SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 345
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ डूंगर सिंह का विस्तृत वर्णन एवं गोपाचल की राजनैतिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितियों का सुन्दर चित्र खींचा है। मूर्तिलेख में अंकित सामग्री निम्न प्रशस्ति में दृष्टव्य है : ·--- गोपाचल डुंगरराय रज्जि । सिव ऊसइणा विहिय कज्जि || तहि णिव सम्मानें तोसियंगु । बुहँ बिहिउ जं णिच्य संगु ॥ करुणावल्ली वण-धवल- कंदु | सिरिअरवाल-कुल- कुमुय चंदु ॥ सिरि भोषाणामें हुवउ साहु | संपत्त जेण धम्में जिलाहु || तहु णाल्हाही णामेण भज्ज । अइसावहाण सा पुण्णकज्ज || तहुणंदण चारि गुणोह वास । ससिणिह जसभर पूरिय दिसास ॥ मसीहु पसिद्धउ महि गरिछु । महराजु महामइ तहु कणिट्टु | असराज दुहिय जण आसकर । पाल्हा कुल-कमल- वियास सुरु || एहु गरुवउ जो खेमसीहु । वर्णियउ एच्छ भवभमण वीहु || तहु णिउरादे भामिणि उत्त । गुरु देव सच्छ-पय-कमल- भत्त || तहि उवरि उवण्ण विणिणपुत्त । विष्णाण - कला-गुण-से णि जुत्त ॥ पढ़मउ संघाविउ कमलसीहु । जो पलु महीयल सिवसमीहु || णामेण सरासइ तहु कलत्त । वीई जि ससिपिय पाय भत्त ॥ चउविह दाणें पीणिय सुपत्त । अणि विरइय जिणणाहजत्त ॥ Jain Education International तहुणदणु णामें मल्लिदासु । सो संपत्तउ सुहगइ णिवासु ॥ संघाहिव कमलहु लहुउ भाउ । णामेण पसिद्धउ भोयराउ || तहु भामिणि देवइ णाम उत्त । विहु पुतहि सा सोहइ सउत्त || णामेण भणिउ गुरु चंदसेणु । पुणु पुण्णपालु लहुवउ अरेणु ॥ घत्ता इय परियण जुत्तउ एच्छणिरु । कमलसीहु संघाहिव चिरणंदउ || ३१८ एच्छु पसणु मणु णिय । दुहिय जण आइ 11 सम्मत ० 4/35 इस प्रकार महाकवि रइधू के 'सम्मतगुणणिहाणकन्य' की प्रशस्ति को सम्मुख रखकर उक्त मूर्तिलेख के अशुद्ध पढ़े गये पाठों को सरलता से शुद्ध किया जा सकता है । गोपाचल के भष्ठिजन रइधू ने अपनी प्रशस्तियों में प्रसंगवश कई नगर श्रेष्ठियों की विस्तृत चर्चा की है। इनमें से कुछ श्र ेष्ठिजन रइथू की कवित्वशक्ति से अत्यन्त प्रभावित होकर उन्हें अपना गुरु मानकर चलते थे तथा वे निरन्तर ही अपने स्वाध्याय हेतु उनसे काव्यग्रन्थ लिखने का आग्रहभरा निवेदन किया करते थे । यहाँ दो-एक उदाहरण प्रस्तुत कर यह दर्शाने का प्रयास किया जायगा कि मध्यकालीन नगर श्रेष्ठिजन ऐश्वर्य और भोगों के बीच रहते हुए भी कितने साहित्य रसिक एवं साहित्यकारों को मुकुटमणि के समान समझते थे । कवि रइधू के एक भक्त थे - कमलसिंह संघवी, जो तोमर राजा डूंगरसिंह For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012001
Book TitleTirthankar Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Malav
PublisherJivaji Vishwavidyalaya Gwalior
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy