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________________ प्राचीन ग्रन्थों में नाग सम्राटों की राजधानी क्रान्तिपूरी प्राचीनतम नगरों में से एक है। अनेकों इतिहासकारों इसी नगरी का ऐतिहासिक नाम है। यहाँ स्थित माता के अनुसार भारतीय वेदों में वणित पदमावती नामक के मन्दिर के चारों ओर तथा निकटवर्ती अन्य मन्दिरों ऐतिहासिक नगरी यही पवाया है। यहाँ अत्याधिक में पहली से पन्द्रहवीं शताब्दी के मध्य पुरातत्विक प्राचीन पुरातत्विक सम्पदा उपलब्ध है। उपलब्ध अवशेष भरे पड़े हैं, इनमें अनेकों जैन धर्म से सम्बन्धित अवशेषों में से कुछेक इस क्षेत्र में जैन संस्कृति के हैं, अभी तक इन पर पर्याप्त शोध के अभाव में इनके प्रचुरतापूर्ण प्रसार की साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं । यहाँ बारे में बहुत से तथ्य अज्ञात हैं। यहीं ग्वालियर के उपलब्ध प्राचीन अवशेषों पर अभी पर्याप्त शोध की तोमर राजा वीरमदेव के समय में बना विशाल एवं आवश्यकता है । यहाँ प्राप्त मूर्तियों में एक मूर्ति विचित्र भव्य चैत्रनाथ मूर्ति समूह अभी भी सुरक्षित है। इसमें प्रकार की उपलब्ध हुई है जिसमें एक व्यक्ति अपने सिर चैत्रनाथ को जैन मूर्ति पर वि. सं. 1467 (सन् के ऊपर एक ध्यानस्थ नग्न आकृति की प्रतिमा को 1410 ई.) का एक शिलालेख अंकित है ।। विराजमान किये हुए है। यह प्रतिमा जैन प्रतिमा प्रतीत होती है, जो अब तक उपलब्ध प्रतिमाओं की तुलना में दूबकुण्ड (श्योपुर) विचित्रताएँ लिये हुए एवं अनूठी है । इसके अतिरिक्त मुरैना जिले में ही श्योपुर तहसील में स्थित दुव- कुछ अन्य प्रातमाए आ कुछ अन्य प्रतिमाएं आदि भी उपलब्ध हैं। कुण्ड नामक स्थान भी जैन संस्कृति का प्राचीन केन्द्र अमरौल तथा सोहजनारहा है । यहाँ भी कई प्राचीन जैन मूर्तियों के अवशेष प्राप्त होते हैं। यहाँ प्राप्त वि. सं. 1145 (सन ग्वालियर जिले में ही ग्वालियर के दक्षिण पूर्व में 1088 ई.) के विक्रमसिंह के शिलालेख से प्रतीत होता स्थित अन्य ग्राम अमरोल में भी अनेकों उल्लेखनीय है कि इस क्षेत्र के कच्छपघात राजाओं का प्रश्रय भी प्रतिमाएँ उपलब्ध हुई हैं। इनमें पूर्व मध्यकाल की जैन सूरियों को प्राप्त हुआ था। शान्तिषेण सूरि और पार्श्वनाथ और आदिनाथ की प्रतिमा का सूक्ष्मता के उनके शिष्य विजयकीति द्वारा एक प्रशस्ति लिखी गई साथ प्रतिरूपण हुआ है जिसमें तीर्थ कर के चारों ओर थी। यहाँ के जैन मन्दिर के शिलालेख वि. सं. 1152 यक्षों की वामन आकृतियाँ पद्म पीठों पर सुखासन-मुद्रा (सन् 1095 ई.) से ज्ञात होता है कि यहाँ काष्ठा संघ में बैठी हुई दर्शायी गयी हैं। पद्मपीठ कमलपत्रावली के महाचार्यवर्य श्री देवसेन के पादुका चिन्ह की पूजा द्वारा भव्य रूप से अलंकृत हैं। होती थी। पवाया (पद्मावती) ग्वालियरग्वालियर जिले में डबरा के निकट स्थित पवाया ग्वालियर नगर स्वयं भी जैन संस्कृति के प्राचीननामक ग्राम ऐतिहासिक दृष्टि से इस सारे क्षेत्र में स्थित तम केन्द्रों में से एक है । यहाँ जैन संस्कृति से सम्बन्धित 1. आर्को. सर्वे.रि. भाग 2, पृ. 396। 2. ग्वालियर राज्य अभिलेख, क्र. 54। 3. ग्वालियर राज्य अभिलेख, क्र. 58 । 4. जैनकला एवं स्थापत्य, खण्ड 1, भारतीय ज्ञानपीठ, भाग 4, वास्तु स्मारक एवं मूर्तिकला (600 से 1000 ई.। अध्याय 16, मध्य भारत कृष्णदेव । पृ. 177-781 ३२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012001
Book TitleTirthankar Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Malav
PublisherJivaji Vishwavidyalaya Gwalior
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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