावारकजि । सुमहंतपुरिसपहरुद्दरजि ॥ जिणबिंब अणेय विसुद्धबोह। णिम्मविवि दुग्गइपहणिरोह ॥ सुपइट्ठ काराविउ सुहमणेण । तित्थेसगोत्तु बंधियउ जेण ॥ पुणु सुरविमाणसमु सिंह खेऊ । णियपहकरपिहियउ चंदतेउ । काराविउ जिं जिणणाहभवणु । मिथ्यामयमोहकसायसमणु ।। (पुण्णासव० ११५।६-११). भो रइधू बुह वडियपमोय । ... संसिद्ध जाय तुहु परममित्तु । तउ वयणामियपाणेण तित्तु ॥ पइ किय पइट्टमहु सुहमणेण । जाजय पूरिय धणकंचणेण ॥ पुणु तुव उवएसें जिणविहारु । काराविउ मई दुरियावहार ॥ (पुण्णासव० १६१८-११.) ... ताहं पढमु बुहयण वक्खाणित। णिव पयावरुद्द सम्माणिउ ॥ बहुविधाउफलिहविद्रुममउ । कारावेप्पिणु अगणिय पडिमउ ॥ पतिट्ठाविवि सुहु आवजिउ । सिरितित्थेसरगोत्तु समजिउ ।। जिंणहलग्गि सिहरु चेईहरु। पुण णिम्माविय ससिकरपहहरु॥ णेमिदासु णामें संघाहिउ । जिं जिणसंघभारणिवाहिउ ॥ (पुण्णासव० १३।२।२-६). रइधूने सहजपालके एक पुत्र सहदेव संघपतिको भी मूर्तिप्रतिष्ठापक कहा है। लेकिन इसके सम्बन्ध तथा a mw-- १ सम्मइ० १।८।४ तथा १०।३२।१-६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012002
Book TitleMahavira Jain Vidyalay Suvarna Mahotsav Granth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Vidyalaya Mumbai
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1968
Total Pages950
LanguageGujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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