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________________ कच्चायन, संजय बैलटि ठपुत्र आदि के विचारों को प्रति श्रद्धा एवं अनन्यभाव के साथ “अनुराग" एवं पढ़ने पर हमको आभास हो जाता है कि उस युग के "समपंण" कर संतोष पा लेता था। जनमानस को संशय, त्रास, अविश्वास, अनास्था, प्रश्ना आज का व्यक्ति स्वतन्त्र होने के लिए अभिशापित कूलता आदि वृत्तियों ने किस सीमा तक आबद्ध कर है। आज व्यक्ति परावलम्बी होकर नहीं, स्वतन्त्र लिया था। ये चिन्तक जीवन में नैतिक एवं आचार निर्णयों के क्रियान्वयन के द्वारा विकास करना चाहता मूलक सिद्धान्तों की अवहेलना करने एवं उनका तिर है। अन्धी आस्तिकता एवं भाग्यबाद के सहारे जीना स्कार करने पर बल दे रहे थे। मानवीय सौहार्द एवं नहीं चाहता अपितु इसी जीवन में साधनों का भोग कर्मवाद के स्थान पर घोर भोगवादी, अक्रियावादी करना चाहता है। समाज से अपनी सत्ता की स्वीकृति एवं उच्छेदवादी वृत्तियाँ पनप रही थी। तथा अपने अस्तित्व के लिए साधनों की मांग करता है इन्हीं परिस्थितियों में भगवान महावीर ने प्राणी तथा इसके अभाव में सम्पूर्ण व्यवस्था पर हथौड़ा मात्र के कल्याण के लिए, अपने ही प्रयत्नों द्वारा उच्च चलाकर उसे नष्ट भ्रष्ट कर देना चाहता है । तम विकास कर सकने का आस्थापूर्ण मार्ग प्रशस्त कर मानवीय समस्याओं के समाधान के लिए जब हम अनेकांतवादी जीवन दृष्टि पर आधारित, स्वाद्वाद्वादी उद्यत होते हैं तो हमारा ध्यान धर्म को और जाता है। कथन प्रणाली द्वारा बहुधर्मी एवं बहुगुणी वस्तु को इसका कारण यह है कि धर्म ही ऐसा तत्व है जो व्यक्ति प्रत्येक कोण, दृष्टि एव संभावनाओं द्वारा उनके बास्त की असीम कामनाओं को सीमित करता है तथा उसकी विक रूप में जान पाने एवं पहचान पाने का मार्ग दृष्टि को व्यापक बनाता है। इस परिप्रेक्ष्य में हमें यह बतलाकर सामाजिक जीवन के लिए अपरिग्रहवाद आदि जान लेना चाहिए कि रूढ़िगत धर्म के प्रति आज का का संदेश दिया। मानव किंचित भी विश्वास जुटाने में असमर्थ है। शास्त्रों में यह बात कही गयी है कि केवल इसी कारण आज आज भी भौतिक विज्ञान की चरम उन्नति मानवीय का मानव एवं विशेष रूप से बौद्धिक समुदाय एतं युवक चेतना को जिस स्तर पर ले गयी है वहाँ उसने हमारी उसे मानने के लिए तैयार नहीं है। समस्त मान्यताओं के सामने प्रश्नवाचक चिन्ह लगा दिया है। समाज में परस्पर घणा एवं अविश्वास तथा आज वही धर्म एवं दर्शन हमारी समस्याओं का तथा व्यक्तिगत जीव में मानसिक तनाव एवं अशान्ति समाधान कर सकता है जो उन्मक्त दृष्टि से विचार के कारण विचित्र स्थिति उत्पन्न होती जा रही है। करने की प्रेरणा दे सके। भगवान महावीर ने मानवीय एवं वैज्ञानिक सत्यान्वेषण में अनवरत प्रवृत्त श्रमण आज के और पहले के व्यक्ति और उसके चिन्तन परम्परा के धार्मिक सूत्रों के सहारे भटके हुए मानव में अन्तर भी है । सम्पूर्ण भौतिक साधनों एवं जीवन की को नवीन दिशा एवं ज्योति प्रदान की। बाहरी प्रदर्शन अनिवार्य बस्तुओं से वंचित होने पर भी पहले का व्यक्ति एवं दिखावे की प्रवृत्तियों पर प्रहार किया। निर्भय समाज से लड़ने की बात नहीं सोचता था; भाग्यवाद होकर घोषणा की कि प्रात: स्नानादि कर लेने से मोक्ष एवं नियतिवाद के सहारे जीवन को काट देता था। नहीं होता; जो प्रातः संध्या जल स्नान कर लेने से अपने वर्तमान जीवन की सारी मुसीबतों का कारण मुक्ति बतलाते हैं वे अज्ञानी हैं, बहुत से मुक्ति बतलाने विगत जीवन के कर्मों को मान लेता था। अथवा वाले भी अज्ञानी हैं। बलि देनेवालों के काले कारअपने भाग्य का विधाता परमात्मा" को मानकर उसके नामों को उजागर करते हुए उन्होंने घोषणा की कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012001
Book TitleTirthankar Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Malav
PublisherJivaji Vishwavidyalaya Gwalior
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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