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________________ दंतियाँ उनके अहिंसा पथ और गणितादि के विलक्षण चीन तथा मिस्र देशों के कलन से श्रेष्ठ है। चीन में ज्ञान को बतलाती हैं। लोक में जीवसंख्या की अचलता सलगागणन (ई. पू. 4थी शताब्दी में), भारत में प्रायः के आधार पर जनता को हिंसा तथा मांसाहार की ओर 6वीं सदी अथवा कतिपय ग्रथों (षट खण्डागमादि) में से मोड़कर शाकाहारी तथा हरियाली रहित भोजन ई. पश्चात् 2री सदी में उपलब्ध हैं । जहाँ चीन में की ओर प्रवृत्त करने का प्रयत्न पिथेगोरस की निजी वर्ग और घनमल ई. प प्रथम सदी में दृष्टिगत हैं वहाँ प्रतिभा का द्योतक है (E. T. Bell, Magic of षट्खण्डागम में सीमित क्षेत्र में स्थिति प्रदेश बिन्दुओं की Numbers, 1946, pp. 87, 88, 91,92)। संख्या का बारहवाँ वर्गमूल निकालने का उल्लेख है यदि कोई साधारण स्रोत यूनान और चीन के मध्य और जिसके तुल्य मान क्षेत्र, काल, भाव में प्रदत्त हैं । रहा, तो ऐसे प्रकरण चीन में कन्फ्यूशस या ताओ काल चीन में ज्यामितीय सामग्री ई. पू. तृतीय सदी में उपलब्ध में दृष्टिगत होना चाहिए। नीधम के अनुसार बौद्ध धर्म है, वहीं तिलोयपण्णत्ती में पांचवी सदी तथा इतर ग्रंथों का चीन में प्रथम प्रवेश ई. पश्चात् 65 में हुआ जिसके में ई. पू. भी दृष्टिगत है। जहां चीन में प्राय: 1000 वर्ष प्रायः 100 वर्ष पश्चात् प्रथम सूत्रों का चीनी भाषा में पूर्व बीजगणित तथा ज्यामिति की मूलभूत तादात्म्य लोयांग में अनुवाद प्रारम्भ हआ । (नीघम, भाग 1, प्रकट है वहां धवल (9वीं सदी) तथा अलख्वारिज्नी पृ. 112)। मिस्र देश की जागृति का काल भी प्रायः (9 वीं सदी) में दृष्टव्य है। चीन में कूट स्थिति के यही है, जबकि सायटिक युग (663-525 ई.) में वहाँ प्रयोग भी प्राकृत ग्रंथों में उपलब्ध हैं। इसी प्रकार अहिंसक कूफू कालीन प्राचीन परम्पराओं का अकस्मात अनि त विश्लेषण सुन त्जू (4थी सदी) तथा प्राकृत अनुसरण प्रारम्भ हआ था और नरसिंह (Sphinx) ग्रंथों में दृष्टिगत है। प्रतीक पुनः पूजा की वस्तु बन गया था। सम्भवतः यही आकर्षण पिथेगोरस के पूर्व देश भ्रमण का कारण बना लोकोत्तर गणित विज्ञान में ज्योतिष बिम्बों की होगा । संख्या का निर्धारण, उनकी गमनशीलता, सुमेरु से दुरी, चित्रातल से ऊचाई, बिम्बों के आकार, तथा माप, अविभागी पुद्गल परमाणु के आधार पर परिभाषित आदि विविध प्रकार की सामग्री विकसित की गयी। विन्द्र के प्रयोग में वीरसेन द्वारा कतिपय नवीन विधियों इन प्राचीन तत्वों को हजारों वर्षों से अपरिवर्तित का उपयोग प्रकट हुआ है। इनमें से निश्शेषण विधि रखा गया (ति.प.,प. 16-17) । यनान से ये विधियाँ विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है। इसके द्वारा शंकु के अत्यंत भिन्न हैं । समच्छिन्नक का घनफल निकाला गया है । इससे का मान निकालने के ऐसे सूत्र का उपयोग किया गया है कर्म सिद्धान्त के गणित का इतिहास विगत 25 जो चीन में त्सु शुग-चिह्न (प्रायः पाँचवी सदी वर्ष के विश्व विज्ञान में प्रोद्भूत गणितीय सिस्टम Tsu Chhung-Chih) द्वारा प्रयुक्त हुआ है। जैन सिद्धान्त से प्रारम्भ हुआ है। नियंत्रण योग्यता तथा नथों-धवल-में राशि सिद्धान्त में प्रयुक्त भिन्न कलन परिणाम योग्यता के आकलन गणितीय रूप में विश्व के 23. Salem Hossan, The Sphinx, Its History in the Light of Recent Excavations, Cairo, pp. 219-221, (1949). 24. देखिये 1 (ख)। २८७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012001
Book TitleTirthankar Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Malav
PublisherJivaji Vishwavidyalaya Gwalior
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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