SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 405
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वज्रङ्गावली-हनुमान नहीं थीं और लगभग पन्द्रह सौ वर्षों से दिगम्बरों और श्वेताम्बरों में अलगाव की दूःखद स्थिति चली आ रही सम्पादक-कमल कुमार जैन शास्त्री 'कुमुद," थी। प्रस्तुत ग्रन्थ दिल्ली में सर्वमान्यता के लिये आयोफल चन्द्र जैन 'पुष्पेन्दु' । प्रकाशक-भीकमसेन जित संगति में सम्मिलित सभी आम्नायों के साधुओं, रतनलाल जैन, 1286, वकीलपुरा, देहली 6 । विद्वानों, श्रावकों और सेवकों की सर्वमान्य उपलब्धि है। मूल्य-बो रूपया। इसे सर्वप्रथम क्षुल्लक श्री जिनेन्द्र वर्णी ने दिगम्बर एवं श्वेताम्बर परम्परा के आगम ग्रन्थों से कुछ सारभूत जैन रामायण "पदम पुराण" में हनुमानजी के गाथाओं का संकलन कर सम्पादित किया। तत्पश्चात सन्दर्भ में वर्णित स्थलों के आधार पर रचित यह खण्ड सन्त कानजी स्वामी, दलसुख माई मालवणिया आदि ने काव्य कविवर श्री ब्रह्मराय रचित "हनुमान चरित" उसका संशोधन कर उसे “जिण धम्भ" नाम दिया। का संशोधित स्वरूप है। जैन रामायण के सन्दर्भ में उसका भी डा. आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये, उपाध्याय वज्राङ गवली हनुमान का सुन्दर चरित्र-चित्रण प्रस्तुत मुनिश्री विद्यानन्दजी, मुनिश्री सुशील कुमार जी प्रभृति करनेवाली यह अपने प्रकार की अनूठी पुस्तक है। सन्तों एवं मुनियों के सानिध्य में वाचनकर उसे अन्त में "समण सुत्ताणि" नाम दिया। समण सुत्त (श्रमण सूत्रम्) ग्रन्थ की विषय-सामग्री को ज्योतिर्मय, मोक्षमार्ग तत्वदर्शन, एव स्याद्वाद नामक चार खण्डों और चवाअनुवाद-पं. कैलाशचन्द्रजी शास्त्री, मुनिश्री लीस प्रकरणों में विभक्त किया गया है। इसका मूलानथमलजी, संस्कृत छाया परिशोधन-पं, बेचरदासजी नुगामी-हिन्दी अनुवाद पं. कैलाशचन्द्र जी शास्त्री, दोशी। प्रकाशक-सर्व सेवा संघ प्रकाशन, राजघाट, वाराणसी तथा मुनि श्री नथमलजी महाराज एवं संस्कृत वाराणसी, । मूल्य-पेपर बंक-बस रुपया, सजिल्द- छाया परिशोधन पं. बेचरदासजी दोषी, अहमदाबाद बारह रुपया। द्वारा सम्पन्न हुआ है। सर्व सेवा संघ वाराणसी के संचा लक श्री कृष्णराज मेहता ने इस कार्य के संयोजन एवं ___ सर्वोदयी सन्त आचार्य विनोबा भावे की मूल प्रेरणा प्रकाशन में प्रशंसनीय एवं चिरस्मरणीय कार्य किया से भगवान महावीर के पच्चीस सौवें निर्वाण महोत्सव है। सर्वमान्य होने के कारण यह पुस्तक जैन दर्शन में के अवसर पर प्रकाशित यह ग्रन्थ समन्वय के प्रतीक के रुचि रखनेवाले प्रबुद्ध पाठकों हेतु अभूतपूर्व एवं रूप में सर्व प्रमुख उपलब्धि मानी जाती है। इससे पूर्व अद्वितीय उपलब्धि है । की तीन वाचनाएँ श्रमण सम्प्रदाय के एक वर्ग को मान्य ३७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012001
Book TitleTirthankar Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Malav
PublisherJivaji Vishwavidyalaya Gwalior
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy