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________________ ४२ : श्री महावीर जैन विद्यालय सुवर्णमहोत्सव ग्रंथ सुमतिदेवममुं स्तुत येन वः सुमतिसप्तकमाप्ततया कृतम् । परिहृतापथतत्त्वपथार्थिनां सुमतिकोटि विवर्तिभवातिहत् ।। अस्तु, जो कुछ हो, किन्तु इतना निश्चित है कि दिगम्बराचार्य सुमतिने, जो सम्भवतया विक्रमकी सातवीं शताब्दीसे बादके विद्वान नहीं थे. सिद्धसेन के सन्मति पर टीका रची थी। इस तरह सिद्धसेनका सन्मतितर्क सातवीं शताब्दीसे नौवीं शताब्दी तक दिगम्बर परम्परामें आगमिक ग्रन्थके रूपमें मान्य रहा। संभवतया सुमतिदेवकी टीकाके लुप्त हो जाने पर और श्वेताम्बराचार्य अभयदेवकी टीकाके निर्माणके पश्चात् दिगम्बर परम्परामें उसकी मान्यता लुप्त हो गई और उसे श्वेताम्बर परम्पराका ही ग्रन्थ माना जाने लगा। किन्तु वह एक ऐसा अनमोल ग्रन्थ है कि जैनदर्शनके अभ्यासीको उसका पारायण करना ही चाहिये। सन्मतितर्क के सिवाय, जो प्राकृतगाथाबद्ध है, संस्कृतकी कुछ बत्तीसियां भी सिद्धसेनकृत हैं। उनमेंसे एक बत्तीसीका एक चरण पूज्यपाद देवने सर्वार्थसिद्धि टीका के सप्तम अध्याय के १३वें सूत्रकी व्याख्यामें उद्धृत है 'वियोजयति चासुभिर्न च वधेन संयुज्यते' अकलंकदेवने भी अपने तत्त्वार्थवार्तिकमें उक्त सूत्रकी व्याख्यामें उसे उद्धृत किया है। और वीरसेनस्वामीने तो जयधवला टीका(भा० १, पृ० १०८)में उक्त चरणसे सम्बद्ध पूरा श्लोक ही उद्धृत किया है। तथा अकलंक देवने तत्त्वार्थवार्तिकमें आठवें अध्यायके प्रथम सूत्रकी व्याख्यामें भी एक पद्य उद्धृत किया है जो प्रथम द्वात्रिंशतिकाका तीसवां पद्य है। इस तरह सिद्धसेनकी कुछ द्वात्रिंशतिका भी छठी शताब्दीसे ही दिगम्बर परम्परामें मान्य रहीं हैं। इन्हीं द्वात्रिंशतिकाओंमें न्यायावतार भी है और सिद्धसेनकृत माना जाने के कारण उसे उसके नामके अनुरूप जैन परम्परामें न्यायका प्रथम ग्रन्थ माना जाता है। किन्तु उसमें अनेक विप्रतिपत्तियां हैं, और वे अभी तक निर्मूल नहीं हुई हैं। अतः तत्सम्बन्धी विवादको न उठाकर इतना ही लिखना पर्याप्त समझते हैं कि उसकी दिगम्बर परम्परामें कोई मान्यता नहीं मिलती। इस तरह दिगम्बर परम्परामें आचार्य सिद्धसेन अपनी प्रख्यात दार्शनिक कृति सन्मति सूत्र या सन्मतितर्कके द्वारा विशेष रूपसे समाहत हुए हैं। CAR 16ORTAMAN Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012002
Book TitleMahavira Jain Vidyalay Suvarna Mahotsav Granth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Vidyalaya Mumbai
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1968
Total Pages950
LanguageGujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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