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खरतर गच्छके आचार्यों सम्बन्धी कतिपय अज्ञात ऐ० रचनाएँ : ३५ इन्दि दूसम समए साहूणं साहु धम्म धुरजुग्गे संखित्ते वर खित्ते अजा दो चेव जेहिं कया ॥ ६३ ॥ निय गुण माहप्पेणं अणन्न सरिसेण पुहवि पयडेणं । राय वणवीर मालग पमुह पय सेव कारविया ॥ ६४ ॥ मुत्ती ससंक मुत्ती रत्तिं दीहं कला पयासिंती जेसिं विगय कलंका विम्हयया कस्स नो जाया ॥६५॥ विजा मंता तंता जग्गी कंता समागया संता कलिकाले निरतिसए साइसयतं सया पत्ता ॥ ६६ ॥ अट्ट दुहट्ट विओगों धम्म ज्झाणे निओग संजोगे। अणुओगे समिभोगो जेसिं महो कोविमण जोगो ॥६७ ॥ जिणवर समयारामे नाणामिय केलि लालसमणेहिं पसम गएहिं जेहिं न जाणियं काल परि गलणं ॥ ६८॥ सविसेस नाण झाणा नियजीविय मंतगं च जाणित्ता सग पट्ट सिक्ख सिक्खा दत्ता जेहिं सहत्थेणं ॥ ६९॥ येयबर वेर्दै सुहाकर वच्छर अस्सिणस्स सिय पक्खे बारसि दिवसे सग्गं पत्ता सुसमाहिणा जेय ॥ ७० ॥ नागपुरे पुरि तेसिं सुपसत्थं थूम मुद्धरं तित्यं संघेणं कारवियं भवियाण मनोरमत्य करं ॥ ७१॥ रज्जं राएण विणा विणा पयावेण नो खमोराया पुन्नेण विणु पयावो तह तेहि विणाय चंद कुलं ॥७२॥ अज्जवि सुरहइ भुवणं जेसिं जस कुसुम सेहरो सुरही कपूर पूर सरिसो भवि महुयर हरिस रस वरसो ॥ ७३ ॥ इय जिणलद्धी धुणिओ तरुणप्पह सूरिणा सतित्थेणं ललिय सिरी परिकलियं विहि संघे मंगलं देउ ॥४॥ ॥ इति भट्टारक श्री जिनलब्धिसूरिपादानां चहुत्तरी समाप्ता॥
श्रीजिनलब्धिसरिस्तूप नमस्कार
जा सूरि राउ नवलक्ख कुले पसूओ, सच्चंदगच्छ विहि संघ पयास भूओ अप्पुव्व अब्भुय पभूय गुणाभिरामो, सो मे करेओ जिणलद्धि गुरू पसायं ॥ १ ॥ जुगवर जिणचंदस्सूरि सीसावयंसा, जिणपउम गुरूणं पट्ट उज्जोयकरा गुरुसिरि जिणलद्धिस्सूरि राया, सया ते मम सयल समिद्धिं सम्पसन्नाकुणंतु ॥२॥
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