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________________ ૧૬૮ : શ્રી મહાવીર જૈન વિદ્યાલય સુવર્ણમહોત્સવ ગ્રન્થ २ अह गोयम पूछ पहु मेउ, किं लेसेई व्रतु आणंदु एउ तउ अक्खइ सामि वि जावजीवु, इहु कैरिसह सावइधम्मदीवु । हो सुरमाणि रम्मि, सोहम्मि कप्पि अरुणप्पभम्मि तिहिं चारि पलिय पालेवि आउ, एगावयारु तउ सिद्धिठाउ । आणंदु वि चउदस वच्छराई, पलेवि दुवालस गिहिवयाई । चिंतेइ पुव्वरत्तावरत्ति, आयत्ति मज्झ बहुजणह तत्ति । ता जिणपणीय धम्मे सयाइ, मा खलणु होइ कहवि हु पमाइ । इय चिंतिय सिरि कुल्लागगामि, पोसाल करावइ सुद्ध ठामि । असणार चैन्विहु उक्खडेउ, जीमावइ सयलु वि नयरलोउ । तउ जिट्ठपुत्ति आरोवि भारु, आणंदु जाइ पोसहअगारु । तत्थ हिउ माणवि, देवहि दाणवि, अक्खोहियमणु न वि चलए । संलेहिणजुत्तर, छ वरिसउ तउ, सावयपडिमा सो वहइए ॥ २ ॥ Jain Education International ३ इकु मास देवपूया तिसंझ, सम्मत्तदपडिम अइयारवंझ । बेमास सुद्धबार सवहिं, वयपडिमा पालइ निययगेहिं । सामाइड गिन्हइ वार दुन्नि, पुव्वुत्त किरिय सउं मास तिन्नि । चउपव्यतिहिहि करि उप्पवासु, सो पोसह पालइ चौरि मास । चउपवि चहुइ निरुवसग्गु, सो पंचमास लिइ काउसग्गु । छम्मास बंभचेरं धरेइ, सच्चित्तु सत्त मासा न लेइ । आरंभु विवज्जइ अट्ठ मास, अन्न वि न करावइ नैव इ मास । जं उद्दिसीउ तसु रेसि रहु, दस मास न जीमइ तमवि सुद्धु । एगारस मासा समणभूउ, लेहेँ ओघउ मुहपत्ती करइ लोउ । मह समणोवासग भिक्ख देउ, नियगोलि विहरइ सो अखेउ । एारस पडिमा इम वहेउ, संलेहण करिविणु दुविहभेउ । तवचरणि अडिच मावसेसु, निसि सुत्तु तणह संथारएसु । चिंतेइ धम्मजागरिय रत्ति, जा अज्ज वि अच्छइ देहखत्ति । जयवंतु धम्मआयरिउ जाम, अणसणु करेसु हउं इत्थु ताम । सिद्धंतह जुत्तिहिं, सत्तहिं खित्तहिं, वित्तबीउ वावेवि घणु । अट्ठाहिय कारिय, संघ हकारिया, देवपूयवंदणकरणु ॥ ३ ॥ २८ करिरसइ सा०, करिसिइ सं० ॥ २६ नमेवि सं० ॥ ३० पाल्येवि सा० ॥ ३५ लिइ ओघ मुहपति सा० ॥ ३६ गोउलि सा० गोवलि हं० ॥ ३२ ' जिप || २७ लेस्यिइ सा० ॥ ३१ चउव्विह हं० ॥ ३३ च्यारि सा० For Private & Personal Use Only २९ अह होस्य हं० ॥ ३४ नव विहं० ॥ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.012002
Book TitleMahavira Jain Vidyalay Suvarna Mahotsav Granth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Vidyalaya Mumbai
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1968
Total Pages950
LanguageGujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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